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बंदे में दम था इतना तो उसके विरोधी भी मानते हैं!

आज अपने विद्वान साथी मनोज कुमार की फेसबुक वाल से पता चला कि कार्ल मार्क्स का जन्मदिन है. उन्होंने बहुत मानीखेज ढंग से मार्क्स पर यह छोटी सी टिपण्णी भी लिखी है. आपके लिए- प्रभात रंजन

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आज कार्ल मार्क्स का जन्मदिन है | उन्नीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक (1818 ई.) में एक छोटे से जर्मन शहर में उनका जन्म हुआ | बंदे में दम था इतना तो उसके विरोधी भी मानते हैं||

लेकिन यह रेखांकित करना भी इतना ही जरुरी है कि कार्ल मार्क्स ने अवतार नहीं लिया था| उनका जन्म ही हुआ था – एक खास देश और काल में|

इस बात को कई प्रकार से कह सकते हैं, लेकिन फिलहाल दो वाकए उनके जीवन और लेखन से ही|

1) उन्नीसवी सदी के रूस में क्रांतिकारियों के बीच बहस छिड़ी| एक तरफ Narodniks थे तो दूसरी तरफ George Plekhanov, Vera Zasulich and Paul Axelrod आदि नई पीढ़ी के रूसी मार्क्सवादी | Narodniks का मानना था कि रूस में सामंत वर्ग के साथ-साथ किसानों के कम्यून भी हैं और औधोगिक पूँजीवादी अवस्था में रूसी समाज का संक्रमण रूस में समाजवाद स्थापित करने की पूर्वशर्त नहीं है | George Plekhanov के साथी औधोगिक पूँजीवाद को इतिहास के विकास की एक अनिवार्य अवस्था मानते थे और उन्हें लगता था कि इस अवस्था से गुजरे बिना रूस में समाजवाद की स्थापना संभव नहीं है| दोनों प्रतिद्वंदी Das Kapital ही उध्दृत कर के ही अपनी बात मनवाने की कोशिश कर रहे थे |

1881 में Vera Zasulich को लिखी अपनी चिट्ठी में मार्क्स ने लिखा

-“it was no use to quote Das Kapital against the Narodniks and the rural commune, for in Das Kapital he had analysed the social structure of Western Europe only – Russia might well evolve towards socialism in her own way. Marx admitted that the rural commune had begun to decay, but on balance he still subscribed to the Narodnik view that the commune had a great future.”

https://www.marxists.org/archi…/deutscher/…/marx-russia.htm…

https://www.marxists.org/…/…/works/1881/letters/81_04_11.htm

2) और कम्यूनिस्ट घोषणापत्र की पहले खंड की पहली पंक्ति में HITHERTO शब्द के प्रयोग पर ध्यान जाना चाहिए –

“The history of all HITHERTO existing society† is the history of class struggles.”

इस पंक्ति के साथ एंगेल्स द्वारा लगाई गई पादटिप्पणी पर भी ध्यान जाना चाहिए|

पादटिप्पणी खासी लम्बी है –

“That is, all written history. In 1847, the pre-history of society, the social organisation existing previous to recorded history, all but unknown. Since then, August von Haxthausen (1792-1866) discovered common ownership of land in Russia, Georg Ludwig von Maurer proved it to be the social foundation from which all Teutonic races started in history, and, by and by, village communities were found to be, or to have been, the primitive form of society everywhere from India to Ireland…”

ज्ञान की दावेदारी में एक सहज मानवीय विनम्रता है , अपनी कालगत और देशगत सीमा का अहसाह भी है| यहाँ कहीं भी परम ज्ञान के REVELATION का दावा तो नहीं है |

मार्क्स के श्रमसाध्य बौध्दिक चिंतन और क्रांतिकारी राजनीतिक सक्रियता का उत्सव मनाइए | उसके इंसानी (दैवीय नहीं ) बौध्दिक उपलब्धियों और कर्मशीलता का उत्सव मनाइए|

मार्क्स के जन्मदिन को सेलिब्रेट करने के लिए गूगल कभी कोई Doodle नहीं बनाता है| इससे बेहतर और क्या प्रमाण चाहिए कि मार्क्स की हमारे समय में जीवित राजनीतिक उपस्थिति है, उनके नाम के प्रयोग से आज भी किसी तरह का रोमानी अतीत व्यामोह पैदा नहीं किया जा सकता|

मनोज कुमार
 
      

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5 comments

  1. कार्ल मार्क्स को पढ़ा जरूर हूँ…। मगर..ये नहीं कह सकता कि अध्ययन किया है। अगर इतना कहूँ की किसी महान सख्सियत के रूप में जैसे नेताओं को जानते है तो शायद ज्यादा उपयुक्त होगा।
    आज एक नजर दुनिया पर दौड़ाये तो लगता है कि विचारधारा की एक श्रृंखला ही बह रही है। अपवाद स्वरूप अतीति की यादो के कुछ श्रोत इधर उधर बह जाते है। तो क्या मार्क्स की विरासत भूलते अतीत की यादो का संकलन बन लाइब्रेरी की सोभा बढ़ाएगा …?
    शायद हम भूल रहे है ….आज की धुन उसी विरासत का हिस्सा है जिसे “दुनिया के मजदूरों एक हो ” के आलाप को विस्तार दिया। बेसक बदलते दौर में यह दिख नहीं पा रहा है लेकिन जो बदला है उसमें उसी विचार ने आंदोलित किया है जहाँ हम वास्तविकता के धरातल पर उसे छोड़ नहीं सकते जिसकी आधारशिला कार्ल मार्क्स रख गए ।
    । ।। संक्षिप्त और सटीक आलेख ।।

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