Home / Featured / कविता शुक्रवार 18: उमा झुनझनवाला की कविताएँ सुमन सिंह के चित्र

कविता शुक्रवार 18: उमा झुनझनवाला की कविताएँ सुमन सिंह के चित्र

‘कविता शुक्रवार’ के इस अंक में प्रस्तुत हैं रंगकर्मी और कवयित्री उमा झुनझुनवाला की कविताएं और वरिष्ठ चित्रकार सुमन सिंह के नए रेखांकन। उमा झुनझुनवाला का जन्म 20 अगस्त 1968 में कलकत्ता में हुआ था। हिन्दी से एम.ए करने के बाद इन्होंने बीएड किया क्योंकि इनका मानना है, “स्कूल का शिक्षक होना ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है, आप एक ज़िम्मेदार नागरिक का निर्माण करते हैं वहाँ।” कला के प्रति रुझान बचपन से ही था। इसलिए परिवार में अनुकूल परिवेश न होने के बावजूद ये रंगमंच से आखिरकार जुड़ ही गईं। १९८४ में दसवीं की परीक्षा के बाद उन्हें स्कूल के रजत जयंती के अवसर पर नाटक मे हिस्सा लेने का अवसर मिला। यहीं से उनके जीवन की दिशा बदल गई। तब से नाट्य क्षेत्र में सक्रियता बनी हुई है।
उमा झुनझुनवाला लिटिल थेस्पियन की संस्थापक/निर्देशिका हैं। इन्हें संस्कृति मंत्रालय द्वारा “कहानियों के मंचन” पर काम करने हेतु जूनियर फेलोशिप प्रदत की गई। ये अब तक 9 नाटकों, 36 कहानियों, 12 एकांकियों तथा 8 बाल-नाटकों का निर्देशन दे चुकी हैं तथा 50 से ज़्यादा नाटकों में अभिनय कर चुकी हैं। इनके लिखे पाँच नाटक उपलब्ध हैं – रेंगती परछाईयाँ (प्रकाशित), हज़ारों ख़्वाहिशें (प्रकाश्य), लम्हों की मुलाकात (प्रकाशित), भीगी औरतें और चौखट। बच्चों के लिए भी 9 नाटक लिखे हैं। इनका एक डायरी संकलन भी प्रकाशित हुआ है – ‘एक औरत की डायरी से।’ काव्य संग्रह ‘मैं और मेरा मन’ और कहानी-संग्रह ‘लाल फूल का एक जोड़ा एवं अन्य कहानियाँ’ शीघ्र प्रकाशित होने वाली है।अंग्रेज़ी, बांग्ला और उर्दू से अब तक 11 नाटकों का अनुवाद कर चुकी हैं जिनमें से कई प्रकाशित भी हैं। इनका चर्चित नाटक ‘रेंगती परछाइयाँ’ का तीन एपिसोड में रेडियो से दो बार प्रसारण हो चुका है| इन्होंने रानी लक्ष्मी बाई संग्रहालय, झाँसी के लिए स्क्रिप्टिंग और प्रकाश व संगीत की परिकल्पना भी की है। बंगला डॉक्यूमेंट्री फिल्म का हिंदी में अनुवाद किया। इनकी कहानियाँ, एकाँकी, कविताएं और रंगमंच पर आलेख हंस, आजकल, समकालीन भारतीय साहित्य, वागर्थ, कथादेश, समावर्तन, अक्षर-शिल्पी, वीणा, विश्व-गाथा, प्रभात ख़बर आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं।
रंगमंच के क्षेत्र में निरंतर और उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए इन्हें विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया जाता रहा है – राष्ट्रीय रंग-सम्मान, विवेचना रंगमंडल, जबलपुर द्वारा नाट्य शिरोमणि सम्मान, सेतु सांस्कृतिक केंद्र, बनारस द्वारा संस्कृति और साहित्य सम्मान, भारतीय भाषा परिषद् द्वारा अनन्या सम्मान, हिंदुस्तान क्लब, कलकत्ता द्वारा गुंजन कला सदन, जबलपुर द्वारा ‘संतश्री नाट्य अलकंरण’ सम्मान आदि।
आइए पढ़ते हैं उमा झुनझुनवाला की कविताएं सुमन सिंह के रेखांकनों के साथ-राकेश श्रीमाल 
============================================
सुनो दुष्यंत
प्रिय दुष्यंत
एक बार तुमने कहा था –
हो कहीं भी आग
लेकिन आग जलनी चाहिए
देखो आग जली थी
दपदपाई थी चौराहे पे
ऊंची ऊंची लपटों के साथ
आग थी
सो दपदपा गई
स्त्री की देह
दुष्यंत प्यारे
तुम जानते थे न
हर कोई जानता है ये
पत्थर से आग पैदा हुई
आग से सभ्यता
सभ्य हुए तो इच्छाएँ नाग हुईं
नाग ज़हर उगलने लगे
ज़हर फिर आग हुई
उफ़्फ़ ! जानकारियाँ ये आग की
जुगुप्सा नहीं गर्व धधकाते हैं न
कितना ग़ज़ब है न दुष्यंत !
हमने इतिहास में पढ़ा
शास्त्रों में भी पढ़ा
बचपन में ही
पढ़ा दिया जाता है सबको
स्त्रीत्व बचाने के लिए
स्त्री या तो स्वयं जौहर करे
या लोग बन्दोबस्त कर दें
फिर चाहे वो ख़ाक हो जाए
या आग से निकल समा जाए धरती में
ओ दुष्यंत
आग की ख़्वाहिश
नहीं करनी चाहिए थी तुम्हें
शायद तुम नहीं जानते थे
ये आग नाना रूप ले लेगी
अहम और शरीर की आग
भूख और हिंसा की आग
जाने कैसी कैसी विकृत आग
जिसे बुझाने के लिए
स्त्री हो जाएगी अभिशप्त
सुनो दुष्यंत
एक बार फिर लिखो कविता आग पर
लेकिन इस बार स्याही से नहीं
स्त्रीदेह की राख से लिखना
ताकि शब्दों की आग
पन्नों से निकल कर
काली इच्छाधारियों को स्वाहा कर दे
स्त्री की गरिमा का बार बार
यूँ धू धू होकर जल जाना
अच्छा तो नहीं है न कवि !!
—-
 
