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समीक्षा

ऐसा नॉवेल, जिसे पढ़ने के लिए उर्दू सीखी जा सकती है

पिछले साल उर्दू में एक किताब छपी थी। नाम है- रोहज़िन, जो रहमान अब्बास का लेटेस्ट नॉवेल है। ग़ौर करने लायक बात ये है कि छपने से लेकर आज तक इस किताब ने उर्दू की गलियों में धूम मचा रखी है। किताब से गुज़रते हुए कई बातें ख़याल में आती …

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औरतों की संगीतमय दुनिया ‘समरथ’

हुआ यूँ कि जानी मानी थिएटर आर्टिस्ट/लेखिका विभा रानी ब्रेस्ट कैंसर की शिकार हुईं और अपनी मजबूत जिजीविषा के कारण इस बीमारी से उबर भी गईं। लेकिन बीमारी के दौरान वो अपने मन की बात काग़ज़ों पर दर्ज़ करती रहीं। वो बातें, एक कविता संग्रह के रूप में प्रकाशित हुई …

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ज़िन्दगी लाइव: फंतासी झूठ नहीं, संभावना है!

किताबों के बाजार की सबसे बड़ी ब्यूटी यह होती है कि जिस किताब को लेखक-प्रकाशक चलाना चाहता है वह अक्सर नहीं चल पाती है लेकिन जिसे वह साधारण समझता है वह असाधारण रूप से पाठकों के बीच छा जाती है. प्रियदर्शन के पहले उपन्यास ‘ज़िंदगी लाइव’ के साथ यही हुआ. …

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अखिलेश के उपन्यासों के केंद्र में बेदखल होता मनुष्य है

  कल मैंने एक आत्ममुग्ध लेखिका का यह वक्तव्य पढ़ा कि अखिलेश का उपन्यास ‘निर्वासन’ हिट नहीं हुआ. मुझे हैरानी हुई कि क्या साहित्यिक कृतियाँ, गंभीर साहित्यिक कृतियाँ हिट या फ्लॉप होती हैं? क्या साहित्यिक कृतियों का मूल्यांकन इस तरह से किया जाना चाहिए? यह गंभीर बात है कि किस …

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ऋषि कपूर की आत्मकथा कपूर परिवार की ‘खुल्लमखुल्ला’ है

कल किन्डल पर ऋषि कपूर की आत्मकथा ‘खुल्लमखुल्ला’ 39 रुपये में मिल गई. पढना शुरू किया तो पढता ही चला गया. हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े सबसे सफल घराने कपूर परिवार के पहले कपूर की आत्मकथा के किस्सों से पीछा छुड़ाना मुश्किल था. सबसे पहले अफ़सोस इस बात का हुआ …

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‘गंदी बात’ के बहाने कुछ अच्छी गन्दी बात

क्या ज़माना आ गया है! पहले लिखने का मतलब होता था कुछ अच्छी अच्छी बातें. आजकल लेखक उपन्यास लिखते हैं और उसका नाम ही रख देते हैं ‘गंदी बात’. क्षितिज रॉय का उपन्यास ‘गंदी बात’ चुटीली भाषा में लिखा गया एक उपन्यास है, उसको पढ़कर कटीली भाषा में युवा पत्रकार-लेखिका …

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लेडी मंटो का पतनशील पत्नियों को सलाम 

पिछले एक महीने से एक किताब की बड़ी चर्चा है ‘पतनशील पत्नियों के नोट्स’. लेखिका नीलिमा चौहान की यह किताब एक मुश्किल किताब है. मुश्किल इस अर्थ में कि इसका पाठ किस तरह से किया जाए कि कुपाठ न हो जाए. एक मुश्किल विषय पर एक साहसिक किताब है. आज …

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हिमालय न देखा हो तो ‘दर्रा दर्रा हिमालय’ पढ़ लीजिए

‘दर्रा दर्रा हिमालय’ ऐसी किताब नहीं है जिसमें हिमालय की गोद में बसे हिल स्टेशनों की कहानी हो, जिसे पढ़ते हुए हम याद करें कि अरे नैनीताल के इस होटल में तो हम भी ठहरे थे, शिमला के रेस्तरां में बैठकर हमने भी मॉल का नजारा लिया था. हमने भी …

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‘हाफ गर्लफ्रेंड’ से क्या सीख मिलती है?

चेतन भगत ने एक बड़ा काम यह किया है कि उसने ऐसे दौर में जबकि पढना लोगों की जीवन शैली से से दूर होता जा रहा है, पढने को फैशन से जोड़ा है, उसकी पहुँच बढ़ाई है, उसका दायरा बढ़ाया है. हम अक्सर उसके लेखन की आलोचना करते हुए इस …

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जहाँ ‘अलग दिखना और अलग होने में फर्क था’

इन दिनों अल्पना मिश्र के उपन्यास ‘अन्हियारे में तलछट चमका’ की बड़ी चर्चा है. आम तौर पर किसी साहित्यिक कृति की ज्यादा चर्चा होती है तो संदेह होने लगता है कि मामला प्रायोजित तो नहीं. वैसे भी अल्पना जी ‘फील गुड टाइप लेखिका हैं. इससे ज्यादा उनके लेखन को मैंने …

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