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समीक्षा

अरुंधति रॉय के नए उपन्यास में सब कुछ है और कुछ भी नहीं

  अरुंधति रॉय के बहुचर्चित उपन्यास ‘द मिनिस्ट्री ऑफ़ अटमोस्ट हैप्पीनेस’ पर यशवंत कोठारी की टिप्पणी- मॉडरेटर ======================================================= अरुंधती रॉय  का दूसरा उपन्यास –मिनिस्ट्री ऑफ़ अटमोस्ट हैप्पीनेस(चरम प्रसन्नता का मंत्रालय ) आया है. इस से पहले वह ‘मामूली चीजों का देवता’ लिख कर बुकर पुरस्कार जीत चुकी हैं- गॉड ऑफ़ …

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जयंती रंगनाथन और ‘बॉम्बे मेरी जान’

वरिष्ठ पत्रकार जयंती रंगनाथन की किताब आई है ‘बॉम्बे मेरी जान’. इस किताब पर कादम्बिनी पत्रिका के पत्रकार अरुण कुमार जेमिनी की यह टिप्पणी- मॉडरेटर ===================== मैं लगभग छह साल पहले इनसे पहली बार मिलाथा। वह भी तब जब इन्होंने ‘हिंदुस्तान’ ज्वाइन किया। कह नहीं सकता कि अगर ये ‘हिंदुस्तान’ …

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मृत्यु-गंध में लिपटी स्वदेश दीपक की ‘बगूगोशे’ की ख़ूशबू

जगरनॉट बुक्स से स्वदेश दीपक की आखिरी कहानियों का संग्रह प्रकाशित हुआ है- बगूगोशे. इस संग्रह पर युवा लेखक-पत्रकार अरविन्द दास की लिखत पढ़िए. कितनी आत्मीयता से लिखा है- मॉडरेटर ======================================= मृत्यु-गंध कैसी होती है/ वह एक ऐसी खुशबू है/ जो लंबे बालों वाली/ एक औरत के ताजा धुले बालों …

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मैन इन गॉड्स ऑन लैंड: ‘द गॉड ऑफ़ स्मॉल थिंग्स’ में पुरुष के तीन चेहरे

    इन दिनों अरुंधति रॉय अपने नए उपन्यास की वजह से चर्चा में हैं. विजय शर्मा जी ने उनके पहले उपन्यास ‘ गॉड ऑफ़ स्मॉल थिंग्स’ के पुरुष पात्रों की पड़ताल की है.   अरुंधति राय का उपन्यास ‘द गॉड ऑफ़ स्मॉल थिंग्स’ उपन्यास जेंडर के विषय में है – …

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लापता लड़की…स्लीपिंग पार्टनर नहीं!

वकील-लेखक अरविन्द जैन के कहानी संग्रह ‘लापता लड़की’ की समीक्षा लिखी है लेखक सुधांशु गुप्त ने- मॉडरेटर ======================================================= अरविंद जैन का कहानी संग्रह ”लापता लड़की” पठनीयता और लोकप्रियता के पैरोकारों के लिए नहीं है। उनके लिए तो यह संग्रह बिलकुल भी नहीं है, जो कहानियों में ”रसपान” खोजते हैं। और …

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एक अमेरिकी लेखक की नजर में आतंकवादी

2009 में दिवंगत हुए जॉन उपडाइक की गणना आधुनिक अमेरिका के लिख्खाड़ और गंभीर लेखकों में की जाती रही है। 2006 प्रकाशित टेररिस्ट(आतंकवादी) उनका बाइसवां और जीवनकाल में प्रकाशित संभवतया अंतिम उपन्यास है। उपन्यास में अमेरिकी समाज की बदलती मानसिकता झलकती है. नाइन-एलेवन की घटना के बाद अमेरिका और योरोपीय …

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समर्थ वशिष्ठ, ‘सपने में पिया पानी’ और एक छोटी सी टिप्पणी

समर्थ वशिष्ठ का कविता संग्रह ‘सपने में पिया पानी‘ पर युवा लेखक अनघ शर्मा की टिपण्णी- ============================================= मैंने इन दिनों इधर जिन कविताओं को पढ़ा उनमें समर्थ वशिष्ठ के राजकमल प्रकाशन से आये संग्रह “सपने में पिया पानी” की कवितायें बहुत अच्छी, अलग और नये मिजाज़ की लगीं| ये समर्थ …

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मैत्रेयी पुष्पा की किताब में विचारों की विदाई के साथ प्रेम की भी विदाई है

  मैत्रेयी पुष्पा की किताब आई है ‘वह सफ़र था कि मुकाम था’. किताब का विषय राजेंद्र यादव जी के साथ उनकी मैत्री है. इस पुस्तक पर यह टिप्पणी लिखी है साधना अग्रवाल ने- मॉडरेटर ================================= कभी हिंदी के लेखक आत्मकथा लिखने में संकोच करते थे लेकिन आज आत्मकथा लिखना …

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छावनियों के शहर के लेखक की आत्मकथा

वरिष्ठ लेखक धीरेन्द्र अस्थाना की आत्मकथा ‘ज़िन्दगी का क्या किया’ पर बहुत अच्छी टिप्पणी पंकज कौरव ने की है. पंकज जी की लिखी यह पहली समीक्षा ही है. एक बात है बहुत दिनों बाद किसी लेखक की ऐसी आत्मकथा आई है समय गुजरने के साथ जिसके शैदाई बढ़ते जा रहे …

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