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गाब्रियल गार्सिया मार्केज़ की कहानी ‘नीले कुत्ते की आँखें’

मार्केज़ के अनुवादों को लेकर किसी से खूब चर्चा हुई तो मुझे याद आया कि उनकी एक कहानी का सुन्दर अनुवाद सरिता शर्मा ने किया है- ‘नीले कुत्ते की आँखें.’ मार्केज़ की इस एक और कहानी का हिंदी में आनंद उठाइए- प्रभात रंजन  ====================================================     फिर उसने मेरी ओर देखा. मुझे …

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गुलज़ार ने परंपरा और प्रयोग के मेल से एक नई परंपरा विकसित की

गुलज़ार साहब पर युवा लेखक प्रचंड प्रवीर का लिखा यह लेख बहुत पुराना है लेकिन गुलज़ार साहब के जादू की तरह ही इस लेख में कुछ बातें ऐसी हैं जो कभी पुरानी नहीं पड़ेंगी- ============================================   सभी सभ्यताओं में पूजन की दो तरह की परिपाटी होती है। पहली – अपने …

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आलोचना का अर्थ चरित्र हनन नहीं होता

तहलका पत्रिका के संस्कृति विशेषांक में शालिनी माथुर का लेख छपा था ‘मर्दों के खेला में औरत का नाच‘ , जिसमें कुछ लेखिकाओं की कहानियों को उदाहरण के तौर पर इस रूप में पेश किया गया था जिसे आपत्तिजनक कहा जा सकता है। मेरा निजी तौर पर यह मानना है कि नैतिकता …

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प्रेम कहानियाँ, पीढ़ियाँ, संगीत, कवितायें, ग़जलें, प्रेम पत्र और एक उपन्यास

Lovers Like you and I– यह पहला उपन्यास था जो इस साल मैंने पढ़ा था। पढ़कर गहरे अवसाद से भर गया। नयन, पलाश, मैथिल के जीवन के बारे में सोचकर। मीनाक्षी ठाकुर का यह उपन्यास भारतीय अंग्रेजी लेखन के प्रचलित रूपों से नितांत भिन्न है। इस अर्थ में कि यह …

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आइंस्टीन का पत्र राष्ट्रपति रूज़वेल्ट के नाम

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आइंस्टीन द्वारा रूज़वेल्ट को लिखे गए इस पत्र को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। बाद में अपने इस पत्र को आइंस्टीन ने अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती माना था। इस महत्वपूर्ण पत्र का अनुवाद हमारे लिए किया है युवा वैज्ञानिक मेहेरवान ने- जानकी पुल।  =============================================================== …

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ओमप्रकाश वाल्मीकि ने हिंदी की चौहद्दी का विस्तार किया

ओमप्रकाश वाल्मीकि जी के प्रति एक छोटी सी श्रद्धांजलि ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ में प्रकाशित हुई. मैंने ही लिखी है- प्रभात रंजन  ====================== ओमप्रकाश वाल्मीकि की एक कविता ‘शब्द झूठ नहीं बोलते’ की पंक्तियाँ हैं- मेरा विश्वास है/तुम्हारी तमाम कोशिशों के बाद भी/शब्द ज़िन्दा रहेंगे/समय की सीढ़ियों पर/अपने पाँव के निशान/गोदने के लिए/बदल …

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हिन्दी होमियोपैथी की तरह गरीब और बेसहारा लोगों के लिये है!

हम अक्सर बड़े लेखकों से बातचीत करते हैं, पढ़ते हैं. लेकिन आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं बातचीत एक युवा लेखक प्रचंड प्रवीर से, जो भूतनाथ के नाम से भी लेखन करते रहे हैं. आईआईटी दिल्ली से केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके जिसने लेखन को चुना, हिंदी में लेखन को. उसका …

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भारतीय सिनेमा का लास्ट लियर

युवा लेखक कुणाल सिंह सिनेमा की गहरी समझ रखते हैं. हाल में ही दिवंगत हुए फिल्मकार ऋतुपर्णो घोष पर उनका यह लेख रेखांकित किये जाने लायक है. ऋतुपर्णो घोष पर इस लेख में अनेक नई जानकारियां हैं, बंगला सिनेमा परंपरा में उनके योगदान का सम्यक मूल्यांकन भी. एक अवश्य पठनीय …

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साहित्य एक टक्कर है। एक्सीडेंट है।

प्रसिद्ध आलोचक सुधीश पचौरी ने इस व्यंग्य लेख में हिंदी आलोचना की(जिसे मनोहर श्याम जोशी ने अपने उपन्यास ‘कुरु कुरु स्वाहा’ में खलीक नामक पात्र के मुंह से ‘आलू-चना’ कहलवाया है) अच्छी पोल-पट्टी खोली है. वास्तव में रचनात्मक साहित्य की जमीन इतनी बदल चुकी है कि हिंदी आलोचना की जमीन …

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फणीश्वरनाथ रेणु का दुर्लभ रिपोर्ताज ‘जय गंगा!’

महान गद्यकार फणीश्वर नाथ रेणु जी का यह दुर्लभ रिपोर्ताज जय गंगा   प्रस्तुत है- जो रेणु रचनावली में भी उपलब्ध नहीं है- रेणु साहित्य के अध्येता श्री अनंत ने अपनी साईट www.phanishwarnathrenu.com पर इसे  प्रस्तुत किया है- इसकी ओर हमारा ध्यान दिलाया पुष्पराज जी ने- सबका आभार—– जानकी पुल   ————————————————————————————————————— …

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