आज पढ़िए युवा लेखिका प्रियंका ओम की कहानी ‘रात के सलीब पर’। एक अलग तरह की पृष्ठभूमि की यह कहानी बेहद पठनीय है और रोचक भी-
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शहर से दूर पश्चिमी तट पर संपर्क तंत्र से रहित, लम्बे ताड़ दरख्तों से घिरा यह पोशीदा ज़ज़ीरा बुजदिला वास्ते बहिश्त है। शोर-शराबे से पस्त भागम भाग वाली चलती-फिरती दुनिया से दूर केतकी अक्सर यहाँ आती रहती है। उसे यहाँ का एकांत लुभाता है, यहाँ वक़्त ठहर जाता है। आइवरी कोस्ट का यह खुला अहाता उसकी पसंद की जगह है, विशेष कर ठीक बीच में झूलता सफ़ेद रस्सियों से बुना हम्मोक जहाँ अभी वह बैठी है। यहाँ से अनन्त समंदर और आकाश दोनों दिखाई देते हैं। चन्द्र मास के शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि वह देखती है आसमां के माथे पर चाँद का बड़ा सा टीका और बदन पर सितारों जड़ा दोशाला ओढे नई दुल्हन सी इठलाती हुई रात। नीचे चांदी के वर्क में लिपटा बहर यहाँ से वहां तक पिघले पारे का पसारा और उसपे मटकती किरणों की स्वरोवोस्कियाँ। सुदूर मगरमच्छ की आँखों सा टिमटिमाती लड़ियो वाला पूर्व की ओर बढ़ता बड़ा स पोत, ठीक उसके पीछे विशाल तैल-वाहक और जरा दूर होकर तैरता दोनों से छोटा ड्रिल-शिप !
पोत उसे कैद-ए-कफ़स जैसी उदासी से तर देता है, अनंतर वह आसमान ताकने लगती है। कई देर तक छुप्पन छुपाई में मशगूल शरारती बालकों से जलते बुझते तारों के पीछे भागते-भागते केतकी थक गई है, उसने अपनी श्रांत आँखें बंद ली। आँखे बंद करते ही पलकों के नीचे दृश्य चलने लगे जैसे बायस्कोप में चलते हैं| वह स्वैप करती जाती है, एक के बाद दूसरा, दूसरे के बाद तीसरा।उसका घर, उसका कमरा और उसका बिस्तर जिसकी चादर पर एक मामूली शिकन भी केतकी को असह्य है |आज न जाने कितने सलवटों का चश्मदीद होगा !
आते रुई के फाहों से खिलते छोटे-छोटे सफ़ेद-गुलाबी फूलगुच्छों वाला सुकेश की पसंद का आसमानी चादर लगा आई है, सरहाने दायीं टेबल पर कैलिफ़ोर्निया ड्रिफ्टवुड, सी साल्ट और लेमन ग्रास के सुवास वाली मोमबत्तियां जबकि गुसल में रोजमेरी की डंडियाँ रख आई है।खाने की टेबल पर कांच के गुलदान में गुलाबी देन्द्रोस और एक बाउल में केसर और मखाने वाली खीर।आज के दिन खीर बनाने की रवायत उसे अपनी जड़ से जोड़े रखती है। कमरे की बालकनी में छोटे पाया वाले सागौन की दो कुर्सियों के बीच में रखी गोल मेज़ पर पानी से अधभरे पीत घट में सुर्ख चंपा, बागीचे से हथेलियों का दोना भर बीछ लाइ थी। सबकुछ ठीक वैसा ही जैसा केतकी ने सोचा था!
दिवाता तय समय पर आ गई थी।यद्धपि उसकी स्याह गाढ़ी मृगनयनी आँखों घर के गोशे-गोशे में छौना सी कुलांचे मार रही थी। यों यह सब उसके लिये बेहद ही अजीब था किन्तु बाज मर्तबा हम वो सब करते चले जाते हैं जो जिंदगी हमसे चाहती है और जिन्दगी की राहें जरूरतों की गुलाम है सोच उसने दीर्घ सांस ली थी।
“मेरे लिये भी सरल नहीं” दिवाता की धुकधुकी को बखूबी समझते हुए केतकी ने दीवार पर टंगी एक तस्वीर देखते हुए कहा।तस्वीर शादी की तीसरी वर्षगाँठ की है, काले रंग के इवनिंग सूट में अधिक कोण बनाता सुकेश का बायां पैर आगे और दायाँ पैर पीछे डंटा है, कंधे से जरा नीचे घेरती उसकी दायीं बांह में झूलती केतकी ने बाएं हाथ से सुकेश का कन्धा थामा है जबकि दायीं हथेली को सुकेश ने अपने बाएं पंजे में कोमलता से खींच रखा है। दोनों की नज़रें एकदूजे की आँखों में कैद है। ईमान मोहब्बत है!