 मिलन
मैं क्षितिज के
उस कोण पे खड़ी हूँ
जहाँ अँधेरा और उजाला
दो विपरीत ध्रुवों पे
मौजूद है
अँधेरा और उजाला
दो अलग अलग अस्तित्व हैं
लेकिन इस कोण से
मुझे सब अँधेरे की तरफ़
बढ़ते नज़र आ रहें हैं
अँधेरे में
आकर्षण बहुत है
सारे गुरुत्वाकर्षणों से परे
अंतरिक्ष के उस काले छिद्र
के खिंचाव में सारी अभिलाषाएं
समा जाने को आतुर हैं
समुद्र में घटनाएं घटित हो रही हैं
घटनाएँ बादल बन रही हैं
बादल नम हो रहें हैं
नमी में उजालों के कण
अंतरिक्ष में फ़ैल रहे हैं
क्षितिज के
जिस कोण पे मैं खड़ी हूँ
वहाँ एक छोटी सी चाह
अपनी बड़ी बड़ी आँखों से
उजालों के उन कणों को
सुडुक रही है अपने अन्दर
उन आँखों का गुरुत्वाकर्षण
ज़्यादा मुलायम था जो
मेरे रोमकूपों को भरता गया
अपनी कोमल सिक्त बूंदों से
मेरी रूह को उजाला दे गया
मैंने देखा
क्षितिज के इस कोण पे
चल रहा था जो संघर्ष
अँधेरे और उजाले में
आकाश और समंदर के मिलन ने
उसे एक नीली रेखा में बदल दिया
अब नीला उजाला
नर्म चाहतों के साथ
अँधेरे की आकर्षक धुन पर
लहरों सा नर्तन करते झूम रहे हैं
और चाँद की मीठी रौशनी में
आकाश और समंदर आलिंगनबद्ध हैं
मैं क्षितिज के
इस कोण पे खड़ी
इस अदभुत मिलन की साक्षी
उस नीली रेखा में
घुलती मिलती घटती बढती
अँधेरे उजाले में समाती
उत्सव के महा उत्सव की
प्रतीक्षा में…
अनवरत…
पुलक…
मुदित…
———
उत्सव
उत्सव..
जन्म और मृत्यु का
एक बहाना है
और इसालिए मैं
मरना चाहती हूँ बार बार
कि जन्म ले सकूँ बार बार
लोग याद करें मुझे बार बार
चर्चा करें मेरी रचना की हर प्रक्रिया की
उसकी उपेक्षा किए जाए वाले कारकों की भी
सुना है मैंने
उत्सवों का असर रहता है ज़िन्दगी भर
मरने के बाद लोगो की हर चर्चा में
चर्चा में होना ज़िंदा होना होता है बन्धु
वरना जीवन और मृत्यु
मात्र विलोम शब्द हैं
———-
 डर
डर हमें इकट्ठा कर देता है
एक ही जगह
हम देखने लगते हैं
एक साथ एक ही ओर
हममे हिम्मत जुटती है
एक साथ होने पे
अच्छा है
हम डरते हैं
कम से कम इसी बहाने
हम साथ होते हैं
शायद कभी इकट्ठे मुकाबला कर पाएँ डर से
———–
 
