‘कविता शुक्रवार’ ने फ़िलहाल विराम लिया है। नए साल में दुबारा शुरू होगा। राकेश श्रीमाल उसकी तैयारी में लगे हैं। बीच बीच में विशेष प्रसंगों में कविताओं का प्रकाशन होता रहेगा। जैसे आज। हमारे देश में चुनावों का रंग दुनिया से अलग होता है। इतना अलग कि दुनियाभर की नजर …
Read More »कवि वीरेन डंगवाल का स्मरण
आज कवि वीरेन डंगवाल की पुण्यतिथि है। उनको स्मरण करते हुए यह टिप्पणी की है कवि-कथाकार-पत्रकार हरि मृदुल ने- =============== ‘मैं तो सतत रहूंगा तुम्हारे भीतर नमी बनकर, जिसके स्पर्श मात्र से जाग उठा है जीवन मिट्टी में’ ० हरि मृदुल कविता के प्रति तीव्र उत्कंठा-उत्सुकता के दिन थे वे। …
Read More »हरि मृदुल की कहानी ‘आलू’
हरि मृदुल संवेदनशील कवि और कथाकार हैं। छपने छपाने से ज़रा दूरी बरतते हैं लेकिन लिखने से नहीं। जीवन के छोटे छोटे अनुभवों को बड़े रूपक में बदलने में दक्ष हैं। बानगी के तौर पर यह कहानी पढ़िए- ======================== फु ऽऽ स्स… मुझे पता था कि यही होना है! इसीलिए मैं चाहता था कि हसु खुद यह पैकेट खोले। हालांकि उसने कोशिश तो पूरी की थी, लेकिन वह खोल नहीं पाया। ‘ऐेसे खोलो, ऐसे’, मैंने इस काम से बचने का आखिरी प्रयत्न किया। परंतु हसु से पैकेट नहीं खुला। आखिरकार उसने मेरे हाथों में थमा दिया। ‘पापा खोल दो ना, आप ऐसा क्या करते हो?’ हसु चिढ़़ गया। ‘अब तेरा यही ड्रामा रहेगा। अपनी मम्मी को दे ना,’ मैंने चालाकी दिखाने का फिर से प्रयास किया। चूकि नेहा पानी की बोतल खरीदने के लिए पर्स में छुट्टे रुपए ढूंढ़ रही थी, सो वह भी झुंझला पड़़ी — ‘कमाल है, बच्चे का इतना सा काम करने में भी आलस आ रहा है। मैं तो इसे पूरा दिन संभालती हूं। खोलिए पैकेट।’ मैं कोई जवाब देता, वह पानी की बोतल खरीदने जा चुकी थी। ‘ला, हसु बेटा। आज पूरे दिन पापा को ऐसे ही तंग करना हां’, यह कहते हुए मैंने पैकेट का एक कोना दांतों से दबाकर फाड़़ा और हसु को दे दिया। फु ऽऽ स्स…। …
Read More »कविता शुक्रवार: हरि मृदुल की कविताएँ
उत्तराखंड में नेपाल और चीन बॉर्डर के गांव बगोटी में ४ अक्टूबर, १९६९ को जन्मे हरि मृदुल की प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय प्राइमरी स्कूल में ही हुई। इसके बाद वह बरेली चले गए, जहां उन्होंने स्नातकोत्तर तक शिक्षा पाई। बचपन से ही कविता लिखनी शुरू हो गई थी। कुमाऊं के अप्रतिम …
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