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लेख

एक हाउस वाइफ का विमेंस डे

सभी को विमेंस डे की शुभकामनाएँ- दिव्या विजय =========================== बे-दम हुए बीमार दवा क्यों नहीं देते तुम अच्छे मसीहा हो शफ़ा क्यों नहीं देते                                                      आज न विमेंस डे मनाया जा रहा है. मैंने भी कह दिया पतिदेव से कि आज मेरी छुट्टी है…काम से भी, तुमसे भी, बाकी सबसे भी. …

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‘मैला ‘आँचल’ बड़ी रचना है या ‘परती परिकथा’

फणीश्वरनाथ रेणु और मार्केज़ दोनों के जन्मदिन आसपास पड़ते हैं. दोनों के लेखन में एक समानता थी कि दोनों ने ही ग्लोबल के बरक्स लोकल को स्थापित किया. यह अलग बात है कि रेणु जी हिंदी के लेखक थे इसलिए उनकी व्याप्ति वैसी नहीं हो पाई. लेकिन पाठकों के बीच …

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मार्केज़ एक बीते हुए जीवन को फिर से सृजित करने की ज़िद करते हुए लिखते रहे

आज गाब्रिएल गार्सिया मार्केज़ का जन्मदिन है. कुछ साल पहले उनको याद करते हुए यह लेख शिव प्रसाद जोशी ने लिखा था. तब न पढ़ा हो तो अब पढ़ लीजियेगा- मॉडरेटर ========================= ”लोग सपने देखना इसलिये बंद नहीं करते कि वे बूढ़े होते जाते हैं,वे तो बूढ़े ही इसलिये होते …

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नीलगाय इज़ नॉट ए कूल टॉपिक!

ट्रेन से बिहार जाने की मेरी यादों में यह भी है कि ट्रेन जब सुबह के समय यूपी बिहार की सीमा के आसपास होती थी तो खेतों में नीलगायें दिखाई देती थीं. पिछले कई दशकों में मैंने खेतों में उन नीलगायों का कम होते जाना देखा है. प्रतिष्ठा सिंह ने …

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क्या होता अगर वह स्त्री न होकर पुरुष होती?

एक तरफ स्त्री आजादी की बात की जाती है दूसरी तरफ यह है कि आज भी कोई औरत अगर बोलती है तो पुरुष समाज उसको उसकी जगह बताने में लग जाता है. दिव्या विजय का एक लेख इस विषय पर- मॉडरेटर =============================================== क्या होता अगर वह स्त्री न होकर पुरुष …

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हम सब भी इंसान रूप में कुछ-कुछ गधे ही हैं

सदन झा इतिहासकार हैं. आधुनिक इतिहास के गहरे अध्येता, सिम्बल्स को लेकर बहुत अच्छा काम कर चुके हैं. यूपी के गधा विमर्श में उन्होंने एक अलक्षित पहलू की तरफ ध्यान दिलाया है. पढने लायक- मॉडरेटर ============================================= हर दफे चुनाव कुछ नये शगूफे लेकर आता है। फिर, यूपी चुनाव की बड़ी …

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निर्मल वर्मा के शब्दों में देशप्रेम का मतलब

आजकल ‘देशप्रेम’ की चर्चा चरम पर जिसके बल हर तरह की हिंसा को जायज ठहराने की कोशिश की जाने लगी है. मुझे महान लेखक निर्मल वर्मा के निबंध की याद आई- मेरे लिए भारतीय होने का अर्थ. आजादी के पचास साल पूरे होने पर उन्होंने यह निबंध लिखा था. बीस …

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बज्जिका मेरा देस है हिंदी परदेस!

आज मातृभाषा दिवस है. समझ में नहीं आ रहा है कि किस भाषा को मातृभाषा कहूं- बज्जिका को, जिसमें आज भी मैं अपनी माँ से बात करता हूँ. नेपाली को, नेपाल के सीमावर्ती इलाके में रहने के कारण जो भाषा हम जैसों की जुबान परअपने आप चढ़ गई. भोजपुरी को, बचपन …

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इब्ने सफी लोकप्रिय धारा के प्रेमचन्द थे!

26 जुलाई को इब्ने सफी का का जन्मदिन और पुण्यतिथि दोनों है. वे जासूसी उपन्यास धारा के प्रेमचंद थे. हिंदी-उर्दू में उन्होंने लोकप्रिय साहित्य की इस धारा को मौलिक पहचान दी. आज उनको याद करते हुए ‘दैनिक हिंदुस्तान’ में लईक रिज़वी का स्मरण-आलेख प्रकाशित हुआ है- मॉडरेटर  ================================================================   इब्ने …

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कृष्ण कुमार का लेख ‘विश्वविद्यालय का बीहड़’

इन दिनों विश्वविद्यालयों की स्वायत्तात का मुद्दा जेरे-बहस है. इसको लेकर एक विचारणीय लेख कृष्ण कुमार का पढ़ा ‘रविवार डाइजेस्ट’ नामक पत्रिका में. आपके लिए प्रस्तुत है- मॉडरेटर. =============================================================   रोहित बेमुला की आत्महत्या एक प्रश्नभीरु समाज में बहस और विवाद का विषय बन जाए, यह आश्चर्य की बात नहीं …

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