जलधाराएँ
सबके अपने अपने पर्वत थे
अचल..
अटल..
एक दूजे से
कभी न मिल पाने को
अभिशप्त
और मैं
शीर्ष पर बर्फ़ सी जमी
इन सबकी साक्षी
उनकी कठोरता को
अपने आँचल से ढाँपती
उन्हें तरल बनाने की यात्रा में
पिघलती
उनके मध्य से बहती जाती
कि उनमें
कोमल साँसों सा
पथ हो
जीवन के सौंदर्य का
सार हो
भावों की तीव्रता का
संचार हो
…जलधाराएँ अक्सर कठोरता बहा ले जाती हैं
———–
हज़ार दिन पीड़ा के
साधारण पीड़ा से
नहीं मरती स्त्रियाँ
प्रेम की पीड़ा मार देती है उन्हें
स्त्री के लिए प्रेम
नहीं होता चौसर हार जीत का
बस प्रेम होता है
इसलिए वो प्रेम में
थक जाती हैं जब
–मर जाती हैं
मरना नियति है
जैसे पैदा होना
लेकिन हताशा में… निराशा में… ?
मरना सहज नहीं होता
जिजीविषा ज़्यादा मज़बूती से
होती है जीवित वहाँ
अक्सर लोग
मान लेते हैं इसे
स्त्री की कमजोरी
भूल जाते हैं
सहती है स्त्री
हर प्रतिक्षण  घात
व्यास और बाल्मीकि ने भी
कहाँ समझा स्त्री को
उसकी हज़ार हज़ार ख्वाहिशों को
स्त्री हर दिन हज़ार दिन की पीड़ा सहती है
और हर रात बिस्तर की
हज़ार सिलवटों में हज़ार मौत मरती है
बस वो नज़र नहीं आता
और जो मौत नज़र आती है
दरअसल वो मौत नहीं होती
वह सीता होना होता है
वह द्रौपदी होना होता है
वह स्त्री होना होता है
============
सुमन सिंह : स्मृतियों के एकांत का चित्रकार
——————————————————
                            -राकेश श्रीमाल
          भारतीय समकालीन चित्रकारों में ऐसे व्यक्तित्व बहुत कम हैं, जिन्हें कला के इतिहास, अभी की यथास्थिति और अपने तईं उनके लिए फिक्र को अपने सहज सम्वाद में उपस्थित करते देखना न केवल सुखद लगता है, बल्कि एक विशिष्ट किस्म की संतुष्टि भी देता है। सुमन सिंह उन्हीं में से एक हैं। थोड़े लंबे अंतराल तक वे चित्र-रचना से दूर जरूर रहे, लेकिन उनकी रचनात्मक जिज्ञासा और उसकी पूर्ति के लिए वे लगातार कला पर कुछ न कुछ लगातार लिखते रहे। उन्होंने अपनी निगाह से समकालीन कला-परिदृश्य को ओझल नहीं होने दिया और अपनी शोधपरक लेखनी के जरिए वे उसे उपलब्ध करवाते रहे। फिलहाल वे चित्र बनाने में भी फिर से सक्रिय हुए हैं। इस सक्रियता को उनके साथ ‘कला में वापसी’ की तरह नहीं देखा जा सकता। क्योंकि वे चित्र उकेरने की अपेक्षा चित्र के रचनातत्व की वैचारिकी में मशगूल रहे और एक चित्रकार की समझ की तैयारी के साथ पुनः रचनारत हुए हैं। वे चित्रकला के कमरे की खिड़की पर खड़े बहुत कुछ देख रहे थे, अब वे उसी कमरे में कैनवास के सामने बैठ गए हैं।
          बिहार के तत्कालीन मुंगेर जिले के जिस हिस्से के एक गांव में उनका जन्म हुआ वह हिस्सा आज बेगुसराय जिले का भाग है। किन्तु उनका बचपन तत्कालीन मुंगेर के कई हिस्सों में बीता, कहीं न कहीं हर जगह कला और कलाकार की उपस्थिति बनी रही। संयोग से मिथिला के जिस हिस्से में उनका ननिहाल है, वहां के स्थाानीय कस्बाई बाजार में एक कलाकार हुआ करते थे। जिनका मुख्य काम तो देवी-देवताओं की प्रतिमाएं बनाना था, लेकिन बाकी दिनों वह पेंटिंग किया करते थे। ऐसे में आते जाते उनको चित्र बनाते देखने को सुमन सिंह को मिल ही जाता था। वैसे भी तत्कालीन बिहारी समाज में लगभग हर कस्बे -मुहल्ले या गांव में मालाकार और कुम्हार समुदाय की उपस्थिति तो होती ही थी। स्कूली दिनों में मुंगेर के जिस मुहल्ले में उनका रहना हुआ, उसके आसपास के मुहल्लों में कई नामचीन मूर्तिकारों के परिवार रहा करते थे। उन्हीं में से एक थे छक्कू पंडित। उन दिनों बिहार के उस हिस्से में उनका बड़ा नाम था, हालांकि शारीरिक तौर पर वे दिव्यांग थे, क्योंकि उनकी पीठ पर कूबड़ था। स्थानीय बाजार में उनके घर के पास से जब भी उनका गुजरना होता था, तब या तो वहां प्रतिमाओं का निर्माण होता रहता था या नाटक के पर्दे के लिए विभिन्न दृश्यावलियां बनती रहती थीं। ऐसे में आते जाते या कभी कभी चुपके से घर से निकलकर वहां की गतिविधियां देखना उन्हें काफी रूचता था। हालांकि मुंगेर जिले के विभिन्न हिस्सों में मूर्तिकार या कलाकार परिवारों की उपस्थिति की खास वजह का पता उन्हें बहुत बाद में चला। जब कला पर लेखन के क्रम में कला इतिहास की जानकारियां जुटाने का समय आया। तब यह जानकारी सुमन सिंह को हुई कि पाल राजवंश के तीसरे शासक देवपाल ने तत्कालीन मुददगिरि यानी मुंगेर को अपनी राजधानी के तौर पर विकसित करने का सोचा था। कतिपय इन्हीं कारणों से उस इलाके में मूर्तिकार परिवारों की संख्या कुछ ज्यादा रही। विदित हो कि पाल कालीन मूर्तिशिल्प का एक केन्द्र इस शहर को भी माना जाता है।
