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Prabhat Ranjan

स्मिता सिन्हा की आठ नई कविताएँ

स्मिता सिन्हा की कविताएँ प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में छपती रहती हैं, सराही जाती हैं. उनका एक अपना समकालीन तेवर है, संवेदना और भाषा है. प्रस्तुत है कुछ नई कविताएँ- मॉडरेटर ============================ (1) मैंने देखे हैं उदासी से होने वाले बड़े बड़े खतरे इसीलिए डरती हूँ उदास होने से डरती हूँ …

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राजेश प्रधान की दो नई कविताएँ

बोस्टन प्रवासी राजेश प्रधान पेशे से वास्तुकार हैं, राजनीतिशास्त्री हैं. हिंदी में कविताएँ लिखते हैं. उनकी कविताओं में सतह के नीचे की दार्शनिकता, विचार, गहन चिंतन है जो उनकी कविताओं को एक अलग ही स्वर देता है. उनकी दो अलग मिजाज की कविताएँ आज पढ़िए- मॉडरेटर ======================= 1 सृष्टि और …

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निखिल सचान के उपन्यास ‘यूपी 65’ का एक अंश

हिन्द युग्म ने नई वाली हिंदी के नारे के साथ टेक्नो लेखकों(इंजीनियरिंग-मैनेजमेंट की पृष्ठभूमि के हिंदी लेखक) की एक नई खेप हिंदी को दी. जिसके सबसे पहले पोस्टर बॉय निखिल सचान थे. उनकी किताब ‘नमक स्वादानुसार’ की 3-4 साल पहले अच्छी चर्चा हुई थी. हालाँकि उनकी दूसरी किताब का नाम …

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‘चीखती हुई चीं-चीं ‘दुश्चरित्र महिलाएं, दुश्चरित्र महिलाएं…’

अनामिका जी को देखता हूँ, उनसे मिलता हूँ तो करुणा शब्द का मतलब समझ में आता है. इतनी करुणामयी महिला मैंने जीवन में नहीं देखी. उनके लिए जो भी अपमानजनक भाषा का प्रयोग करेगा वह अपना चरित्र ही दिखाएगा. हिंदी में इतनी विराट और विविधवर्णी उपस्थिति किसी लेखिका का नहीं …

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आज भी मोहम्मद रफी की आवाज का कोई सानी नहीं

आज प्रसिद्ध गायक मोहम्मद रफी की पुण्यतिथि है। उनकी गायकी को याद करते हुए यह लेख युवा लेखक विमलेंदु ने लिखा है- ========== कौन भूल सकता है मो. रफी को ! भले ही उनको हमसे जुदा हुए तैंतीस साल हो गए हों, पर एक लम्हे को भी कभी महसूस हुआ …

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नागार्जुन मुक्तिबोध से बड़े कवि :खगेन्द्र ठाकुर    

पटना अक्सर राजनीति के लिए चर्चा में रहता है। साहित्य की राजनीति भी वहाँ की खूब है। पिछले दिनों प्रगतिशील लेखक संघ ने मुक्तिबोध की याद में आयोजन किया था। उसमें भी लेखकों की राजनीति प्रकट हुई है। इस कार्यक्रम की एक संतुलित रपट भेजी है युवा लेखक सुशील कुमार …

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सलूक जिससे किया मैने आशिकाना किया !

आज नामवर सिंह जी का जन्मदिन है। उनके ऊपर बहुत अच्छा लेख युवा लेखक विमलेंदु ने लिखा है- मौडरेटर ====================================================== पिछली 28 जुलाई को नामवर सिंह जब नब्बे साल के हुए तो उनके विरोधी उन्हें चुका हुआ मानकर उत्साह के अतिरेक में थे. उनके जन्मदिन पर इन्दिरा गाँधी कलाकेन्द्र, दिल्ली …

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काश बुरके के भीतर लिपस्टिक की बजाय सपना पलता!

फिल्म लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ पर एक अच्छी टिप्पणी युवा लेखिका निवेदिता सिंह की- मौडरेटर ============================================= लिपस्टिक अंडर माए बुरखा फ़िल्म तब से चर्चा में है जबसे से इसका निर्माण शुरू हुआ है पर फ़िल्म ज्यादा चर्चित तब हुई जब रिलीज से पहले फ़िल्म सेंसर बोर्ड में अटक गई। अटकना …

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आयाम : साहित्यिक आयोजन है या गुटबाजी का एक मंच

पटना में ‘आयाम’ संस्था के बैनर तले स्त्री लेखन का एक अच्छा आयोजन हुआ। इस आयोजन का आँखों देखा हाल सुना रहे हैं  युवा लेखक सुशील कुमार भारद्वाज– ================== बिहार की साहित्यिक संस्था “आयाम” का दूसरा वर्षगांठ जेडी विमेंस कॉलेज, पटना के भव्य सभागार में तिलक एवं अक्षत के साथ …

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बिना मेकअप की सेल्फ़ियाँ: एक ज़रूरी हस्तक्षेप

सुबह सुबह उठा तो एक जबर्दस्ती की लेखिका का फेसबुक स्टेटस पढ़ा जिसमें उन्होने निंदा की थी कि नेचुरल सेलफ़ी जैसे अभियान सोशल मीडिया के चोंचले होते हैं। हालांकि पढ़ते हुए समझ में आ गया कि भीड़ का हिस्सा न बनकर उससे अलग दिखना भी सोशल मीडिया का ही एक …

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