सुकेश पश्चिमी नृत्य में दक्ष है, केतकी ने बॉल का आयोजन रख उसे चौंका दिया था। प्रत्येक साल कुछ अनोखा कर वह सुकेश को चकित करती आई है!
“तुम नहीं मिलती तो जिंदगी कैसा तो उजाड़ होता” सुकेश ने दायाँ हाथ आगे बढाया था।
आसमानी रंग की टखने तक लम्बी गाउन पहने केतकी उसके हाथ में अपनी बायीं हथेली देते हुए “विपरीत तबियत के दो लोग एक दूसरे के साथ ग्रो करते हैं, अन्यथा जड़ता से मर जाते हैं” केतकी ने प्रेम से तर बतर आवाज़ में कहा तो सुकेश पुरे जोश-ए-खरोश से उसे अपनी बाहों में खींच मंद गति से वाल्ट्ज के बीट्स पर थिरकने लगा था।उसके क़दमों से ताल मिलाती मोहब्बत के नशे चूर केतकी कभी बाएं कभी दायें डोलती, कभी दूर जा वापस सीने से लग जाती!
तुम इतने बरस कहाँ रही – सुकेश बेकल हो आया था।
तुम तक पहुचती राहें चल रही थी – पंजे से हवा में एक गोल घेरा बनाती केतकी फुसफुसाई थी!
ठीक अभी हवा का एक तेज झोंका उसके नथुनों में गुलशब्बो की उन्मत्त खुशबू सुलगा गई।आँखे बंद किये जब वह खुश -कुन याद में खोई थी कोई रख गया, उसे यकीन है लेथाबो ने भिजवाया होगा।लेथाबो इस रिसोर्ट का हाकिम है।मालिकाना हक उसने अपनी नींद चूका कर हासिल किया है।उसके पिता की नज़र उसकी प्रेमिका पर थी, उसने रिसोर्ट के वृति प्रेमिका दे दी।अब वह अक्सर उसके पिता के साथ यहाँ आती है और उसे असह्य निगाहों से देखती है।उसकी दश्त जैसी उजाड़ आँखे देखने के बाद लेथाबो को महीनों नींद नहीं आती है।उसे नींद न आने की बीमारी हो गई है।पहले उसने जंगली बूटियों का सहारा लिया, अब वे बेअसर रहने लगी है।उसे उनींदी की आदत हो गई है!
तुम उसे वापस क्यों नहीं ले लेते? सुकेश उसकी बातों से उकता गया था!
वह कहती हैं मैं एक पाजी इंसान हूँ, उसने मुझसे बड़ा लुच्चा व्यक्ति नहीं देखा कहकर थूक दिया था।तैरकर आने के बाद भी लिजलिजा महसूस होता है, खुद से घिन आती है।जी करता है उसकी हत्या कर इस प्रगाढ़ कुल्जुम में विलीन हो जाऊं।लेथाबो शून्य में देखने लगा था!
फजूल ड्रामे कहकर सुकेश स्विमिंग पूल में डूबकी लगाने लगा, उसे लेथाबो की बातों से ऊब होती है!
केतकी को लेथाबो दानिशमंद लगता है, उसे जिंदगी का बहुत खूब तजुर्बा है लेकिन सुकेश को वह कोई सिरफिरा लगता है जो आठों पहर चरस की कैफियत में रहता है।दरअसल वह बेमतलब की बातों का उस्ताद है!
