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Tag Archives: प्रभात रंजन

सीता की विद्रोह कथा और ‘मैं जनक नंदिनी’

  आशा प्रभात जी के उपन्यास ‘मैं जनकनंदिनी’ पर मेरी यह समीक्षा ‘कादम्बिनी’ में आई है- प्रभात रंजन ==================================================== मिथक सतत कथाओं को तरह होती हैं। हर युग उन कथाओं को अपने युग सन्दर्भों के अनुकूल बनाकर अपना लेती है। इसीलिए देवी-देवताओं की कथाओं की अनंत कथाएं लिखी जाती रही …

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खुशी हमारा अंदरूनी भाव होता है- उसे पहचानें

आज ‘दैनिक भास्कर’ के सभी संस्करणों में मेरा यह लेख आया है- प्रभात रंजन ========================================= खुशी का मतलब बड़ी-बड़ी भौतिक उपलब्धियां पाना नहीं होता है। हालांकि हमारे समाज की यह कड़वी सच्चाई है कि हम इंसान का आकलन उसकी उपलब्धियों के आधार पर करते हैं। इससे समाज में हमारी पहचान …

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हैप्पी वाला बर्थ डे राहुल गांधी!

आज 19 जून है. याद आया राहुल गाँधी का जन्मदिन है. बारिश हो रही है. दिल्ली का मौसम किसी पहाड़ी कस्बे सा रूमानी हो गया है. सोचा कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता की तरह उनके बंगले पर माला लेकर जाऊं और हैप्पी बर्थ डे बोल आऊँ. फिर याद आया कि वे …

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धर्म विरुद्ध आचरण पर किताब बांटने की सजा

चंडीगढ़ में एक खबर की तरफ ध्यान गया. खबर मोगा जिले के बहोना गाँव की थी. वहां के सरपंच को सिख संगत की तरफ से तनखैया यानी धर्म विरुद्ध आचरण का दोषी ठहराया गया. कारण था कि उसने अपनी दाढ़ी डी सी के ऑफिस में जाकर कटवा ली थी. क्योंकि …

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क्या पूजा करना पाठ करना अपराध है?

भारतीय वामपंथ की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि वह स्थूलताओं के सहारे चलता है. सतह के ऊपर हलचल देखकर पत्थर चलाने लगता है. पानी की सतह के नीचे मेढक है, मछली है या सांप इसके बारे में सोचता भी नहीं. इसीलिए वामपंथ में अपनी थोड़ी बहुत आस्था रही भी …

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आज उसी जॉर्ज पंचम का जन्मदिन है जिनको ‘भाग्यविधाता’ कहा गया था!

आज जॉर्ज पंचम की जयंती है. 1911 में वे भारत के सम्राट बने थे और उनके स्वागत में देश भर ने जैसे पलक पांवड़े बिछा दिए थे. कहा जाता है कि ‘जन गण मन’ की रचना रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उनके ही स्वागत में की थी. यह जरूर विवाद का विषय …

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अपूर्णता के सबसे पूर्ण लेखक के बारे में कुछ अधूरी पंक्तियाँ

लेखक ब्रजेश्वर मदान की मृत्यु की खबर आने के बाद ‘कथादेश’ पत्रिका के जून अंक में उनके ऊपर कई सामग्री दी गई, उनको याद किया गया है. इसी अंक में मैंने भी ब्रजेश्वर मदान साहब को याद करते हुए कुछ लिखा है- प्रभात रंजन  =================================================== मेरी जानकारी में ब्रजेश्वर मदान …

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हिंदी में राजनीतिक उपन्यास क्यों नहीं लिखे जाते?

यह एक अजीब विरोधाभास है. हिंदी पट्टी भारत में राजनीतिक रूप से सबसे जाग्रत मानी जाती है. माना जाता है कि देश में राजनीतिक बदलावों की भूमिका इन्हीं क्षेत्रों में लिखी जाती रही है. लेकिन सबसे कम राजनीतिक उपन्यास हिंदी में लिखे गए हैं. बिहार, उत्तर प्रदेश में इतने तरह …

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राजीव गांधी ने देश के लिए जो भी किया उनको उसका जस नहीं मिला

राजीव गांधी को गए 27 साल हो गए. 80 के दशक में जब हम बड़े हो रहे थे तो हम देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री से बेपनाह मोहब्बत और नफरत दोनों करते थे. 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री की नृशंस हत्या के बाद टीवी पर हम ने अगले 12 दिनों …

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अब पुस्तक समीक्षा लिखते हुए डर लगने लगा है

मैंने अपने लेखन की शुरुआत पुस्तक समीक्षा से की थी. विद्यार्थी जीवन में लिखने से पत्र-पत्रिकाओं से कुछ मानदेय मिल जाता था. ‘जनसत्ता’, ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ के संपादक, साहित्य संपादक बहुत उदारता से किताबें दिया करते थे. एक तो पढने के लिए किताबें मिल जाती थीं, दूसरे, कम शब्दों में …

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