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कोलंबियंस को सिएस्टा और फिएस्टा दोनों से लगाव है

गाब्रिएल गार्सिया मार्केज़, शकीरा और पाब्लो एस्कोबार के देश कोलंबिया की राजधानी बोगोता की यात्रा पर यह टिप्पणी लिखी है युवा लेखिका पूनम दुबे ने. पूनम पेशे से मार्केट रिसर्चर हैं. बहुराष्ट्रीय रिसर्च फर्म नील्सन में सेवा के पश्चात फ़िलवक्त इस्तांबुल (टर्की) में रह रही हैं. अब तक चार महाद्वीपों के बीस से भी ज्यादा देशों में ट्रैवेल कर चुकी हैं. पढना और लिखना उनका पैशन है- मॉडरेटर

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अब से कई साल पहले तक मेरे लिए कोलंबिया का मतलब था शकीरा और उसके दिल धड़का देने वाले गाने. जब भी शकीरा का “हिप्स डोंट लाय” गाना देखती तो झूमने लगती थी उनके डांस को देखकर! इसी गाने के वजह से मैं उनकी दीवानी हो गई. यह तो हम सभी जानते है दीवानगी में हम लोग कितने ही ख्वाब पाल लेते है. उन दिनों से मेरे मन में यह इच्छा थी कि काश एक दिन मैं शकीरा के दर्शन पाऊं और उसके साथ डांस करने की मेरी नन्ही से हसरत पूरी हो . खैर मेरी नन्ही हसरत इतनी भी नन्ही नहीं थी यह मुझे बाद में पता चला.

मेरे सामान्य ज्ञान में बढ़ोतरी तब हुई जब संयोगवश 2014 में मई के महीने में मैं बोगोता पहुँची.  बोगोता कोलंबिया की राजधानी है. यहाँ स्पैनिश बोली जाती, देखा जाए तो लगभग सभी साउथ एंड सेंट्रल अमेरिकन देशों में स्पैनिश ही मुख्य भाषा है. अमेरिका में भी इंग्लिश के बाद स्पैनिश ही सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है.

एयरपोर्ट से टैक्सी लेकर लॉज में पहुँचते ही मैंने अपना सामान ठिकाने लगाया. कुछ देर सुस्ताने बाद बड़े उमंग से मैं शकीरा की खोज में निकली (ठीक वैसे ही जैसे मुंबई में और क्षेत्रों से आये लोग पहले अमिताभ बच्चन और शाहरुख से मिलने निकल पड़ते है) अफ़सोस शकीरा नहीं मिली, शायद उसे नहीं पता था कि मैं आई हूँ.  मौसम सुहावना था, कोशिश थी कि प्लाजा बोलिवार जाऊं जो कि सिटी सेंटर है. कोलंबिया 1492 से 1824 के अवधि तक स्पेन की कॉलोनी रह चुकी है. स्पैनिश कोलोनाइजेशन का प्रभाव यहाँ के आर्किटेक्ट और सभ्यता में बखूबी झलकती है.

प्लाजा के ओर चलते हुए मेरा ध्यान जगह-जगह किताबों और अन्य दुकानों पर गया जहां गाब्रिएल गार्सिया मार्केज़ के बड़े-बड़े पोस्टर और बैनर लगे थे, जो मैंने एयरपोर्ट पर भी नोटिस किया था. उसी साल कुछ ही हफ़्ते पहले गाब्रिएल गार्सिया मार्केज़ का देहांत हुआ था. उस समय मैं उनके गौरव से लगभग अनजान थी. सुना था उनके देहांत के बाद पूरा कोलंबिया शोक में डूब गया था और कोलंबियन सरकार ने तीन दिन का नेशनल हॉलिडे भी घोषित किया था. मन ही मन मैं हतप्रभ! क्या रुतबा रहा होगा इन साहब का जो लोग अब तक श्रद्धांजलि दिए जा रहे है. निष्ठा तो देखिये लोगों की, ग्राब्रिएल साहब तो सालों पहले मेक्सिको के रहवासी बन गए थे, और जीवन की आखिरी साँसे भी वहीं ली!  “कुछ लोगों का व्यक्तित्व इतना वैभवशाली होता है कि उनकी छाप लोगों के मन में जीवन के अनंतकाल तक रह जाती है.”  मार्केज़ भी उन्हीं तेजस्वी लोगों में से एक थे.