तुम्हारा पति कहाँ रह गया? वर्तमान में लेथाबो की आवाज़ पर केतकी चौंक गई।
दोनों कोहनियाँ पीछे बार पर टिकाये घुटनों तक लम्बी कटेंगे हरेम पैंट के ऊपर ढीली सफ़ेद छोटी शर्ट और केशों से रंग बिरंग बीड्स लगी झूलती चोटियों में लेथाबो उसे ही देख रहा है।हालाँकि उसके देखने के तौर को घुरना भी कहा जा सकता है।उसके हाथ में बीयर का कैन है, उसने अभी-अभी घूँट लिया है।उसकी आँखें अलाव सी धधक रही है और मांसल होंठो के मध्य सफ़ेद भुट्टे के दानों सी दन्त पंक्तियाँ बेशकीमती मनकों सी दमक रही है!
“अपनी बीमार माँ से मिलने अरुषा शहर गये हैं” मुनासिब हीला नहीं जानकर उसने भीतर ही अहल बहाना ढाल लिया “व्यापार के काम से दूसरे देश गये हैं” गोकि उसे लेथाबो से औचक ही इस प्रश्न की अपेक्षा नहीं थी वह थोड़ी असहज हो गई।
तुम उसके सूप में जहर तो नहीं मिला आई ? लेथाबो ने हंस कर कहा।
सुकेश ठीक कहता है “तुम झक्की आदमी हो” कहकर केतकी ने मलीबू का गिलास होंठों से लगा लिया।
बीयर का घूँट गटकते हुए लेथाबो ने कहा “मैंने उसकी बेरुखी देखी है”।
पहले के वर्षों में उसकी कैफियत खुशमिजाज़ थी, उसके प्लेलिस्ट में रूमानी गीत हुआ करता था।
एक उम्र बीत जाने के बाद आदमी ठीक वही आदमी नहीं रहता, उसकी प्राथमिकता मोहब्बत नहीं रह जाती!
केतकी कुछ कहती इससे पूर्व एक गोले मटोल छोकड़े ने आकर स्थानीय भाषा में कुछ कहा और “वैसे तो तुमसे बातें करना इत्मिनान था किन्तु एक आफत आ पड़ी है” कह लेथाबो उसके साथ निकल गया।उसके जाते ही केतकी पुनः सर तन्हा हो गई।उसे लेथाबों का होना भला लगता रहा था, वह उसकी बतकही की डोर थाम जिंदगी की पुरपेंच गलियों से बाहर निकल आना चाहती थी किन्तु उसके जाते ही वह पुनः उन्हीं कूंचे में बौरा गई!
जिस ओर संभ्रांत स्त्रियाँ राह नहीं लेती उसके मुहाने पर केतकी आ खड़ी हुई थी |
अगली लाइट से पहले मुझे उतार दें।ड्राइविंग सीट पर केतकी को देखते ही दिवाता बिदक गई थी।
एक कॉफ़ी भर के लिये रुक जाओ।
आप कॉफ़ी पिलाकर दाम चुकाती हैं, इस बाबत अनजान थी।वह हंसी थी।तंज-आमेज हंसी।
तीन लड़कियों से पहले भी मिल चुकी हूँ।केतकी संजीदा रही।अब उसकी कार शहर के रिहायशी इलाके ले जाने वाली पुल पर थी।सत्तर और अस्सी के बाद स्पीड सौ पर है।हालाकिं पुल के आरम्भ में ही स्पीड लिमिट साठ बताई गई है लेकिन अस्सी यहाँ सामान्य रफ़्तार है।जो किसी बुरे दिन पकड़े गये तब भी कुछ नोट थमाकर निकल लेंगे।जेब में नोट है तो यहाँ कोई समस्या नहीं।केतकी मालदार स्त्री है अतः उसका पर्स नोटों से भरा है लेकिन पुल खाली इसलिए अब रफ़्तार एक सौ बीस है।एक ज़रा सी चूक और गाड़ी अथाह पानी की समाधि में लेकिन केतकी दौड़ते तुरंग सी एकाग्र है।अगर कोई छोटी कार होती तो रफ़्तार के डर से काँप रही होती लेकिन उसकी एस यू वी के धैर्य का जवाब नहीं।मानों पहिये तार कोल से चिपक गये हो।चिपके पहिये ड्रिफ्ट करती हुई एक आलीशान कैफ़े के सामने रुक गई!
इससे पूर्व दिवाता यहाँ कभी नहीं आई है, हाँ मगर एक उष्ण माह जोड़ा जरुर था किन्तु नई पैडेड ब्रेजियर के हाज़त कोल्ड कॉफ़ी का स्वाद बिसरना पड़ा।तत्काल उसे अपने बर्ताव पर क्षोभ हुआ, उसने बैग से छोटा कीमोनो निकाल शालीनता ओढ़ लिया।वह केतकी को और मायूस नहीं करना चाहती!
