हिंदी के आलोचक और जेएनयू के पूर्व प्रोफ़ेसर मैनेजर पाण्डे की पारिवारिक पूजा की तस्वीरें आने के बाद से तरह तरह की बातें लिखी जा रही हैं. एक नजरिया यह भी है. लिखा है रोहिणी कुमारी ने. जेएनयू में कोरियन विभाग में पीएचडी कर रही हैं- मॉडरेटर
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मन्दसौर में किसान मर रहे हैं. क्रांतिकारी साथियों के लेकिन उससे ज़्यादा बड़ी ख़बर है मैनेजर पांडे का पूजा में बैठना. लन्दन में आतंकी हमला हुआ है, उससे ज़्यादा बड़ी ख़बर है मैनेजर पांडे का पूजा में बैठना, दिल्ली गुड़गाँव और देश के अन्य हिस्सों में लड़कियों का रेप हो रहा है उससे ज़्यादा बुरी बात है मैनेजर पांडे का पूजा कर लेना, अखलाख को भीड़ ने मार मार दिया था वह कम बड़ी ख़बर थी, ख़बर तो है 70 से भी अधिक साल के एक वरिष्ठ का अपने परिवार के साथ आस्था प्रकट कर देना। ख़ैर दुःख तो इस बात का है कि ऐसे ऐसे दिग्गज वामपंथी साथी इस ख़बर को भुना रहे हैं जो दिवाली और छठ पर बिहार जाने की होड़ में रहते हैं, टिकट का रोना रोते हैं??? इतनी मज़बूत जड़ें हैं आपकी अपने विचारधारा में तो क्यों जाते हैं आप होली,दिवाली,दशहरा और महापर्व छठ में अपने गाँव,अपने देश।अब प्लीज़ उसे परिवार की ख़ुशी या उनकी आस्था के नाम की दुहाई मत दीजिएगा।
आप वही वामपंथी लोग हैं जिनकी पत्नियाँ करवा चौथ और वाट सावित्री पर व्रत रखती हैं और आप नाक रगड के भी रह जाएँ उस दिन आपके पैर छू ही लेती हैं और आप असहाय होकर उसे गले से लगाकर अपनी महानता का बोझ थोप देते हैं। आप वही साथीगण हैं जो छठ के समय दौरा डोला लेकर आस्था और अपनी माँ के विश्वास के नाम पर फेसबुक पर फ़ोटो अपलोड करके कमेन्ट और लाइक लेते नहीं आघाते और अगर देस ना जा पाएँ तो यमुना किनारे की तस्वीर अपलोड करके नौस्टैलजिक होने का प्रमाण भी देते हैं। ख़ैर लब्बो-लुआब यह है कि मैनेजर पांडे चाहे जिस भी पंथ में अपनी आस्था रखते हों वह अब अपनी उम्र के उस पड़ाव पर हैं जहाँ उनके कर लेने के लिए बहुत कुछ शेष नहीं रह गया है।उन्हें अपनी विचारधारा के प्रति उनकी ईमानदारी प्रमाणित करने के लिए आपके,हमारे किसी के भी सर्टिफ़िकेट की ज़रूरत नहीं है। उम्र के आख़िरी पड़ाव में पहुँच चुका एक ऐसा इंसान जिसने अपने एक अज़ीज़ को असमय खो दिया हो,जिसने लगभग अपनी आवाज़ तक खो दी हो,जो फिर भी कोशिश में लगा हो फिर से खड़े होने की, उसको इस तरह टारगेट करके आप और हम किस विचारधारा और पंथ का प्रमाण दे रहे हैं? मैनेजर पांडे जी अगर इतने ही चालाक और दोहरापन ओढ़े व्यक्ति होते तो यक़ीन मानिए इस जनम में तो हमलोगों को यह तस्वीर नहीं ही मिलती देखने को। पिछले दो दिनों से आप और हम जो कर रहे हैं उससे दूसरा कुछ नहीं बस तथाकथित राष्ट्रभक्ति की ओर अग्रसर होते दिख रहे हैं।हममें और भक्तों में अंतर बना रहे इसकी पुष्टि करते रहना ज़रूरी है। और सबसे ज़रूरी बात कोई भी विचारधारा किसी भी इंसान,आस्था और यहाँ तक कि धर्म का मज़ाक़ उड़ाने की उसे ट्रोल करने की बात तो नहीं ही करता है। साथी लोग थोड़ा धैर्य से काम लीजिए,क्योंकि पांडे जी जिस उम्र में हैं ना जाने आपका और हमारा उम्र का वह पड़ाव कहाँ बैठने और क्या करने को मजबूर कर दे।
Nice Article