जब से यूपीएससी के रिज़ल्ट आए हैं इस बात को लेकर बड़ी चर्चा है कि हिंदी मीडियम के प्रतिभागियों का चयन कम होता जा रहा है। मुझे निशांत जैन की याद आई। उनकी किताब ‘रुक जाना नहीं’ की याद आई। निशांत जैन आईएएस हैं लेकिन उससे बड़ी बात है कि उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा हिंदी मीडियम से दी थी और वे अपने बैच में हिंदी मीडियम के प्रतिभागियों में अव्वल आए थे। परिचय से उनका व्यक्तित्व प्रेरक लगता है। हिंदी वालों को हिचक तोड़ आगे बढ़ने की प्रेरणा देने वाला है। लेकिन इस परिचय का मतलब यह नहीं है कि उन्होंने यह किताब इसलिए लिखी है ताकि वे इलाहाबाद या मुखर्जी नगर दिल्ली में रहकर आईएएस की तैयारी करने वाले नौजवानों को टिप्स दे सकें। आज कल यूट्यूब चैनल पर, फ़ेसबुक पर विद्यार्थी उपयोगी टिप्स देने वाले आईएएस बहुतेरे हो गए हैं और कोचिंग संस्थान के बाहर न उनको कोई सुनता है न पढ़ता है। इस भूमिका की ज़रूरत इसलिए क्योंकि ‘रुक जाना नहीं’ का फलक व्यापक है। यह हिंदी में उस विधा की किताब है जिस विधा के लेखक आजकल अंग्रेज़ी में छाए हुए हैं-मोटिवेशनल विधा। अंग्रेज़ी में आजकल चन्द्रमौलि वेंकटेशन के ‘कैटेलिस्ट’ या राधाकृष्णन पिल्लै की चाणक्य सीरिज़ की किताबों की धूम मची हुई है। अंग्रेज़ी में मोटिवेशनल किताबों का भी व्यापक आधार रहा है। हिंदी में इस विधा में कम लिखा जाता है, लिखा भी जाता है तो स्तरीय कम लिखा जाता है। यह इसके बावजूद है कि इस शताब्दी में हिंदी में संख्या के आधार पर सबसे अधिक बिकने वाली किताब ‘जीत आपकी’ थी, जिसकी पाँच लाख प्रतियाँ बहुत कम समय में बिक गई थीं। यह अलग बात है कि शिव खेड़ा की यह किताब हिंदी में अनूदित होकर आई थी।
ख़ैर, यह किताब यह बताती है कि किस तरह आप अपने जीवन के ढर्रे में बदलाव लाकर वांछित सफलता को हासिल कर सकते हैं। असफलताओं से हार नहीं माननी चाहिए बल्कि ‘रुक जाना नहीं’ के मंत्र को जीवन में अपनाना चाहिए। किताब में संघर्ष करके सफलता हासिल करने वाले कुछ लोगों की कहानी भी उनकी ज़ुबानी दी गई है। यह केवाल युवाओं को प्रेरित करने वाली किताब भर नहीं है बल्कि जीवन के किसी भी दौर में आप अपनी जीवन शैली को सुधारकर सफलता की राह अपना सकते हैं। हिंद युग्म एका की यह किताब पढ़ते हुए मुझे यह भी महसूस हुआ कि इस लेखक में मोटिवेशनल लेखन की अच्छी क्षमता है और ज़रा भी अतिरेक नहीं है। मैं ‘कैटेलिस्ट’ पढ़कर प्रभावित हुआ था उसी तरह इस किताब को पढ़कर भी हुआ।
प्रभात रंजन
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