दुकानों की चहल पहल देखी तो मैं एक बुक स्टोर के भीतर चली गई. ज्यादातर मुझे गाब्रिएल की ही किताबें सजी हुई दिखीं.

उनकी लिखी किताब “एकाकीपन के सौ साल” ने लैटिन अमेरिकन लिटरेचर को दुनिया की नजरों में एक नए मुकाम पर पहुँचाया. मार्केज़ की “एकाकीपन के सौ साल” (one Hundred years of solitude) पिछले सौ सालों में लिखी गई किताबों में से एक बेहतरीन किताब मानी जाती है. मार्केज़ को मैजिकल रिअलिज्म का पिता भी कहा जाता है.  इसी उपन्यास के लिए ग्राब्रिएल को 1982  में साहित्य की दुनिया में नोबेल से नवाज़ा गया.

ग्राब्रिएल ने पाब्लो एस्कोबार पर भी “न्यूज़ ऑफ़ किडनैपिंग” नॉनफिक्शन लिखी है. पाब्लो एस्कोबार से तो अब हम भी बखूबी वाकिफ़ हो गए हैं, आज कल नेटफ्लिक्स पर जो छाए है. ड्रग लार्ड होने के बावजूद भी मेडेलिन के लोग आज भी उन्हें सम्मानपूर्वक याद करते हैं. पाब्लो एस्कोबार ने मेडेलिन के लोगों के लिए रॉबिनहुड जैसी भूमिका निभाई थी. ठीक वैसे ही जैसे कि हमारे देश में बहुत से लोग फूलनदेवी की निर्भयता को सम्मानित रूप से देखते है.

स्वयं जादुई यथार्थवादी मार्केज़ भी शकीरा के अलौकिक काम करने सलीके से खूब प्रभावित हुए थे. २००२ में उन्होंने शकीरा पर एक सुंदर लेख लिखा” शायर और शहजादी” जो कि बहुत चर्चित रहा. आगे चलकर  मार्केज़ और शकीरा अच्छे दोस्त बने. शकीरा ने मार्केज़ के उपन्यास “लव इन द टाइम ऑफ़ कोलेरा” पर आधारित फ़िल्म के लिए “आइ अमोरीस” गाना भी गाया है.

मार्केज़ ने कहा था कि कोलंबिया आज अपने वतन के, पाब्लो एस्कोबा,शकीरा और मार्केज़ इन तीन लोगों के लिए जाना जाता है. सच ही है!

सड़कों और गलियों की छानबीन करते हुए मैं एक कैफ़े के भीतर गई.  कोलंबिया आकर बिना यहाँ की काफी का आनंद लिए जाना किसी गुनाह से कम नहीं. अपनी कॉफी के लिए कोलंबिया पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. मैंने स्टारबक्स में कहीं लिखा देखा था कोलंबियन कॉफ़ी के बारे में! लेकिन यहाँ मैंने काफ़ी स्टारबक्स से नहीं एक लोकल कॉफ़ी स्टाल से खरीदी.

मुझे कोलंबियंस अपने क्रिश्चियनिटी फेथ के प्रति बड़े समर्पित जान पड़े. उसके पीछे एक कारण यह भी हो सकता है कि यहां, “साल्ट कैथेड्रल ऑफ़ ज़िपाकिरा” स्थापित! यह एक अंडरग्राउंड रोमन कैथलिक चर्च है जो कि तीर्थ स्थल की तरह पूजा जाता है. साल्ट कैथेड्रल वास्तुकला की दृष्टि से बहुत है अहम माना जाता है. पर्यटकों की काफ़ी भीड़ लगी थी. कुछ समय मैंने भी वहां बिताया.