        इसके अलावा एक तथ्य यह भी है कि वर्तमान मुंगेर को प्राचीन अंग का हिस्सा भी माना जाता है, ऐसे में बिहुला-विषहरी की लोकगाथा उस अंचल को एक खास पहचान देती है। इस लोकगाथा के क्रम में स्थानीय मालाकार यानी माली समुदाय द्वारा मंजुषा चित्रण की परंपरा भी बहुत सामान्य सी थी। प्रत्येक मालाकार परिवार की स्त्रियां इस चित्रण से अनिवार्य रूप से जुड़ी थी, हालांकि अब इन स्थितियां में काफी कुछ बदलाव आ चुका है। सुमन सिंह बताते हैं कि– “इतना तो कहा ही जा सकता है कि तत्कालीन समाज में कला एक प्रोफेशन के तौर पर भले ही कम लोगों द्वारा अपनाई जाती थी, किन्तु हर परिवार में किसी न किसी रूप में इसकी अनिवार्य उपस्थिति थी। मसलन सूजनी या कथरी बनाने से लेकर तकिया के कवर और बिछावन के चादरों तक पर कसीदाकारी या अन्य तरीकों से चित्रकारी या कलाकारी आम बात थी। इतना ही नहीं शादी विवाह के अवसर पर कोहबर पेंटिंग तो महिलाओं की जिम्मेदारी होती थी। किन्तु विवाह मंडप की सजावट का जिम्मा पुरूषों का ही होता था। साथ ही सरस्वती पूजा और अन्य समारोहों के अवसर पर पंडाल की सजावट से लेकर रंग बिरंगे कागजों की मदद से लड़ियाँ बनाना आदि तो चलता ही रहता था। तब आज की तरह डेकोरेटर तो होते नहीं थे, ऐसे में यह सब जिम्मा स्थानीय युवाओं का ही होता था। जिसका नेतृत्व अक्सर मुहल्ले के ही जगत भैया या चाचा किस्म के लोग किया करते थे।”
                     अब स्कूली दिनों में इन तमाम बातों में से किसका असर सुमन सिंह पर रहा, यह कहना तो थोड़ा मुश्किल है लेकिन उन्होंने गाहे बगाहे चित्र बनाना शुरू कर दिया। दूसरी तरफ घर मुहल्ले की सजावट से जुड़े मामलों में तो उनकी उपस्थिति अनिवार्य होती चली गयी। हाई स्कूल तक आते आते स्थिति यहां तक आ चुकी थी कि किसी भी मांगलिक अवसर पर सजावट का जिम्मा उनके पास आ ही जाता था। उन्होंने साइंस विषय से हाई स्कूल करने के बाद कॉमर्स लेकर इंटर मीडियट की पढ़ाई बेगूसराय के स्थानीय कॉलेज में की। उन्हीं दिनों उनकी एक छोटी बहन (बुआ की लड़की) पटना स्थित बांकीपुर गर्ल्स हाई स्कूल में पढ़ने लगी। तब लड़कियों के लिए इसे बिहार का सबसे बेहतर स्कूल माना जाता था। बहन वहां छात्रावास में रहती थी, यहां तक तो सब सामान्य ही कहा जा सकता है। किन्तु एक खास बात यहां यह थी कि छात्राओं के लिए कला विषय का विकल्प यहां मौजूद था। उनकी बहन ने भी विषय के तौर पर इसे ले रखा था। ऐसे में छुट्टियों में जब कभी भी उसका सुमन सिंह के यहां आना होता था, वह अपने साथ चित्र सामग्रियां जरूर लाती थी। जैसे  स्केच बुक व वाटर कलर इत्यादि। तब वे दोनों भाई बहन साथ साथ चित्र बनाया करते थे। उसी बहन ने कभी सुमन सिंह को बताया कि पटना में एक ऐसी भी जगह है जहां कला की पढाई होती है और उसकी टीचर मैडम ने आर्ट की पढ़ाई वहीं से कर रखी है।
             इसके बाद क्या हुआ, वह सुमन सिंह ही बतलाते हैं– “तब अपने लिए पटना जाने का कभी सोचा भी नहीं था, किन्तु पिताजी की सलाह थी कि जाकर पता तो किया ही जा सकता है कि कॉलेज कहां है और क्या पढाया जाता है। किसी तरह अपने एक पड़ोसी भैया के साथ पटना पहुंच कर कॉलेज तक जा पहुंचे। लेकिन वहां जाकर पता चला कि ऐसा कॉलेज तो है लेकिन यहां अभी पठन-पाठन सब बंद है क्योंकि कई वर्षों से यहां के छात्र हड़ताल पर हैं। ऐसे में लौटकर घर आ गए, इस निश्चय के साथ कि अब कॉमर्स ग्रेजुएट ही बनना है। किन्तु कुछ दिनों बाद पिताजी के किसी मित्र ने उन्हें जानकारी दी कि अब वहां फिर से पठन-पाठन का सिलसिला शुरू हो चुका है। अबकी बार यहां आकर जानकारी मिली कि इस सत्र का नामांकन वगैरह हो चुका है अत: अगली बार प्रयास करें। मैट्रिक के रिजल्ट के बाद आवेदन प्रपत्र वगैरह मिल जाएगा और उसके बाद इन्ट्रेंस टेस्ट देना होगा। बहरहाल अगले बरस वह नौबत भी आयी। गांव से पटना आया और