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Prabhat Ranjan

जिंदगी तुम्हारी शुभाकांक्षाओं के उजास से

आज कलावंती की कविताएँ. कलावंती जी कविताएँ तो लिखती हैं लेकिन छपने-छपाने में खास यकीन नहीं करतीं. मन के उहापोहों, विचारों की घुमडन को शब्द भर देने के लिए. इसलिए उनकी कविताओं में वह पेशेवर अंदाज नहीं मिलेगा जो समकालीन कवियों में दिखाई देता है, लेकिन यही अनगढता, यही सादगी …

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भारत रत्न का अगला कोई हकदार है तो वर्गीज कुरियन

श्वेत क्रांति के जनक वर्गीज कुरियन को लेकर श्रद्धांजलियों का दौर थम चुका है. उनके योगदान का मूल्यांकन करते हुए उनके महत्व को रेखांकित कर रहे हैं प्रेमपाल शर्मा– जानकी पुल. ================================================= अमूल के अमूल्य जनक वर्गीज कुरियन नहीं रहे । रेलवे कॉलिज बड़ौदा के दिनों में उनका कई बार …

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आलोचना का गल्पित पाठ

संजीव कुमार ऐसे आलोचक हैं जिनकी आलोचना-भाषा सर्जनात्मक गद्य का आनंद देती है. यही लेख देखिये- है तो आलोचना की भाषा पर बेहद गुरु-गंभीर टाइप लेख और मैं हूं कि इसकी भाषा पर मुग्ध हुआ जा रहा हूं. शायद इसी को लालित्यपूर्ण पांडित्य कहते होंगे. बहरहाल, यह लेख उन्होंने हाल …

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डाह का साहित्यशास्त्र

युवा लेखक आशुतोष भारद्वाज हिंदी के साहित्यिक परिदृश्य पर- जानकी पुल. ===================================================  माहौल इस कदर खौफनाक हिंदी में क़िबला कि कहीं शिरकत करें तो पहले मेजबान से सभी संभावित-असंभावित प्रतिभागियों-श्रोताओं की सूची और उनकी विस्तृत जन्मकुंडली मंगा लें, जन्मोपरांत उनकी सभी गतिविधियों का बारीकान्वेषण समेत. नहीं तो आपके बगल में कोई …

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भैया एक्सप्रेस और चाचा की टिप्पणी

‘बया’ पत्रिका का नया अंक अरुण प्रकाश पर एकाग्र है. इसमें मैंने भी अरुण प्रकाश जी के ऊपर कुछ संस्मरणनुमा लिखा है. देखिएगा- प्रभात रंजन  ================================= जब भी अरुण प्रकाश याद आते हैं मुझे अपना गाँव याद आ जाता है. सीतामढ़ी में इंटरमीडिएट का विद्यार्थी था. राजनीतिशास्त्र के प्राध्यापक मदन …

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हाथी के पीछे भौंकते कुत्ते

हिंदी में गंभीर विमर्श का माहौल खत्म होता जा रहा है, मर्यादाएं टूटती जा रही हैं. अभी कुछ दिन पहले वरिष्ठ कवि  विष्णु खरे ने ‘कान्हा सान्निध्य‘ के सन्दर्भ में उसकी एक बानगी पेश की थी. आज उनके समर्थन में आग्नेय का यह पत्र ‘जनसत्ता‘ के ‘चौपाल‘ स्तंभ में प्रकाशित …

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जो राष्ट्रीय नहीं है वह क्या अंतरराष्ट्रीय होगा

कल हिंदी दिवस है. हिंदी के आह-वादी और वाह-वादी विमर्श से हटकर मैंने कुछ लिखा है. यह लेख मूल रूप से ‘प्रभात खबर’ के लिए लिखा था. अब आपके लिए- प्रभात रंजन  ========================================= हर साल हिंदी दिवस के आसपास हिंदी को लेकर दो तरह की चर्चाएँ होने लगती हैं- आह-वादी …

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हर शहर इसी तरह बहुरुपियों का शहर हुआ करता है

‘दस्तक’ एक किताब है लेकिन जरा हटके है. इसकी लेखिका यशोदा सिंह एक ऐसी लेखिका हैं जो हिंदी की साहित्यिक मण्डली के सर्टिफिकेट के साथ नहीं आई हैं, लेकिन उनकी इस किताब को हिंदी में साहित्यिक विस्तार की तरह देखा जाना चाहिए. ‘अंकुर’ नामक संस्था बस्तियों की ऐसी प्रतिभाओं को …

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लेखन एक जागृत स्वप्न है

राजेश जोशी के ये विचार प्रीति सिंह परिहार से बातचीत पर आधारित हैं. राजेश जोशी के लिए साहित्य हमेशा सबसे बड़ी प्राथमिकता रही है. हमारे दौर के इस प्रमुख कवि की यह बातचीत पढते हैं- जानकी पुल. ================================================================= लेखक की तरह लिखना सत्तर के शुरूआती दशक में शुरू किया. शुरू …

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किताबें अंग्रेजी की लोकप्रियता हिंदी में

 ट्रेन हो या बस या फ्लाइट, इन दिनों हर तरफ युवाओं को उपन्यास, या कोई रोचक टाइटल वाली किताब पढ.ते देखा जा सकता है. ऐसे समय में जब यह कहा जा रहा है कि लोग किताबों से दूर हो रहे हैं और लिटरेचर पढ़ने की संस्कृति समाप्त होती जा रही …

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