अबके उसने नम्रता से पूछा “आप क्या तलाश रही हैं?
ख़म, आजकल मेरी जिंदगी अनायास ही बेमज़ा कहानी में ढलती जा रही है और मैं अपक्व कथाकार सी कहती जा रही हूँ।दरअसल मैं अपनी जिंदगी की चाक से ऊब गई हूँ, कोई जुम्बिश शेष नहीं!
“इस झूठ को सच मान लूँ तो भी मेरा कोई नुकसान नहीं “ उसकी आँखे केतकी के चेहरे पर टिक गई थी।
अपनी कहो।समझदार मालूम पड़ती हो, कोई दूसरा काम क्यों नहीं चुनती?
कई बार हम नहीं चुनते, जिंदगी हमें चुनती है।विशेष कार्य प्रयोजन!
नीम अदीब तर्ज कहते हुए उसकी आँखों में बर्फ से लदे कोहिस्तां थे, सफ़ेद पानी का झील था और उस झील की ओर जाता एक तंग रास्ता।उस रास्ते के दोनों ओर नीली इमारतें थी जिनके झरोखें बनफ्शा फूलों से लदफद थी।उन फूलों पर पीले पंखों वाली उड़ती तितलियाँ थी और तितलियों के पीछे भागती दौड़ती एक अल्हड़ लड़की!
उसकी आँखों के दृश्य केतकी की आँखों में अंकरौरी से चुभने लगे थे।
मेरी माँ इसी धंधे में थी कहते हुए दिवाता ने टिश्यू से कत्थई रंग पुता ख़ंदा-लब शाइस्तगी से पोछा तब उसके उपरी होंठ पर बायीं ओर एक तिल नुमायाँ हुआ।ठीक केतकी सा!
उसके निचले होंठों को दांतों में दबाते हुए सुकेश ने कहा था “ तुम्हारा उपरी होठों पर यह काला तिल मेरी आँखों में अहर्निश गड़ता रहा करता, मेरे दिन रतजगे का वितान बन गई है”|
“मेरी सुबह की कॉफ़ी में तुम्हारे नाम की खुशबू घुल गई थी और तुम बिन शामें सीलन से भरी बोशीदा दीवारें हो गई है ” केतकी ने तुकांत में कहा था।
बाबजूद इसके कि उसकी बड़ी ऊँगली में अब भी खुजली मची हुई है, सुर्ख चंपा चुनते काली चींटी ने काट खाया था इस प्रेमिल दिवस की याद से उसके चेहरे पर पीले चंचुं वाले मुरगाबी परिदें उड़ने लगे किन्तु अगले ही पल भीषण व्याकुलता से ब-तंग हो चहलकदमी करने लगी।उसके भीतर बेचानियाँ उफान मारने लगी, उसने जाना पुरे चाँद की रात समुद्री हवा निरंकुश होती जा रही है,खला से भरी प्रचंड वेग से बहशी जानवरों सा दौड़ती आती तरंगें किनारों से टकरा भयावह कराह के साथ शिथिल पड़ जाती है।दर्द के एकजुबां होने का उसे तनिक भी शुबहा नहीं रहा।मलीबू का गिलास खाली कर वह गुजरते कुछ सालों की बही तफ्तीश करने लगी!
आज नहीं, बहुत नींद आ रही है।केतकी ने अपनी कमर से सुकेश का हाथ हटा दिया था।
याद भी है पिछली दफा कब?
क्या करूँ तुम्हीं बताओ?
कुछ नहीं, सो जाओ कहकर सुकेश ने करवट बदल लिया था।
केतकी ने पलट कर देखा, दरख़्त सी सुकेश की पीठ उन दोनों के बीच की ख़ामोशी से भी अधिक पुख्ता थी।उसने भी पहलु बदला और सोने का उपक्रम करने लगी जबकि नींद आँखों से मीलों दूर उन दिनों की मुंढेर पर जा बैठी जब सुकेश किसी बाबत मुँह फेरता तो वह उसकी पीठ पर मुक्के मारती, नाखून खुबाती जबतक कि वह पलट कर मर्दाना बल से उसके दोनों हाथ थाम उसे जकड़ नहीं लेता तब केतकी उसे दांतों से काटती अबके सुकेश चपलता से उसके होंठों पर अपने होंठ रख देता और वह ढीली पड़ जाती!