सबसे पहले बहन के छात्रावास जाकर रंग, ब्रश व कलर प्लेट वगैरह लिया और इंट्रेस एक्जाम दिया। बताते चलें कि उस दौर तक पटना के अलावा कहीं भी आर्ट मैटेरियल मिलने की कोई सोच ही नहीं सकता था। स्थानीय मूर्तिकार व कलाकार अपने स्तर पर इन सामग्रियों का निर्माण करते थे या जुटाते थे। ऐसे में किसी गैर कलाकार परिवार के लिए होली और चुने के रंग के अलावा कोई और रंग जुटाना संभव भी नहीं था। इ्न्ट्रेस एक्जाम के बाद यह जानने की उत्सुकता रही कि अपना चयन हुआ या नहीं, बड़े उत्साह से रिजल्ट देखने पहूंचा तो पता चला कि अपना नाम उसमें कहीं है ही नहीं। अबकि घर वापसी के बाद तो लगभग कसम ही खा ली कि अब बस पढ़ाई लिखाई के अलावा कुछ सोचना ही नहीं है। लेकिन नियति को शायद यह भी मंजूर नहीं था, ऐसे में एक दिन अचानक एक पत्र आता है कि आपका नाम तीसरे वेटिंग लिस्ट में है, अत: अमुक तिथि तक आप अपना नामांकन करा लें। तो आनन फानन में बड़े भाई साहब के संग पहुंच लिए पटना कला एवं शिल्प महाविद्यालय और उसी दिन नामांकन की औपचारिकता पूरी कर ली गई। उसके बाद पांच साला इस कोर्स में हमने सात साल तो बिताए ही गुरूजनों के बताए राह पर चलकर पहुंच गए कला की इस दुनिया में। कॉलेज के बाद ललित कला की स्कॉलरशिप जिसे तब गढ़ी ग्रांट कहा जाता था, के तहत पहुंच गए लखनऊ। जहां एक साल बिताने के क्रम में कला जगत को थोड़ा और जाना व समझा। इसके बाद कोशिश रही मास्टर डिग्री में नामांकन की। लेकिन बड़ौदा से लेकर बनारस और रवीन्द्र भारती तक नहीं हुआ। अंतत: फिर से गांव वापसी। अब इरादा था कि किसी काम रोजगार में संभावनाएं तलाशी जाएं। लेकिन तब तक अपने कुछ मित्र बिहार से बाहर दिल्ली का रूख कर चुके थे, उन्हीं में से एक हैं नरेन्द्र पाल सिंह। अब जाने क्या धुन चढ़ी कि नरेन्द्र पाल सिंह ने लगातार पत्र लिखना शुरू किया। इन सभी पत्रों का मजमून लगभग इतना ही होता था कि दिल्ली में रहने का ठिकाना बना लिया है, अब बस आप तुरंत यहां चले आओ। अंतत: नरेन्द्रपाल सिंह की जिद भारी पड़ी और रहने के नियत से अपना भी आना हो ही गया। उसके बाद लगभग तीन सालों तक मित्रों के आसरे ही रहा। जिनमें नरेन्द्र के अलावा एक और महत्वपूर्ण नाम हैं मूर्तिकार श्रीकांत पाण्डेय का। वैसे सच कहूं तो इस मामले में काफी धनी तब भी था और आज भी हूं कि जब कभी भी किसी तरह की परेशानी आई मित्र मंडली ने आगे बढ़कर समाधान तलाशा। बहरहाल इन्हीं मित्रों को जब यह लगा कि फ्रीलांसर के तौर पर अपन पूरी तरह अनफिट ही रहेंगे तो अपने प्रयासों से राष्ट्रीय सहारा अखबार के दफ्तर तक पहुंचा दिया। वर्ष 1994 से शुरू हुआ यह सफर आज भी अगर जारी है तो इसमें अपने योगदान से ज्यादा मायने मित्रों, अधिकारियों व सहकर्मियों के भरपूर सहयोग को मानता हूं। यहीं रहते नियमित लेखन के साथ साथ कुछ कुछ अनियमित सा चित्र सृजन अब तक चल ही रहा है।”
           लब्बोलुआब बस इतना ही कि सुमन सिंह अब दिल्ली के हो गए हैं, लेकिन उनकी जड़े अमूमन उनकी स्मृतियों से ही जुड़ी रहती हैं। वे बखूबी जानते हैं कि कला में तमाशबीनों की भीड़ बेतहाशा बढ़ गई है। लेकिन वे अपने एकांत में चुपचाप अपना रचनाकर्म करने में यकीन रखते हैं और नकली सक्रियता के मुखरपन से दूर रहते हैं। वे कला-बिरादरी को जोड़ने में भी भरसक प्रयास करते रहते हैं। कला के कालखंड पर उनसे रोचक और तथ्यपूर्ण बातचीत हो सकती है तो कला और कलाकारों के लिए उनकी रचनात्मक और व्यवहारिक फिक्र को भी अनुभव किया जा सकता है। उन्हें सतत रचनाशीलता में व्यस्त रहने की शुभकामना देना मुझ जैसे नासमझ कलाप्रेमी के लिए किसी कर्तव्य से कम नहीं है। वे चित्र बनाते रहें, चित्रों पर खूब बतियाते रहें, ऐसी विनम्र उम्मीद भी की जा सकती है।
=============================
राकेश श्रीमाल (सम्पादक, कविता शुक्रवार)
कवि और कला समीक्षक। कई कला-पत्रिकाओं का सम्पादन, जिनमें ‘कलावार्ता’, ‘क’ और ‘ताना-बाना’ प्रमुख हैं। पुस्तक समीक्षा की पत्रिका ‘पुस्तक-वार्ता’ के संस्थापक सम्पादक।
===========================
दुर्लभ किताबों के PDF के लिए जानकी पुल को telegram पर सब्सक्राइब करें
 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

