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Prabhat Ranjan

बाल साहित्य और शिक्षा की किताबों की चर्चा क्यों नहीं होती?

हिंदी में साल भर की किताबों का जो लेखा जोखा प्रकाशित होता है उनमें बाल साहित्य तथा शिक्षा से सम्बंधित पुस्तकों की चर्चा न के बराबर होती है. शिक्षाविद कौशलेन्द्र प्रपन्न ने एक बढ़िया आकलन करने की कोशिश की है- मॉडरेटर. ============================= कविता, कहानी, उपन्यास, यात्रा वृत्तांत आदि साहित्य की …

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मन की बात के दौर में तन की बात

जिन्होंने भी पंकज दुबे का उपन्यास ‘लूजर कहीं का’ पढ़ा है वे यह जानते हैं कि उनके लेखन में गहरा व्यंग्य बोध है. अभी हाल में एआईबी रोस्ट नमक एक नए शो को लेकर खूब चर्चा-कुचर्चा हो रही है, श्लीलता-अश्लीलता को लेकर बहसें हो रही हैं. एक करारा व्यंग्य पंकज …

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अंतरात्मा सिर्फ बड़े लोगों के पास होती है

एक नया व्यंग्य संग्रह आया है राकेश कायस्थ का ‘कोस कोस शब्दकोश’. एक चुटीला व्यंग्य उसी से हाजिर है- मॉडरेटर ============ अंतरात्मा सिर्फ बड़े लोगों के पास होती है। बड़े लोग वो होते हैं, जिनका पीछा टीवी कैमरा करते हैं। जिनकी हर छोटी बात एक बड़ी  ख़बर बनती है और …

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रंगीन शीशे से दुनिया को देखना: आर के लक्ष्मण

2015 में ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ में महान कार्टूनिस्ट आर. के. लक्ष्मण की आत्मकथा ‘द टनेल ऑफ़ टाइम’ का एक अंश प्रकाशित हुआ है. अनुवाद मैंने ही किया था- प्रभात रंजन  ======================================= और इस तरह मैं बगीचे में भटकता रहता था, वह बहुत बड़ा था, वहां कम उम्र के लड़कों के लिए …

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शैलजा पाठक की कविताएं

आज शैलजा पाठक की कविताएं. शैलजा पाठक  की कविताओं में विस्थापन की अन्तर्निहित पीड़ा है. छूटे हुए गाँव, सिवान, अपने-पराये, बोली-ठोली. एक ख़ास तरह की करुणा. आप भी पढ़िए- मॉडरेटर  =========================================================== 1    1.   इतनी सी ख़ुशी     हमने कब कहा बो देना मुझे अपने मन की जमीन पर  हमने …

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भोजपुरी फिल्मों का सफरनामा एक किताब में

भोजपुरी सिनेमा के ऊपर एक किताब आई है जिसके लेखक है रविराज पटेल. रविराज पटेल से एक बातचीत की है सैयद एस. तौहीद ने- मॉडरेटर  ================================ भोजपुरी फिल्मों का इतिहास यूं तो पचास बरसों से अधिक का होने को आया लेकिन उसके दस्तावेजीकरण का काम कम हुआ . हालिया में …

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लक्ष्मण बुनियादी तौर पर ‘कॉमन सेंस’ के कार्टूनिस्ट थे

आर. के. लक्ष्मण को श्रद्धांजलि देते हुए मेरे प्रिय कार्टूनिस्ट राजेंद्र धोड़पकर ने उनकी कला का बहुत अच्छा विश्लेषण किया है. आज ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ में उनका यह लेख प्रकाशित हुआ है. आप भी पढ़िए- प्रभात रंजन  ============= भारत में आर के लक्ष्मण का नाम कार्टून से वैसे ही जुड़ा हुआ …

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कामयाबी से गुमनामी तक का सफरनामा

सत्तर के दशक के में हिंदी सिनेमा के पहले सुपर स्टार माने जाने वाले राजेश खन्ना का आरंभिक सिनेमाई जीवन एक खुली किताब की तरह सार्वजनिक है तो बाद का जीवन रहस्यमयी है, किसी ट्रेजिक हीरो की तरह कारुणिक. सत्तर के दशक के आरंभिक वर्षों में अखबारों में उनकी फिल्मों …

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हर पिछला कदम अगले कदम से खौफ खाता है

‘लप्रेक’ को लेकर हिंदी में जिस तरह की प्रतिक्रियाएं देखने में आ रही हैं उससे मुझे सीतामढ़ी के सबसे बड़े स्थानीय कवि पूर्णेंदु जी की काव्य पंक्तियाँ याद आती हैं- ‘कि हर पिछला कदम अगले कदम से खौफ खाता है.’ हिंदी गद्य का इतिहास बताता है कि हर दौर का …

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क्रांति और भ्रांति के बीच ‘लप्रेक’

लप्रेक के आने की सुगबुगाहट जब से शुरू हुई है हिंदी में परंपरा-परम्परा की फुसफुसाहट शुरू हो गई है. कल वरिष्ठ लेखक भगवानदास मोरवाल ने लप्रेक को लेकर सवाल उठाये थे. आज युवा लेखक-प्राध्यापक नवीन रमण मजबूती के साथ कुछ बातें रखी हैं लप्रेक के पक्ष में. लप्रेक बहस में …

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