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अमलतास के फूल खिल चुके

आज सत्यानन्द निरुपम की कविताएँ. वे मूलतः कवि नहीं हैं, लेकिन इन चार कविताओं को पढकर आपको लगेगा की वे भूलतः कवि भी नहीं हैं. गहरी रागात्मकता और लयात्मकता उनकी कविताओं को एक विशिष्ट स्वर देती है, केवल पढ़ने की नहीं गुनने की कविताएँ हैं ये. इस विचार-आक्रांत समय में …

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अरिंदम चौधरी को गुस्सा क्यों आता है?

मैनेजमेंट गुरु अरिंदम चौधरी ने दिल्ली प्रेस की प्रसिद्ध सांस्कृतिक पत्रिका कारवां(the caravan) पर मानहानि का मुकदमा ठोंक दिया है, वह भी पूरे ५० करोड़(500 मिलियन) का. कारवां के फरवरी अंक में सिद्धार्थ देब ने एक स्टोरी की थी अरिंदम चौधरी के फिनोमिना के ऊपर. अरिंदम iipm जैसे एक बहुप्रचारित …

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उर्दू शायरी को आज़ाद करने वाले राशिद

उर्दू के विद्रोही शायर नून मीम राशिद की जन्मशताब्दी चुपचाप गुज़र गई. उनकी शायरी और शख्सियत पर प्रेमचंद गाँधी का यह लेख- जानकी पुल. उर्दू शायरी पर बरसों से क्‍या सदियों से यह आरोप लगता रहा है कि वह अपने शिल्‍प और अंतर्वस्‍तु दोनों में बेहद जकड़ी हुई है और …

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‘इस्ताम्बुल’ पढ़ने से ईस्ट और वेस्ट का अपना विजन बनता है

सुपरिचित कवयित्री, अनुवादिका और लेखिका अपर्णा मनोज ने ओरहान पामुक की प्रसिद्ध पुस्तक ‘इस्ताम्बुल’ पर लिखा है. पूर्व और पश्चिम की सभ्यता के संगम स्थल को लेकर पामुक ने स्मृति-कथा लिखी है और उसका विश्लेषण अपर्णा जी ने डायरी की शैली में किया है. बहुत मार्मिक और रोचक- जानकी पुल. …

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पारम्परिक समाजों की एक गहन अंतर्कथा

हाल में ही राजकमल प्रकाशन से मारियो वर्गास ल्योसा के उपन्यास ‘स्टोरीटेलर'(स्पेनिश में एल आब्लादोर) का हिंदी अनुवाद आया है ‘किस्सागो‘ के नाम से. पारंपरिक समाजों के जीवन को लेकर लिखे गए इस उपन्यास और उसके अनुवाद को लेकर बहुत तर्कपूर्ण लेख अशोक कुमार पांडे ने लिखा है. पढ़ने के बाद …

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संगीत सीखने के लिए एक जन्म काफी नहीं है

पटियाला घराने की तीन गायिकाओं गिरिजा देवी, परवीन सुल्ताना और निर्मला अरुण(फिल्म अभिनेता गोविंदा की माँ) के ऊपर आज संगीतविद वंदना शुक्ल का लेख प्रस्तुत है- जानकी पुल. ब्रह्मांड में असंख्य जीव हैं असंख्य वनस्पति, हरेक की एक अलग जाति-प्रजाति, उनकी जातिगत विशेषताएं. जो प्रकृति द्वारा प्रदत्त और तयशुदा हैं, …

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किसी यूरोपियन के सामने खड़े हो कर हम अपने को नीचा समझते हैं

  ओरहान पामुक का प्रसिद्द उपन्यास ‘स्नो’ पेंगुइन’ से छपकर हिंदी में आनेवाला है. उसी उपन्यास के एक चरित्र ‘ब्लू’, जो आतंकवादी है, पर गिरिराज किराड़ू ने यह दिलचस्प लेख लिखा है, जो आतंकवाद, उसकी राजनीति के साथ-साथ अस्मिता के सवालों को भी उठाता है- जानकी पुल.       …

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उनका अकेलापन मेरा एकांत है

आज मोहन राणा की कविताएँ. विस्थापन की पीड़ा है उनकी कविताओं में और वह अकेलापन जो शायद इंसान की नियति है- कहाँ गुम हो या शायद मैं ही खोया हूँ शहर के किस कोने में कहाँ दो पैरों बराबर जमीन पर वो भी अपनी नहीं है दो पैरों बराबर जमीन …

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लिख दूँगा दीवार पर तुम्हारा नाम

अज्ञेय के जन्म-शताब्दी वर्ष में प्रोफ़ेसर हरीश त्रिवेदी ने यह याद दिलाया है कि १९४६ में अज्ञेय की अंग्रेजी कविताओं का संकलन प्रकाशित हुआ था ‘प्रिजन डेज एंड अदर पोयम्स’. जिसकी भूमिका जवाहरलाल नेहरु ने लिखी थी. लेकिन बाद अज्ञेय-विमर्श में इस पुस्तक को भुला दिया गया. इनकी कविताओं का …

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क्योंकि हमें डर लगता है, स्वाधीनता से…

अज्ञेय की जन्मशताब्दी वर्ष में आज उनकी कविता पर प्रसिद्ध आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल का लेख. यह लेख उन्होंने अज्ञेय पर सम्पादित एक पुस्तक के लिए लिखा था. आज के सन्दर्भों में इस लेख की प्रासंगिकता कुछ और बढ़ गई है.——————————————————————————- ‘वे तो फिर आयेंगे’  क्योंकि हमें डर लगता है, स्वाधीनता …

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