पुतिन की नफ़रत, एलेना का देशप्रेम

इस साल डाक्यूमेंट्री ‘20 डेज़ इन मारियुपोल’ को ऑस्कर दिया गया है। इसी बहाने रूसी …

50 comments

  1. Bahut hi acchi,sahaj aur man ko chuti hui kavitayen.
    Jeewan ke har rango ko ukerti aur stri man ki vivechna karti ..sashkt kavitayen.

  2. गीता दूबे

    बेहद खूबसूरत कविताएं जो गंभीरता से स्त्री सवालों को उठाती हैं। बधाई उमा दी।

  3. श्रीमाल जी का प्रस्तुतीकरण और सुमन जी का रेखांकन इन उत्कृष्ट काव्य रचनाओं को और आकर्षक बना रहा है. दोनों को साधुवाद !
    उमा जी की कविताएँ पाठक को involve कर लेती है, यूँ लगता है ये छपे हुए शब्द नहीं वह स्वयं कह रही है और पाठक सुन रहा है, प्रवाह ही कुछ ऐसा है.’सुनो दुष्यंत’ की हिदायत की स्त्री देह की राख से कविता लिखना, सब कुछ समेट लेती है. ‘जल धाराएँ’ कठोरता को बहा ले जाती एक सुकून की बात भी है. मृत्यु में नया जीवन देखना-दर्शन की गहराई, एकता की ताक़त (डर), ”मिलन’ का मंज़र साकार, उमा जी की चुनिंदा कविताएँ एक दावत ख़ासकर इस कोरोना काल के एकांत में.

  4. सुमन जी का चित्रांकन और श्रीमाल जी का प्रस्तुतीकरण इन उत्कृष्ट कविताओं को और शानदार ढंग से पाठक तक पहुँचा रहा है. सभी कविताओं की यात्रा में ऐसा लगा उमा जी ख़ुद सुना रही है शब्द भावों को चेहरे पर लिए. दुष्यंत को हिदायत कि स्त्री देह की राख से लिखे, ‘डर’ क्यों जब हम एक हो जायें, मृत्यु का ‘उत्सव’ गहन दर्शन, ‘जल धाराएँ’ कठोरता बहा ले जाती है सकारात्मक दृष्टि और ‘मिलन’ में मंज़र साकार.
    कोरोना काल के एकांत में उमा जी की रचनाएँ एक दावत.

  5. सभी कविताये बहुत अर्थपूर्ण…चित्र भी बहुत अर्थपूर्ण..हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं उमा जी

  6. विजय सिंह

    हमारे समय की गवाह यह कविताएँ चिरंतन हैं। यह कोई ख़ुशी की बात नहीं हैं कि यह बातें हर दौर से गुज़रते हुए यहाँ तक सालिम आ पहुँची हैं। यह कविताएँ गवाह हैं कि हम आज भी अपनी आदिम चिंताओं और जिज्ञासाओं के साथ वहीं खड़े हैं जहाँ तथाकथित सभ्यताओं का मुलम्मा चढ़ने से पहले खड़े थे। राहत सिर्फ़ इतनी सी है कि साहित्य इन जुगुप्साओं की ओर ध्यान दिलाने के अपने कर्त्तव्य का निर्वाह कर पाए ऐसे रचने वाले लोग, जो मौजूद रहते आएँ है, आज भी मौजूद हैं और उमा झुनझुनवाला उनमें से एक हैं।

  7. बहुत सुन्दर सीरीज, आपसबों को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं

