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समीक्षा

स्त्री-सपनों की बेदखल होती दुनिया का जीवंत यथार्थ

गीताश्री के उपन्यास ‘हसीनाबाद’ की यह समीक्षा युवा कवयित्री-लेखिका स्मिता सिन्हा ने लिखी है. उपन्यास वाणी प्रकाशन से प्रकाशित है- मॉडरेटर ================ गीताश्री ‘हसीनाबाद ‘ एक स्त्री की कहानी , उसके सपनों की कहानी , सपनों को बुनने की ज़िद और उसे पूरा करने की तमाम जद्दोज़हद की कहानी । …

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हॉर्स तो बहुत होते हैं लेकिन विजेता कहलाता है ‘डार्क हॉर्स’

‘नीलोत्पल मृणाल के उपन्यास का शीर्षक ‘डार्क हॉर्स’ प्रोफेटिक साबित हुआ। ऐसे समय में जब हर महीने युवा लेखन के नए नए पोस्टर बॉय अवतरित हो रहे हों नीलोत्पल सबसे टिकाऊ पोस्टर बॉय हैं। वह स्वयं डार्क हॉर्स साबित हुए हैं। यह उनके लेखन की ताकत ही है कि ‘डार्क …

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उलझे जीवन की सुलझी कहानी ‘ज़िन्दगी 50-50’

भगवंत अनमोल का उपन्यास ‘ज़िंदगी 50-50’ इस साल का सरप्राइज़ उपन्यास बनता जा रहा है। हर तरह के पाठकों में अपनी जगह बनाता जा रहा है। इसका पहला संस्करण समाप्त हो गया है। आज इस उपन्यास की समीक्षा लिखी है कवयित्री स्मिता सिन्हा ने- मॉडरेटर ======================== एक ही समाज में …

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अपूर्णता की सम्पूर्णता: जिन्दगी 50-50

युवा लेखक भगवंत अनमोल के उपन्यास ‘ज़िन्दगी 50-50’ की आजकल बहुत चर्चा है. इसी उपन्यास की एक समीक्षा लिखकर भेजी है मिर्जापुर से शुभम् श्रीवास्तव ओम ने. आप भी पढ़िए- मॉडरेटर =================================== युवा लेखक भगवंत अनामोल का नया उपन्यास ‘जिन्दगी 50-50‘ समाज के उस उपेक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व करता नजर …

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रहस्य-रोमांच राजपरिवार और राजनीति का ‘शाही शिकार’

जगरनॉट बुक्स ने मोबाइल या लैपटॉप पर पढने के लिए अपने ऐप के माध्यम से हिंदी में कई नई तरह की किताबें दी हैं, नए नए प्रयोग किये हैं. अभिषेक सिंघल का उपन्यास ‘शाही शिकार’ उसी की एक कड़ी है. इस उपन्यास की समीक्षा वरिष्ठ लेखक दुर्गा प्रसाद अग्रवाल ने …

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सिक्स वर्ड स्टोरी के दौर में आठ सौ पन्नों का उपन्यास ‘सात फेरे’

चंद्रकिशोर जायसवाल जी के उपन्यास ‘सात फेरे’ के ऊपर जाने माने लेखक, पत्रकार पुष्यमित्र की टिप्पणी- मॉडरेटर =============== आज सुबह चंद्रकिशोर जायसवाल का उपन्यास ‘सात फेरे’ पढ़ कर खत्म किया है. आज के जमाने में 829 पन्नों का उपन्यास पढ़ना किसी के लिये भी धैर्य और एकाग्रता का काम है. खास …

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पाठ और पुनर्पाठ के बीच दो उपन्यास

आजकल सबसे अधिक हिंदी में समीक्षा विधा का ह्रास हुआ है. प्रशंसात्मक हों या आलोचनात्मक आजकल अच्छी किताबें अच्छे पाठ के लिए तरस जाती हैं. लेकिन आशुतोष भारद्वाज जैसे लेखक भी हैं जो किताबों को पढ़कर उनकी सीमाओं संभावनाओं की रीडिंग करते हैं. इस बार ‘हंस’ में उन्होंने प्रियदर्शन के …

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कुँवर नारायण और उनकी किताब ‘लेखक का सिनेमा’

80-90 के दशक में कुंवर नारायण विश्व सिनेमा पर दिनमान, सारिका और बाद में नवभारत टाइम्स में लिखा करते थे. अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में दिखाई गई फिल्मों पर. उन्होंने उस गूगलविहीन दौर में एक पीढ़ी को विश्व सिनेमा से परिचित करवाया. हाल में ही राजकमल प्रकाशन से उनकी किताब आई …

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भोगे हुए यथार्थ द्वारा सम्बन्धो से मोहभंग

हिंदी में छठे दशक के बाद लिखी गई कहानियों को केंद्र में रखकर, विजय मोहन सिंह और मधुकर सिंह द्वारा सम्पादित एक समीक्षात्मक किताब आई है. अब उस समीक्षात्मक किताब की समीक्षा कर रहे हैं माधव राठौर. आप भी पढ़िए- संपादक =======================================================   “60 के बाद की कहानियां” किताब विजय …

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सच, प्यार और थोड़ी-सी शरारत

खुशवंत सिंह की आत्मकथा ‘सच, प्यार और थोड़ी-सी शरारत’ पर युवा लेखक माधव राठौड़ की टिप्पणी – संपादक =================================================== अंग्रेजी के प्रसिद्ध पत्रकार, स्तम्भकार और विवादित कथाकार खुशवंत सिंह की आत्मकथा अपनी शैली में लिखा गया अपने समय का वह  कच्चा चिटठा है, जिसका दायरा रेगिस्तानी गाँव की गर्मी भरे …

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