बीतते सालों में दुधियाते बाल और गहराते महीन रेखाओं के संग उसके भीतर कामनाओं का हरित पसारा शनै-शनै सूखता, ठूंठ का बयाबान हो गया।उसका मेनोपॉज शुरू हो गया है!
कोई पत्नी शादी की तेइशवीं वर्षगाँठ पर पति को ऐसा उपहार क्यों देना चाहेगी ? अचरज से दिवाता की आँखें पसर गई थी |
मेरे लिये प्रेम और देह दो अलग शै है, मैं प्रेम को मन सा सम्बन्ध समझती हूँ और देह को जरुरत!
यह रात इतनी लम्बी हो आवेगी केतकी को इल्म नहीं था।बीते कुछ सालों से लम्बी, उसकी उम्र से लेम्बेतर।वक़्त की सुई कहीं अटक गई है, एक एक पल सप्ताहों में बदल गया मालूम पड़ता है।वे सप्ताह जिसकी रातें उसे सीने पर टीले सी भारी हो आई है, इतनी भारी कि अब सांस लेना दुर्वार हो चूका है।वह इस रात के भारीपन से पस्त हो चुकी है, उसका दम घुट रहा है!
“सफ़ेद केकड़ें का झोल लाया हूँ।“ लेथाबों लौट आया था !
मैं यहाँ सिर्फ तुम्हारी ख़ुशी के लिये आता हूँ अन्यथा इस सनकी की अल्लम गल्लम भला कौन सुने? सुकेश को लेथाबो से चिढ होती है। यह दुष्ट व्यक्ति है, इसने प्रेम का सौदा किया है!
“प्रेम का सौदा” केतकी के भीतर अनुनाद होने लगा, जैसे कुवें के भीतर कोई आवाज़ प्रतिध्वनित होती है। वह अपने कानों पर हाथ धर लेती है। वह बधिर हो जाना चाहती है।चीखना चाहती है चिल्लाना चाहती है, जोर-जोर से रोना चाहती है लेकिन आवाजें गले में ही घुटती जा रही है।ऐसा मालूम होता है वह गूंगी हो गई है!
तुमने शोरबे में क्या मिलाया है? केतकी ने पूछा।
इस बात से अनजान कि कबीलाई प्रथा नुसार सफ़ेद केकड़े का शोरबा पीकर उसने अपनी सहमति दी है!
मिलूंगी बूटी।लेथाबो बेशर्मी से हंसा!
एक तेज लहर आई और दरख्तों के दर्मयाँ से बेलाग हो पर केतकी की टाँगे सहला गई।केतकी ने देखा उसकी देह रेत का पसारा है उसपर घिसटते असंख्य सफ़ेद केकड़ें।छोटे।बड़े।और मंझोले, सभी आकार के, एक विशिष्ट युक्ति में आगे बढ़ते हुए जैसे कोई हमलावर दस्ता।यकाएक उसे लगा वे केकड़ें उसकी कमर से ऊपर रेंगते हुए उसके वक्ष और होंठों पर चढ़ आये हैं।भय की एक सिहरन उसकी रीढ़ में दौड़ गई, उसने अपनी आँखें बंद कर ली।उसने एक विस्फोट सुना और इसके साथ ही अपनी देह पर हजारों डंक अनुभूत किया।उसने जाना उसके वक्ष भारी और योनि कस आई है !
विदा कहने से पहले दिवाता ने कहा ““हम जिन परिस्थितियों से भागते हैं वह स्थितियां हमें दबोच लेती है” |
तुम इतने यकीन से कैसे कह सकती हो?
जिंदगी के मंसूबे बड़े धूर्त निकले!
केतकी की कार घर की ओर जाने वाली सड़क पर दौड़ती जा रही है।संपर्क क्षेत्र में आते ही उसके मोबाइल पर एक संदेश चिहुंका “ आपके पति को उपहार मंजूर नहीं“!
*मिलूंगी – कच्चा अफीम
I have read your article carefully and I agree with you very much. This has provided a great help for my thesis writing, and I will seriously improve it. However, I don’t know much about a certain place. Can you help me?