  8. As always Uma mam’s poem give us food for thought…..Coupled with meaningful sketches by Suman sir…… Congratulations

  9. आप की लेखनी अतुल्य अद्भुत ओर प्रेरणादायक होती है

  10. राकेश जी, तहे दिल से शुक्रिया आपका 🙏🙏
    सुमन जी आपका भी बहुत बहुत आभार कविताओं के लिए अपने रेखाचित्रों को साझा करने के लिए 🙏🙏
    और जानकीपुल का भी धन्यवाद इन्हें प्रकाशित करने के लिए 🙏🙏
    उम्मीद है पाठकों को कविताएँ पसंद आयेंगी 🌿🌿

  11. पूनम चंद्रलेखा

    सभी कविताएं हृदय स्पर्शी और मार्मिक है जिनमे स्त्री की पीड़ा खूबसूरती से अभिव्यक्त हुईं है। कविताओं को उत्कृष्टता प्रदान karvrahen सुमन जी के उत्कृष्ट चित्र। दोनों को बधाई।

  12. Mantramugdha Kar Diya umaji Aapne…. Apki kavitaein mujhe bahut inspire Karti hai… Atyant bhavpurn..

  13. मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
    हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए… दुष्यंत कुमार ने अपनी इस ग़ज़ल में विरोध और प्रतिवाद की चेतना के जिस बहुमुखी आग की परिकल्पना की थी, उसकी एक तीक्ष्ण लपट है उमा झुनझुनवाला की कविता ‘सुनो दुष्यंत’।
    ….”एक बार फिर लिखो कविता आग पर
    लेकिन इस बार स्याही से नहीं
    स्त्रीदेह की राख से लिखना”….कहती हुई उमा की औरत ने अपने अस्तित्व में जागे एक संकल्प को उद्भासित किया है, जहां ‘स्त्रीदेह की राख’ से भी, लिखी जाएंगी तक़रीरें, लड़े जाएंगे जंग। दुष्यंत कुमार के आह्वान को आज की नारी का यह आश्वासन है।

    “….उत्सव के महा उत्सव की
    प्रतीक्षा में…
    अनवरत…
    पुलक…
    मुदित…” एक ‘मिलन’ को अपनी आंखों में सजाए कोई मरना चाहता है बार-बार, जन्म लेना चाहता है बारबार; चर्चा में रहना चाहता है क्योंकि ‘चर्चा में होना जीना होता है बंधु!’

    ‘जीवन और मृत्यु, मात्र विलोम शब्द हैं’…. लेकिन उमा का ‘डर’ लोगों को इकट्ठा करने का साधन है, जिससे हिम्मत जुटती है;
    “…कम से कम इसी बहाने
    हम साथ होते हैं
    शायद कभी इकट्ठे मुकाबला कर पाएँ डर से”…. वैचारिक स्तर पर कवि की यह एक मौलिक सोच है। इस ‘सहज- समाधि भली’ वाली दृष्टिभंगी में भी उद्वेग से भरे एक सरोकार भाव की लपट दिखती है।

    इस लपट का शमन करती हुई आती है उमा की कविता ‘जलधाराएं’ जो ‘अक्सर कठोरता बहा ले जाती हैं’…. हालांकि स्त्रियों पर होते ‘हर क्षण प्रतिघात’ से जो आत्माएं मरती हैं उनकी वेदना और पीड़ा को उजागर करने से कवियत्री नहीं चूकतीं। तंज कसती हुई उमा कहती हैं –
    “…दरअसल वो मौत नहीं होती
    वह सीता होना होता है
    वह द्रौपदी होना होता है
    वह स्त्री होना होता है।” तंज करारा है, और अंदर तक चोट भी करता है, लेकिन यह J. G. Ballard की ‘atrocity exhibition’ नहीं है, बल्कि सिल्विया प्लॉथ के ‘Lady Lazyrus’ की उस उक्ति की तरह है – ‘dying is an art.’

    इन अच्छी कविताओं के लिए उमा जी को बधाई!… और जानकीपुल को साधुवाद, इन कविताओं को हमसे साझा करने के लिए!

    (मृत्युंजय)

  14. आप सभी का आभार हौंसला अफ़ज़ाई के लिए 🙏🙏
    बाकी मित्रों की टिप्पणियां भी यहाँ जल्दी ही नज़र आ जाएँगी 🌹🌹

  15. Hrishikesh Sulabh

    उमा की कविताएँ पढ़ते हुए कई ऐसे जीवन प्रसंगों से सामना होता जिनकी अनुगूँज अंतर्मन में लगातार बनी रहती है। ये कविताएँ भाषा और कहन के स्तर पर भी प्रभावित करती हैं।
    यह बेहद सुखद है कि प्रिय सुमन जी पर राकेश जी की टिप्पणी भी साथ-साथ पढ़ने को मिली। प्रियवर श्रीमाल मेरे प्रिय कवि हैं। जबलपुर की एक मुलाक़ात नहीं भूलती।

  16. बहुत ही अच्छे ढंग से उमा जी की कविताओं का प्रस्तुतिकरण किया गया है। कविताएँ एकदम अपने आसपास गूँजती हुई महसूस हो रही ।वैसे जीवन मृत्यु क्या है एक दूसरे के विलोम ही तो “याद रहेगी यह लाइन ।
    सुमन सिंह जी के रेखांकन भी प्रभावित कर रहे है ।

