फ्रेंच लेखक डाविड फोइन्किनोस के उपन्यास डेलिकेसी’ का एक अंश. यह उपन्यास हिंदी में ‘नजाकत’ के नाम से राजपाल एंड सन्ज प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है. अनुवाद मैंने किया है- प्रभात रंजन ================================================================ मार्कस की छोटी सी प्रेम कहानी, उसके आंसुओं के माध्यम से कही …
Read More »क्या पत्रकार होना कमतर लेखक होना होता है?
जब दो सप्ताह पहले ‘जनसत्ता’ में प्रकाशित अपने लेख में प्रोफ़ेसर गोपेश्वर सिंह ने लप्रेक लेखक रवीश कुमार को टीवी पत्रकार कहकर याद किया था तो सबसे पहले मेरे ध्यान में यह सवाल आया था कि क्या लेखक होने के लिए किसी ख़ास पेशे का होना चाहिए? हम शायद यह भूल जाते …
Read More »पाट्रिक मोदियानो का उपन्यास हिंदी में- मैं गुमशुदा!
2014 में जब फ्रेंच भाषा के लेखक पाट्रिक मोदियानो को नोबेल पुरस्कार मिला तो कम से कम हिंदी की दुनिया में वह एक अपरिचित सा नाम लगा. बाद में पढने में आया कि फ्रांस के बाहर भी उनका नाम बहुत परिचित नहीं था क्योंकि उनके अनुवाद बहुत हुए नहीं …
Read More »देवदत्त पटनायक की पुस्तक ‘भारत में देवी’ का एक अंश
देवदत्त पट्टनायक हमारे समय में संभवतः मिथकों को आम लोगों की भाषा में पाठकों तक सरल रूप में पहुंचाने वाले सबसे लोकप्रिय लेखक हैं. उनकी नई पुस्तक आई है ‘भारत में देवी: अनंत नारीत्व के पांच स्वरुप‘. यह हिन्दू धर्म में देवी के स्वरुप को लेकर संभवतः पहली पुस्तक है, जिसमें …
Read More »‘हलाला’ का मतलब है हल ला ला- भगवानदास मोरवाल
बुरा न मानो होली है की अगली कड़ी- मॉडरेटर ================================ वरिष्ठ लेखिका गीताश्री से बातचीत करने की कोशिश की, बड़ी मुश्किल से उनका यह होली सन्देश मिल पाया है- मैं क्या सन्देश दूँ मेरा जीवन ही सन्देश है. तुन्हारी होगी होली, मेरी तो हो ली! पत्रकारित्ता को लात मारी साहित्य …
Read More »जानकी पुल के पाठकों के लिए प्रेम भारद्वाज का सम्पादकीय
इस होली पर हम आभारी हैं यशस्वी संपादक प्रेम भारद्वाज जी के कि उन्होंने आज जानकी पुल के पाठकों के लिए सम्पादकीय लिखा है. हालाँकि होली का सुरूर ऐसा चढ़ा है कि ठीक ठीक कह नहीं सकता कि यह सम्पादकीय उन्होंने ही लिखा है. बहरहाल, उनको भी होली मुबारक, उनकी …
Read More »बुरा न मानो होली है
चनका के रंग में होली की भंग आज कल हिंदी में युवा काल चल रहा है. जाने किसकी पंक्ति याद आ रही है- उस दौर में होना तो बड़ी बात थी लेकिन युवा होना तो स्वर्गिक था. मेरे एक अग्रज मित्र मुझे ‘वरिष्ठ युवा’ कहते हैं. अब वरिष्ठ युवा होने …
Read More »‘आजादी’ के दौर में ‘आजादी मेरा ब्रांड’
‘आजादी मेरा ब्रांड’– कायदे से मुझे इस किताब पर जनवरी में ही लिखना चाहिए था. जनवरी में विश्व पुस्तक मेले में जब इस किताब का विमोचन हुआ था तब मैं उस कार्यक्रम में गया था. संपादक सत्यानंद निरुपम जी ने आदरपूर्वक बुलाया था. कार्यक्रम में इस किताब पर रवीश कुमार …
Read More »‘पापा, डायवोर्स क्या होता है?’
यह मेरी नई लिखी जा रही किताब का एक अंश है. पढ़कर राय दीजियेगा- प्रभात रंजन ============================================================ डायवोर्स ‘पापा, डायवोर्स क्या होता है?’ किसने बताया? मम्मा ने?’ ‘हाँ, लेकिन क्या होता है?’ ‘जब दो लोग साथ नहीं रहते हैं!’ ‘डायवोर्स क्या इंसानों में ही होता है?’ ‘हूँ…’ ‘जैसे रात आने …
Read More »‘हिंदी महोत्सव’ ने कई मिथ तोड़े हैं
पिछले रविवार की बात है. आज सुबह सुबह याद आ रही है. ‘वाणी फाउंडेशन’ और ऑक्सफोर्ड बुक स्टोर ने पिछले रविवार 6 मार्च को ‘हिंदी महोत्सव’ का आयोजन किया था, जो कई मायनों में ऐतिहासिक रहा. अब तक हिंदी के लिए इस तरह के विशिष्ट आयोजन दिल्ली में अकादमियों, कॉलेजों, …
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