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Prabhat Ranjan

हिंदी सिनेमा के कुछ भूले बिसरे गीतकार

दिलनवाज़ जब फिल्म-गीतकारों पर लिखते हैं तो हमेशा कुछ नया जानने को मिलता है. इस बार उन्होंने हिंदी सिनेमा के कुछ ऐसे गीतकारों को याद किया है जिनको या तो हम भूल गए हैं या जिनके बारे में जानते ही नहीं हैं. पहले जब रेडियो का ज़माना था तो गीतों को …

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लिख दूँगा दीवार पर तुम्हारा नाम

अज्ञेय के जन्म-शताब्दी वर्ष में प्रोफ़ेसर हरीश त्रिवेदी ने यह याद दिलाया है कि १९४६ में अज्ञेय की अंग्रेजी कविताओं का संकलन प्रकाशित हुआ था ‘प्रिजन डेज एंड अदर पोयम्स’. जिसकी भूमिका जवाहरलाल नेहरु ने लिखी थी. लेकिन बाद अज्ञेय-विमर्श में इस पुस्तक को भुला दिया गया. इनकी कविताओं का …

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क्योंकि हमें डर लगता है, स्वाधीनता से…

अज्ञेय की जन्मशताब्दी वर्ष में आज उनकी कविता पर प्रसिद्ध आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल का लेख. यह लेख उन्होंने अज्ञेय पर सम्पादित एक पुस्तक के लिए लिखा था. आज के सन्दर्भों में इस लेख की प्रासंगिकता कुछ और बढ़ गई है.——————————————————————————- ‘वे तो फिर आयेंगे’  क्योंकि हमें डर लगता है, स्वाधीनता …

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मैकलुस्कीगंज: एक अनूठे गाँव की अनोखी कथा

हाल में ही पत्रकार-लेखक विकास कुमार झा के उपन्यास ‘मैकलुस्कीगंज’ को लंदन का इंदु शर्मा कथा सम्मान दिया गया है. उसी उपन्यास पर प्रस्तुत है विजय शर्मा जी का विचारोत्तेजक लेख- जानकी पुल.     तत्कालीन हिन्दी साहित्य के परिदृश्य पर नजर डालने पर हम पाते हैं कि उसमें ग्रामीण …

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हाशिया पन्ने में सौंदर्य भरता है

पूर्णिमा वर्मन अभिव्यक्ति-अनुभूति की संपादिका हैं. एक समर्थ और संवेदनशील कवयित्री भी हैं. स्त्री जीवन की पीड़ा, उनका दर्द उनकी कविताओं को सार्वभौम बनाता है. प्रस्तुत है तीन कविताएँ- हाशिया पन्ने में सौंदर्य भरता है/ नियंत्रित करता है उसके विस्तार को दिशाओं में/ वही गढ़ता है लिखे हुए का आकार  मेरा घर …

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कोरी चुनरिया-सा औरत का जीवन

आज प्रसिद्ध कवयित्री सुमन केशरी की एक लंबी कविता ‘बीजल से एक सवाल’. बीजल से उसके प्रेमी ने छल किया था. उसे अपने दोस्तों के हवाले कर दिया. उसने आत्महत्या कर ली. बीजल के बहाने स्त्री-जीवन की विडंबनाओं को उद्घाटित करती यह कविता न जाने कितने सवाल उठाती है और …

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मन के अंधेरों को उजागर करनेवाला लेखक फिलिप रोथ

हाल में ही अमेरिका के प्रसिद्ध और विवादास्पद लेखक फिलिप रोथ को मैन बुकर अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिला है. उनके लेखन को लेकर प्रस्तुत है एक छोटा-सा लेख- जानकी पुल. फिलिप रोथ निस्संदेह अमेरिका के जीवित लेखकों में सबसे कद्दावर और लिक्खाड़ लेखक हैं और शायद सबसे विवादास्पद भी. उनकी विशेष पहचान …

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प्रेम भी बला है और प्रेम के बारे में बोलना भी बला

राजकिशोर इस बार सुनंदा की डायरी के साथ उपस्थित हैं- यह मेरी रचना नहीं, सुनंदा की डायरी है । पिछले साल छुट्टी बिताने के लिए मैं परिवार सहित नैनीताल गया हुआ था। वहाँ के एक गेस्ट हाउस के जिस कमरे में हम ठहरे थे, उसी की कपड़ों की आलमारी के …

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बिकने के समय को मानना चाहिए जन्म का समय

हाल में जिन कवियों की कविताओं ने विशेष ध्यान खींचा है उनमें फरीद खां का नाम ज़रूर लिया जान चाहिए. उनकी कविताओं के कुछ रंग यहाँ प्रस्तुत हैं- जानकी पुल. सोने की खान एक कलाकार ने बड़ी साधना और लगन से यह गुर सीखा कि जिस पर हाथ रख दे, …

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हवाओं को मनाता हूं परिंदे रूठ जाते हैं

आज दुष्यंत की कुछ गज़लें-कुछ शेर. जीना, खोना-पाना- उनके शेरों में इनके बिम्ब अक्सर आते हैं. शायद दुष्यंत कुमार की तरह वे भी मानते हैं- ‘मैं जिसे ओढता-बिछाता हूँ/ वो गज़ल आपको सुनाता हूँ. 1 ”मेरे खयालो! जहां भी जाओ। मुझे न भूलो, जहां भी जाओ। थके पिता का उदास …

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