  17. Dr Reshmi Panda Mukherjee

    उमा दी बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। जिस साफ़गोई से आप अपने विचार कविताओं के माध्यम से व्यक्त करती हैं वह काबिले तारीफ़ है। मुझे सभी कविताएं दिल को छूने वाली लगीं पर दुष्यंत और उत्सव अधिक अपील करती हैं।

    बेबाकपन और साहस आपके व्यक्तित्व और कविताएं दोनों में देखी जा सकती है।
    शुभकामनाओं सहित
    रेशमी पंडा मुखर्जी

  18. उमर चंद जायसवाल

    उमा जी की कविताऐ अच्छी लगी। कवियत्री को बहुत बहुत बधाई।

  19. I don’t think the title of your article matches the content lol. Just kidding, mainly because I had some doubts after reading the article.

  20. I’m not sure exactly why but this website is loading incredibly
    slow for me. Is anyone else having this problem or is
    it a issue on my end? I’ll check back later and see if the problem
    still exists.

  21. Pretty section of content. I just stumbled upon your blog and in accession capital to assert that
    I get in fact enjoyed account your blog posts. Any way I will be subscribing to your feeds and even I achievement you access consistently fast.

  22. Hi there, I check your blog daily. Your story-telling style is witty, keep doing
    what you’re doing!

  23. Does your website have a contact page? I’m
    having problems locating it but, I’d like to shoot you an e-mail.

    I’ve got some creative ideas for your blog
    you might be interested in hearing. Either way, great site and I look forward to seeing
    it develop over time.

  24. When some one searches for his vital thing, thus he/she desires to be available that in detail, thus that thing is maintained over here.

  25. Hello would you mind stating which blog platform you’re working with?
    I’m looking to start my own blog soon but I’m having a tough
    time deciding between BlogEngine/Wordpress/B2evolution and Drupal.
    The reason I ask is because your design seems different then most blogs and I’m looking for something
    completely unique. P.S Apologies for getting off-topic but I had to ask!

  26. Good information. Lucky me I discovered your site by chance (stumbleupon).

    I’ve book-marked it for later!

  27. I always used to read post in news papers but now as
    I am a user of web so from now I am using net for content, thanks
    to web.

  28. The other day, while I was at work, my cousin stole my iPad and tested to
    see if it can survive a twenty five foot drop, just so
    she can be a youtube sensation. My apple ipad is now
    broken and she has 83 views. I know this is
    entirely off topic but I had to share it with someone!

  29. You are so cool! I don’t believe I’ve truly read anything like that before.
    So great to find another person with some unique thoughts on this topic.
    Seriously.. thank you for starting this up. This website is something that is required
    on the internet, someone with some originality!

  30. You actually make it appear really easy along with your presentation however I to find this matter to be really something which I feel I might never understand.
    It seems too complex and very wide for me. I’m taking a look ahead for your subsequent submit,
    I will attempt to get the cling of it!

  31. This is really interesting, You are an overly
    skilled blogger. I’ve joined your feed and stay up for in quest of extra of your magnificent post.

    Also, I’ve shared your web site in my social networks

  32. I go to see day-to-day a few web sites and sites to read articles or reviews, however this webpage presents quality based posts.

  33. I love it when people come together and share thoughts.

    Great website, keep it up!

  34. It’s going to be finish of mine day, but before finish I am reading this fantastic piece
    of writing to increase my know-how.

  35. Way cool! Some very valid points! I appreciate you penning this write-up and the rest of the site is very good.

  36. Howdy, i read your blog from time to time and i own a similar one and i was just wondering
    if you get a lot of spam feedback? If so how do you stop it,
    any plugin or anything you can suggest? I get so much lately
    it’s driving me crazy so any support is very much appreciated.

  37. Hello! This is my 1st comment here so I just wanted to give a quick shout out and
    tell you I truly enjoy reading through your blog posts.
    Can you recommend any other blogs/websites/forums that go over the same topics?
    Thank you!

  38. Great post. I am going through many of these issues as well..

  39. Hey there! Do you know if they make any
    plugins to help with Search Engine Optimization? I’m
    trying to get my blog to rank for some targeted keywords but I’m not seeing
    very good success. If you know of any please share. Thank you!

  40. Heya i’m for the first time here. I came across this board and I find It really useful & it helped me out a lot.
    I hope to give something back and aid others like you helped
    me.

  41. Wow, awesome blog structure! How lengthy have you been blogging for?
    you made blogging glance easy. The entire look of your site
    is fantastic, as well as the content!

  42. Wow! Finally I got a web site from where I be capable of really take useful facts concerning my study and knowledge.

  43. Thank you for the good writeup. It in fact was a amusement account it.
    Look advanced to more added agreeable from you! By the way, how can we communicate?

  44. Stunning quest there. What happened after?
    Thanks!

  45. Hello, i read your blog occasionally and i own a similar one and i was just curious if you get a
    lot of spam responses? If so how do you prevent it, any plugin or
    anything you can advise? I get so much lately it’s driving
    me crazy so any support is very much appreciated.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *