आज पढ़िए युवा कवि अंचित की कविताएँ। समकालीन दौर के जाने माने कवि अंचित की कविताओं में समकालीन समय का द्वंद्व दिखाई देता है। पढ़िए कुछ सवाल पूछती कविताएँ-
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इच्छा
कोई अंतरंग जगह नहीं छोड़ी उन्होंने देश में
और हिंसा का नाम उन्होंने रक्षा रख दिया है।
एक अदना सा आदमी भी
बिना संवेदनशीलता
किसी प्यार करने वाले से
उसके प्रेमी का धर्म पूछने लगा है।
एक दोस्त को अपने ही देश के एक शहर में
रहने के लिए मकान नहीं मिल रहा।
“क्या हो गया वतन को” अब एक पुरानी याद है
सब बढ़िया है, कोई चिंता की बात नहीं।
इस घनी दोपहरी में मैं सोचता हूँ
अगर इस बलवे में मारा भी गया तो
हत्यारों को तुम्हारे साथ कोई घर खोजता मिलूँ
हमारे और उनके बीच का फ़र्क़ साफ़ रहे।
इमारतें ढहाने वाले व्यक्ति से
(पटना कलेक्ट्रेट की पुरानी इमारत ढहाये जाने के बाद)
सारे पुराने चिन्ह
राज करने वाला चाहता है
मिटा दिए जाएँ।
सिर्फ़ उसका झंडा लहराए
सिर्फ़ उसका डंका बजे
हर इमारत पर लगे शिलालेख पर
उसका नाम चमकता रहे
हमेशा हमेशा।
मैं लिख रहा हूँ, सर
जो-जो आप मिटा रहे हैं
नोट कर रहा हूँ।
विद्रूप को सुंदर कहने का चलन भले है आजकल
इसमें ऐतिहासिकता नहीं है,
यह है ऐतिहासिक कि
ईंट से दबी चींटियाँ भरीं रहती हैं जीने की इच्छा से
और रात की रानी कड़ी धूप झेलने के बाद।
दफ़्तर से घर लौटते हुए
(उदारमना के लिए)
पूरा दिन संघियों पर नोट्स बनाता रहा,
अस्मिता के तथाकथित संरक्षकों पर हँसता रहा
और यह सोचता रहा कि काम जेल है।
भर्तृहरि याद आते हैं,
हथेली पर बाल उगा सकते हैं
हाथी बांध सकते हैं कमल नाल से,
नहीं कर सकते मूर्ख से तर्क।
और फिर यह दुख कि
तुम इतनी दूर मुझसे लौट रही अकेले घर,
थकान से लदी
तुम्हारी उँगलियाँ अकेलीं…
मेरी उदासी तुम्हारी उदासी से बात करती है,
मेरी कल्पना तुम्हारी कल्पना से, और यह इतना
लंबा एकांत कोई ऐसा गीत, उदारमना
जो मेरे तुम्हारे जैसे लोगों की शायद नियति है।
दिन की आख़िरी क्लासिक जलाते हुए
जिलाता है यह ख़याल कि
एक सिगरेट साथ पियेंगे
जाएँगे किसी शायर की मज़ार पर एक साथ।
नाव ख़रीदने की इच्छा
(यादवेन्द्र के लिये)
बढ़ी उमस में,
तैरना न जानते हुए
पैदा हुई है
नाव ख़रीदने की इच्छा।
जामुन की लकड़ी की नाव
बीस बरस भी न सड़े
नदी के इस छोर से उस छोर
मुझे लिए तैरती रहे।
गहरा है पानी
जलकुम्भियाँ मज़बूत हैं
सतह मटमैली गंदली
कितना कुछ रंगबिरंगा दह रहा है।
जलपरियों का आकर्षण
वही सदियों पुरानी कहानी
उससे कौन लड़ेगा
मेरी नाव के अलावा
टिकाये रखेगी पाँव
घर से दूर घर नाव।
नये कवि की ख़ातिर
(तनुज के लिये)
उसने अभी नया नया लिखना शुरू किया है
और इसका उत्साह और रोमांच
उससे हर बात कविता में कहलवाना चाहते हैं।
जैसे पहली बार खिले फूल देख कर कोई तो मुस्कुराया होगा
जैसे घोंसले से निकला होगा एक चिड़िया का बच्चा
तो हवा उसको अपनी सबसे ख़ास दोस्त लगी होगी।
होगा यह भी कि कविता का सबसे नया यह प्रेमी
घर बदलेगा कई बार और पैरों में पड़ जाने वाली गुठलियों से
वैसे प्रेम करेगा जैसे पहाड़ चढ़ रहा पर्वतारोही बर्फ से करता है।
मेरे दिल में एक गहरा अफ़सोस रहता है कि
अब मैं वह नहीं
मेरे दिल में रहती है गहरी ईर्ष्या कि
मैं मोहब्बत के कई खेल जान गया हूँ
फिर भी देखता रहता हूँ उसे
जिसके नाखून अभी नहीं टूटे
जो दर्द को भी तमग़े की तरह देखता है,
जिसके काग़ज़ पर एक नया शहर उग रहा है,
जिसकी उँगलियों पर नई फैल रही है स्याही।
कौन कितनी दूर जाएगा
और पाएगा अमरता का सोता
यह एक न जँच रहे
वाक्यांश को हटाने की वेदना से
बड़ा प्रश्न नहीं है
एक नये कवि की ख़ातिर।
अच्छी कविताएँ
बहुत अच्छी कविताएं
अंचित की कविताओं में शब्द सजगता है, जो कविता का जरूरी गुण है। कविताएं पसंद आईं। कवि को बधाई।
Anchit’s poems resonate with a refreshing blend of youthful exuberance and profound introspection. Through his verses, he skillfully weaves emotions into a tapestry of words, offering readers a glimpse into the vibrant landscape of his thoughts and experiences.
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