किसी भी नई जगह पर जाने से पहले मेरे मन में सबसे पहले एक ही ख्याल आता है “क्या वहाँ जाकर शाकाहारी भोजन मुझे नसीब हो जाएगा”? अब तो तजुर्बे के साथ मैंने जुगाड़ करना भी सीख लिया है.  आसपास की कुछ दुकानें तलाशने के बाद मेरी नज़र राजमा पर पड़ी. राजमा देखते ही पेट में चूहे खुशी के मारे सालसा करने लगे. मैंने सोचा राजमा है तो चावल भी होगा! मन में भगवान को पुकारा और कहा बिना चावल खाये मैं यहाँ से नहीं जाऊंगी. हालांकि कुछ देर लगी वेटर को समझाने में कि मुझे सिर्फ राजमा चावल प्लेट में दे. वह भी हैरान भौंहें तानकर घूरने लगा, “अच्छा ख़ासा मीट प्लेट से बाहर निकलवाकर यह लड़की चावल के पीछे पड़ी है”  बाहरी देशों में लोगों को शाकाहारी का कांसेप्ट ठीक से समझ नहीं आता. खासकर वहां जहाँ भारतीय लोगों का बसेरा सीमित है.

खाने के बाद पेट में चूहों का सालसा बंद हुआ तो सोचा शकीरा न सही, क्यों न यहाँ के लोगों के साथ सालसा कर लूँ. कोलंबिया आये और सालसा नहीं किया तो क्या किया. इसलिए मैं एक सालसा क्लब के भीतर चली गई. उस दिन मैं इतना बुरा नाची कि उन्हें लगा होगा शायद मैं इंडियन सालस कर रही हूँ. वहां लोग इतनी सहजता से ताल से ताल मिलाकर सालसा कर रहे थे कि, जैसे माँ के कोख से सीखकर आये हो.  वहां के लोग, उनकी जमीन से कुछ अपनापन सा महसूस किया. सिर्फ भाषा और पहनावे में अन्तर दिखाई दे रहा था. सीधे-साधे और खुश मिजाज, अपनी दुनिया में मस्त रहने वाले लोग! कुछ हद तक रूप रंग में भी वह हम जैसे लगे.  उन्हें देखकर मन में ख़याल आया सचमुच कोलंबियंस को सिएस्टा और फिएस्टा दोनों से बड़ा लगाव है.

बमुश्किल से डेढ़ दिन मिले थे बोगता में. हालांकि जितना भी समय वहां बिताया उसके आधार पर कह सकती हूँ बड़ी दिलचस्प जगह है.  अगली बार के लिए मैंने एक लंबी लिस्ट तैयार कर रखी है जिसमें से  मेडिलिन, काली और अराकाताका (मार्केज़ का जन्म स्थल,  जिसने उन्हें प्रेरणा दी एकाकीपन के सौ साल लिखने की) को भूले से भी चूक नहीं सकती.

वापसी के वक्त एयरपोर्ट पर मैंने “एकाकीपन के सौ साल” खरीद ही ली. कुछ सालों बाद इस अद्भुत उपन्यास को पढ़ते हुए मैंने भी अपने भीतर के एकाकीपन को टटोला! मैजिकल रिअलिज्म पर आधारित यह किताब खुद किसी सम्मोहन से कम नहीं. अब मेरे लिए कोलंबिया महान कहानीकार गाब्रिएल गार्सिया मार्केज़ का देश है.  हिंदी जगत के प्रख्यात लेखक प्रभात रंजन ने मार्केज़ के जीवन पर आधारित “जादुई यथार्थ का जादूगर” किताब लिखी है. जो अभी हाल ही में मेरे हाथ लगी है.  पूरा भरोसा है कि इस किताब को पढ़कर मन में मार्केज़ के प्रति उठ रहे कौतूहल को तृप्ति मिलेगी.

आप सोच रहे होंगे शकीरा का क्या हुआ?  करीब एक साल बाद मैनहाटन में मैडम टुसाड जाकर मैंने शकीरा के स्टैचू के साथ फोटो खिचवायी और बिलकुल वैसे ही महसूस किया जैसे शारुख के बंगले मन्नत को देखकर दर्शनार्थी सद्भावना से भर जाते हैं.

“यह सच नहीं है कि लोग सपनों का पीछा करना इसलिए बंद कर देते हैं क्योंकि वे बूढ़े हो जाते हैं, वे बूढ़े हो इसलिए जाते हैं क्योंकि वे सपनों का पीछा करना बंद कर देते हैं.”  मार्केज़ के यह सुनहरे शब्द जीवन को एक नई तरीके से देखने के लिए प्रेरित करते है. जीवन में कोशिश यही रहेगी कि मन में कोई न कोई सपना पलता रहे.

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