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कथा-कहानी

लवली गोस्वामी के उपन्यास ‘वनिका’ का एक अंश

सुपरिचित कवयित्री लवली गोस्वामी ने पहला उपन्यास लिखा है उसी उपन्यास ‘वनिका’ के कुछ अंश पढ़िए- ======================= लवली गोस्वामी अध्याय -1 अभी इस जगह पर मैं अभी एक पुलिसवाले के गनपॉइंट पर हूँ। चारों तरफ़ ताबड़तोड़ गोलियाँ चल रही है। मेरे जैकेट की जेब में एक रिवाल्वर है, मैं उसे …

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प्रमोद द्विवेदी की कहानी ‘देवानंद की आखिरी फेसबुक पोस्ट’

जानकी पुल पिछले करीब एक सप्ताह से अधिक समय से तकनीकी कारणों से बंद था। कल रात में हमारे साथियों ने इसको वापस हासिल कर लिया। इसी खुशी में पढ़िए प्रमोद द्विवेदी की यह कहानी। प्रमोद द्विवेदी जनसत्ता में फ़ीचर संपादक रहे और कहानियों में विट और हयुमर के लिए …

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प्रियंका ओम की कहानी ‘रात के सलीब पर’

आज पढ़िए युवा लेखिका प्रियंका ओम की कहानी ‘रात के सलीब पर’। एक अलग तरह की पृष्ठभूमि की यह कहानी बेहद पठनीय है और रोचक भी- ===================== शहर से दूर पश्चिमी तट पर संपर्क तंत्र से रहित, लम्बे ताड़ दरख्तों से घिरा यह पोशीदा ज़ज़ीरा बुजदिला वास्ते बहिश्त है। शोर-शराबे …

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अणुशक्ति सिंह की कहानी ‘आय’म अ गुड बॉय, मै’म’

आज पढ़िए युवा लेखिका अणुशक्ति सिंह की एक संवेदनशील कहानी। यह कहानी ‘परिंदे’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई है। आप लोगों के लिए यहाँ दी जा रही है- ============= बस की खिड़की से बाहर देखना उसे अच्छा लगता था। कंडक्टर ने कई बार बस की खिड़की बंद करने की ताक़ीद …

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जीवन इस पार और उस पार

आज पढ़िए प्रियंका नारायण की कहानी। लगभग साइंस फ़िक्शन जैसी यह कहानी रोचक भी है और ज्ञानवर्धक भी। आप भी पढ़िएगा- ===================== काले बादलों से घिरी सुबह… ठंढ़ी हवा और दूर तक फैली घास…मोबाईल की घंटी बजी, किसी ने दो शब्द कहें और मन जैसे कहीं दूर खो गया… ऊर्जा, …

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रमेश ठाकुर की कहानी ‘फिर कभी मिलेंगे’

आज पढ़िए युवा लेखक रमेश ठाकुर की कहानी। पढ़कर अपनी राय ज़रूर दीजिएगा- =============== “हैलो राकेश! कहाँ हो तुम?” “मैं अपने कॉलेज में हूँ। तुम बताओ, तुम कहाँ हो? आज कैसे याद किया?” “मैं कैंपस आ रही हूँ। तुम मुझे आर्ट्स फ़ैकल्टी में मिलोगे?” “बताओ, कुछ काम होगा तो आ …

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प्रदीपिका सारस्वत की कहानी ‘घर-घाटी-सुरंग’

