कवि-संपादक पीयूष दईया इन दिनों दुर्लभ रचनाओं, कृतियों की खोज में लगे हुए हैं. उनके हाथ मनोहर श्याम जोशी जी की ये दुर्लभ कविताएँ लगीं. वैसे तो जोशी जी की सम्पूर्ण कविताएँ उनके मरणोपरांत ‘कूर्मांचली की कविताएँ’ शीर्षक से पुस्तकाकार प्रकाशित हो चुकी हैं. लेकिन ये कवितायें उस संकलन में नहीं हैं. छोटी-छोटी कुछ अच्छी कविताएँ हैं- मॉडरेटर
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स्वीकारोक्ति
चली गयीं वे कंजी आँखें
चला गया कंचों का खेल
भूरी भूरी लटें गयीं वे
भोलीभाली हँसी गई
रंग बिरंगे फूल, लिफ़ाफ़े
रबर, रिबन, रुमाल गए
खेल-तमाशे, खुट्टी-सल्ला
नाते-वादे सभी गए.
बालाताप सा उजला-निखर
प्यारा-प्यारा प्यार मेरा
पटरी-पटरी जा पहुंचा है
वहाँ जहाँ पटरियां नहीं
अन्धकार अब आगे उसके;
अन्धकार से डरता है.
घर लौटे तो कैसे लौटे
स्वाभिमान पर मरता है.
सीख रहा है धोखा देना
सूनी धूनी रमा रहा
आँख मूंदकर अन्धकार में
कविताई है कमा रहा.
प्रार्थना
न कुम्हलाने दो, प्रभु, न कुम्हलाने दो
सब कलियों को खिल जाने दो
दुःख दो
सुख दो
चाहे जो दो
पर उसमें हम को, हम में उसको
पूरा पूरा मिल जाने दो.
हमारी भावनाएं
हमारी भावनाएं व्यर्थ न जाने पायें.
हँसे हम,
पर अकेले खाली कमरे में न हँसे
क्रोधित हों तो दर्पण को न डांटें
व्यथित हों तो नाखून न काटें
रोयें हम
पर आंसू बालू पर न झरने पायें.
कवि से
कवि, यदि गाना हो तो कविता में मत गाओ
कविता दुःख-सुख की अभिव्यक्ति नहीं है
और नहीं है सस्ता साधन मन की खाज मिटाने का यह
उपाय गुदगुदाने का अपने तन को,
मन को बहलाने का
या कल्पना रिझाने का.
निश्चय ही कविता
दुःख की या सुख की
अभिव्यक्ति नहीं है.
कविता तो वह है जो दुःख-सुख के आकर भर के अंतर में—
भर जाने के बाद, रहा करता है—
वह जो बच जाता है अपना.
कवि, यदि वह बच जाता है तो कह जाओ.
कवि, यदि गाना है तो कविता में मत गाओ.
वृक्ष और छाया
क्वार्टर की दीवार पर
छायी है वृक्ष की छाया
और धन्य है प्रभु तेरी माया
जो यह छाया मुझे
वृक्ष से सुन्दर दिखती है.
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