‘उड़ता पंजाब’ के हल्ले में नागेश कुकनूर की फिल्म ‘धनक’ की चर्चा ही नहीं हुई. आज लेखक रवि बुले की समीक्षा पढ़ते हैं फिल्म ‘धनक’ पर- मॉडरेटर ============================= —-हैदराबाद ब्लूज (१९९८), इकबाल (२००५) और डोर (२००६) जैसी फिल्में बनाने वाले नागेश कुकुनूर एक बार फिर रंगत में हैं। धनक का …
Read More »उड़ते-उड़ते इस फिल्म की जान भी उड़ गयी
‘उड़ता पंजाब’ फिल्म को लेकर लोगों ने ऐसे लिखा जैसे सोशल एक्टिविज्म कर रहे हों. फिल्म का ठीक से विश्लेषण बहुत कम लोगों ने किया. युवा लेखिका अणुशक्ति सिंह ने एक बहुत चुटीली समीक्षा लिखी है इस फिल्म की. पढ़िए- मॉडरेटर =================== पाकिस्तान से गोले उड़े कि हिंदुस्तान मे गर्द …
Read More »एक अनुवाद पुस्तक जो अनुवाद के मानक की तरह है!
क्या सच में हिंदी की दुनिया बदल गयी है, बदल रही है. एक जमाने में अच्छी किताबों की चर्चा हुआ करती थी, आज उनको नजरअंदाज कर दिया जाता है. ऐसा ही एक अनुवाद जाने माने आलोचक, अनुवादक मदन सोनी द्वारा किया हुआ आया है- खाली नाम गुलाब का. अम्बर्तो इको …
Read More »एक अनजानी दुनिया की सबसे विश्वसनीय खिड़की
लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की किताब ‘मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मी‘ मेरी सबसे प्रिय किताबों में एक है. लक्ष्मी ने किन्नर समुदाय की पहचान को एक नई ऊंचाई दी. आज वाणी प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब की समीक्षा कौशलेन्द्र प्रपन्न ने लिखी है- मॉडरेटर =================== आज मैं ऐसी किताब की चर्चा करने जा …
Read More »क्यों जाएँ ‘जय गंगाजल’ देखने?
आज महाशिवरात्रि है. आज ‘जय गंगाजल’ फिल्म की समीक्षा पढ़िए. प्रकाश झा की फिल्म है, मानव कौल की एक्टिंग है, बिहार की राजनीति है. निजी तौर पर मुझे प्रकाश झा की किसी फिल्म ने कभी निराश नहीं किया. बहरहाल, इस फिल्म की एक अनौपचारिक, ईमानदार समीक्षा लिखी है युवा लेखिका …
Read More »मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानी ‘रक्स की घाटी और शबे फितना’
समकालीन हिंदी-लेखिकाओं में मनीषा कुलश्रेष्ठ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. अलग-अलग परिवेश को लेकर, स्त्री-मन के रहस्यों को लेकर उन्होंने कई यादगार कहानियां लिखी हैं. उमें स्त्री-लेखन का पारंपरिक ‘क्लीशे’ भी कभी-कभी दिख जाता है तो कई बार वह उस चौखटे को तोड़कर बाहर भी निकल आती हैं. जो लोग यह …
Read More »‘जुगनी’ की कहानी एक किस्म का आत्मअन्वेषण है
फिल्म ‘जुगनी’ पर युवा लेखिका अनु सिंह चौधरी जी ने इतना अच्छा लिखा है कि पढने के बाद मैं यह सोच रहा था कि फिल्म अब कहाँ देखी जा सकती है. वह ज़माना तो रहा नहीं जब फ़िल्में सिनेमा हॉल में हफ़्तों टिकी रहती थी. आप भी पढ़िए- मॉडरेटर ========================================== …
Read More »अपनी निरर्थकता में संदिग्ध अस्वीकार
उदय प्रकाश ने जब से साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा की है बहस का सिलसिला थमता नजर नहीं आ रहा. इसकी शुरुआत वरिष्ठ कवि-आलोचक विष्णु खरे के एक लेख से हुई थी. कल आपने अरुण महेश्वरी का लेख पढ़ा, आज फिर विष्णु खरे की प्रतिक्रिया- मॉडरेटर ========================== श्री उदय …
Read More »प्रेम, जूनून, जाति, व्यवस्था और ‘मांझी’
फिल्म ‘मांझी: द माउन्टेनमैन’ की कई समीक्षाएं पढ़ी. युवा लेखिका विभावरी की यह टिप्पणी उस फिल्म पर सबसे सम्यक लगी, फिल्म के बहाने उस पूरे राजनीतिक सामाजिक सन्दर्भों के साथ जिसमें दशरथ मांझी पैदा हुए. जरूर पढ़ा जाने लायक आलेख- मॉडरेटर============================ इस फिल्म पर लिखने से पहले मेरा इतने पशोपेश …
Read More »दिबाकर बनर्जी की अब तक की सबसे कमजोर फिल्म है ‘ब्योमकेश बक्शी’
फिल्म समीक्षक आजकल समीक्षक कम पीआर कम्पनी के एजेंट अधिक लगने लगे हैं. ऐसे में ऐसे दर्शकों का अधिक भरोसा रहता है जो एक कंज्यूमर की तरह सिनेमा हॉल में जाता है और अपनी सच्ची राय सामने रखता है. युवा लेखक-संपादक वैभव मणि त्रिपाठी की लिखी ब्योमकेश बक्शी फिल्म की …
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