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यह चाँद है या काँच है जो पहर बेपहर चमक रहा है

कुछ साल पहले युवा कवि तुषार धवल का कविता संग्रह राजकमल प्रकाशन से आया था ‘पहर यह बेपहर का’. अपनी भाव-भंगिमा से जिसकी कविताओं ने सहज ही ध्यान खींचा था. उसी संग्रह की कविताओं पर कुछ कवितानुमा लिखा है वरिष्ठ कवि बोधिसत्त्व ने. समीक्षा के शिल्प में नहीं- जानकी पुल.  …

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स्मृतियों में ठहरे अज्ञेय

कोलकाता में ‘अपने अपने अज्ञेय’ का लोकार्पण  अज्ञेय की जन्मशताब्दी के साल उनकी रचनात्मकता के मूल्यांकन-पुनर्मूल्यांकन का दौर चलता रहा. कई किताबें आई, कई इस पुस्तक मेले में आ रही हैं. लेकिन वरिष्ठ संपादक, सजग भाषाविद ओम थानवी सम्पादित पुस्तक ‘अपने-अपने अज्ञेय’ अलग तरह की है. पुस्तक से पता चलता …

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सफल लोगों के बारे में एक असफल आदमी की कविता

आज प्रियदर्शन की कविताएँ कुछ बदले हुए रंग, एक नए मुहावरे में. आख्यान के ढांचे में, कुछ गद्यात्मक लहजे में, लेकिन सहज काव्यात्मकता के साथ- जानकी पुल. —————————————– सफल लोगों के बारे में एक असफल आदमी की कविता मेरे आसपास कई सफल लोग हैं अपनी शोहरत के गुमान में डूबे …

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‘समास’ आत्मसजग श्रेष्ठ साहित्य की वाहक बनेगी

कल ‘समास’ का लोकार्पण है. गहन वैचारिकता की अपने ढंग की शायद अकेली पत्रिका ‘समास’ की यह दूसरी पारी है. एक दशक से भी अधिक समय हो गया जब इस पत्रिका के सुरुचिपूर्ण प्रकाशित चार अंकों ने साहित्य की दूसरी परंपरा की वैचारिकता को मजबूती के साथ सामने रखा था. …

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मुझे दो मेरी ही उम्र का एक दुःख

आज दोपहर २.३० बजे इण्डिया इंटरनेशनल सेंटर में तस्लीमा नसरीन की सौ कविताओं के संचयन ‘मुझे देना और प्रेम’ का लोकार्पण है. वाणी प्रकाशन से प्रकाशित इस पुस्तक की कविताओं का अनुवाद किया है हिंदी के प्रसिद्ध कवि प्रयाग शुक्ल ने. उसी संचयन से दो कविताएँ- जानकी पुल. ————————————————- तुम्हें दुःख देना …

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पहले पहले प्यार के झूठे वादे अच्छे लगते हैं

 आज मोहसिन नकवी की शायरी. पाकिस्तान के इस शायर को १९९६ में कट्टरपंथियों ने मार डाला था. उन्होंने नज्में और ग़ज़लें लिखीं, अनीस की तरह मर्सिये लिखे. उनकी शायरी का यह संकलन हमारे लिए शैलेन्द्र भारद्वाज जी ने किया है. मूलतः हिंदी साहित्य के विद्यार्थी रहे शैलेन्द्र जी उर्दू शायरी …

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नैनीताल की गलियों के मोड़ों पर

लक्ष्मण सिंह बिष्ट जी को हम सब प्रसिद्ध उपन्यासकार-कथाकार बटरोही के रूप में जानते हैं. उन्होंने अभी हाल में ही एक उपन्यास लिखा है नैनीताल पर- ‘गर्भगृह में नैनीताल’. नैनीताल के अतीत और वर्तमान की अन्तर्पाठीयता का एक ऐसा पाठ जिसमें परंपरा और आधुनिकता का द्वंद्व भी लगातार चलता है. …

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स्त्री के बालों से डरती है सभ्यता

आज युवा कवि अरुण देव की कविता. इतिहास, आख्यान के पाठों के बीच उनकी सूक्ष्म दृष्टि, बयान की नफासत सहज ही ध्यान आकर्षित कर लेती है. इसमें कोई संदेह नहीं कि उनका मुहावरा, उनकी शब्दावली समकालीन कविता में सबसे अलग है. आज संयोग से अरुण का जन्मदिन भी है. इसी …

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किसी की आँख में देखना उसके मन में देखना होता है

 अभी थोड़ी देर पहले प्रिय कवि बोधिसत्वने यह कविता पढ़ने के लिए भेजी. गहरे राग भाव से उपजी इस कविता में लोकगीतों सा विराग भी पढ़ा जा सकता है, जो बोधिसत्व की कविताओं की विशेषता रही है. न होने में होने का भाव. आज के दिन मैं इस कविता को …

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‘आज का व्यावसायिक हिंदी सिनेमा एक उत्पाद है’

हाल के दिनों में सिनेमा पर गंभीरता से लिखने वाले जिस युवा ने सबसे अधिक ध्यान खींचा है वह मिहिर पंड्या है. मिहिर पंड्या ने यह लेख ‘कथन’ पत्रिका द्वारा भूमंडलीकरण और सिनेमा विषय पर आयोजित परिचर्चा के लिए लिखा है. समकालीन सिनेमा को समझने के लिए मुझे एक ज़रूरी …

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