युवा लेखिका प्रदीपिका सारस्वत को इस कहानी के लिए रमा महता लेखन अनुदान मिला था। आप भी पढ़ सकते हैं- ============================== दूसरी बार मैसेज आया था कि श्रीनगर से दिल्ली जाने वाली उड़ान संख्या एबीसीडी खराब मौसम के चलते अपने सही समय से एक घंटे की देरी पर उड़ान भरेगी. बोर्डिंग गेट के पास बैठी कल्याणी ने गहरी साँस ली. अब बहुत उम्मीद नहीं थी कि आज वह दिल्ली पहुँच सकेगी. ज़्यादातर उड़ानें एक-एक कर रद्द हो चुकी थीं. देर से आसमान पर छाया धुँधलका अब और गहरा होने लगा था. चार बजने में अब भी कुछ देर थी और मौसम ठीक होने के कोई आसार नहीं लग रहे थे. कल्याणी का मन तो किया कि बैग उठाए और सीधे टीआरसी पहुँच जाए. शायद अभी कोई गाड़ी मिल ही जाए जम्मू तक. पर उसकी फ़्लाइट अब तक कैंसल नहीं की गई थी. उसकी नज़रें कभी कांच की दीवार के बाहर आसमान को टटोलतीं तो कभी दाईं तरफ की दीवार पर लगे डिसप्ले पर टिक जातीं. फ़्लाइट एबीसीडी- डिलेड बाइ 2 आवर्स. ये दो घंटे थे कि ख़त्म नहीं होने पा रहे थे. अगले आधे घंटे में वह छोटा-सा एयरपोर्ट लगभग ख़ाली हो गया. बाहर बर्फ़ के छोटे-छोटे फाहे साइप्रस की क़तारों को सफेद टोपियों से ढक रहे थे. आख़िरकार कल्याणी अपने रकसैक को एक कंधे पर टाँगे, रुआँसा चेहरा लिए बाहर निकली. एग्ज़िट के पास खड़े बूढ़े पुलिस वाले ने उसका चेहरा देखा तो उसने दिलासा दिया, “मैडम अब आप कश्मीर की बर्फ़ देखिए.” कल्याणी ने एक पल रुककर उस पुलिसवाले को देखा. इसे क्या खबर थी कि इस बार बर्फ़ गिरने से पहले ही उसने यहाँ कितनी बर्फ देख ली थी. एक फीकी-सी मुस्कान देकर वह टैक्सी स्टैंड की तरफ बढ़ गई. टीआरसी पर एक ही गाड़ी थी. अंदर पाँच-छह लोग थे और ड्राइवर निकलने के लिए तैयार था. कल्याणी अकेली लड़की थी, उसे आगे वाली सीट दे दी गई. जो ड्राइवर उसे एयरपोर्ट से लाया था वो अब भी समझाने में लगा हुआ था कि मैडम आप अकेले जा रही हो, इस खराब मौसम में इस बखत सफ़र मत करो. पर कल्याणी को किसी भी तरह बस घाटी से बाहर निकलना था. ऐसा पहली बार नहीं हुआ था उसके साथ. सीट को थोड़ा और पीछे रीक्लाइन करने के बाद, वह आँखें बंद करके सीट से टिक गई. उसे हर बार इस तरह सब छोड़कर क्यों निकल जाना पड़ता है? गाड़ी जब टीआरसी से डल गेट की तरफ बढ़ी तो कल्याणी ने अपने आपको इस सवाल का सामना करते हुए पाया. क्या वह भाग रही थी? क्या वह अब तक बस भागती रही है? उफ़! इतने सर्द मौसम में अपने आप को कटघरे में खड़ा करना आसान होता है कहीं! उसकी बाईं आँख से एक आँसू निकलकर गर्दन तक ढलक आया. गति की दिशा के उलट चलते पॉपलर के पेड़ों की बदरंग हो चुकी पत्तियों पर बर्फ़ अब और तेज़ी से गिर रही थी. उसकी हथेलियाँ मुट्ठियों में भिंची हुईं थीं. दाईं मुट्ठी ऊपर उठाकर उसने गाल और गर्दन पर खिंच आई गीली लकीर मिटा दी. उसने महसूस किया कि ड्राइवर ने एक बार उसकी तरफ देखा था. उसने अपना चेहरा खिड़की की तरफ मोड़ लिया. श्रीनगर में बर्फ़ गिरती थी तो कितनी खुश होती थी वह, लेकिन आज वही ख़ूबसूरती उसे चुभ रही थी. वे जल्दी-जल्दी सड़क पार करती हुई औरतें और मर्द, वे सफेद होती जाती घरों की छतें, वे दरख़्त और वो हवा जिनके लिए वह जान देती थी, सब के सब उसे बेहद अजनबी लग रहे थे. सिर्फ़ अजनबी नहीं, कुछ और. कुछ और, जो अपने और पराए होने से अलग था, दोस्त और दुश्मन होने से भी अलग. उससे कुछ ज़्यादा गहरा. कुछ ऐसा जो उसकी पहुँच से बाहर था. कल्याणी फूट-फूट कर रो देना चाहती थी. वह जल्दी से कहीं पहुँच जाना चाहती थी, जहाँ अकेले बैठकर रो सके. बीबी कैन्ट के पास से गुज़रते हुए उसने दो बच्चों को एक घर के लॉन में दौड़ते देखा. उनकी माँ उनके पीछे, उन्हें पकड़ने दौड़ रही थी. न जाने उन बच्चों के चेहरों में ऐसा क्या था कि वो फूट-फूट कर रोने को हो आई. चार साल पहले की वो शाम किसी किताब की तरह उसके सामने खुल पड़ी थी, वो शाम जब उसका रोका हुआ था. घर में अब भी मेहमान बाकी थे. लड़के वाले जा चुके थे, पर दीदियाँ-फूफियाँ अब भी दादी के साथ बैठी न जाने कौन-से दिनों की बातें कर रही थीं. एक लड़की की शादी तय होती है, तो ब्याही हुई लड़कियाँ भी कुछ देर के लिए कुवाँरी हो जाती हैं. उन सब ने कल्याणी को दबोच कर वहीं बैठा रखा था. पर वह जैसे उनकी कोई बात सुन नहीं पा रही थी. उसे लगा था कि वे सब लोग उसे जानते ही नहीं थे. उन सबके लिए वह उतनी ही अजनबी थी जितनी कि सवेरे आने वाला दूधवाला या महीने में एक दिन आनेवाला बिजली दफ़्तर का कारिंदा. वह उन्हें बताना चाहती थी कि वह उनमें से एक नहीं थी. उसने कभी उनके जैसे सपने नहीं देखे थे, उनके जैसे गीत नहीं सीखे थे, उनके जैसे बचपन नहीं गुज़ारा था. वक्त ने उसे बहुत जल्दी सिखा दिया था कि ज़रूरी नहीं कि दूसरों का ग़लत उसका भी ग़लत हो और दूसरों का सही उसका सही. बहुत जल्दी ही सही-ग़लत की वो रस्सी उसके पाँवों से खुल गई थी जो उस घर की हर लड़की को पैदा होते ही पहना दी जाती है. वहां सही और गलत की परिभाषाएँ इतनी गड्ड-मड्ड थीं कि उनमें अपने-आप को खपाने के बजाय कल्याणी ने उनसे दूरी बनाना बेहतर समझा था. बिन माँ की लड़की को कौन सिखाता कि दूरियाँ बनाने से उलझनें सुलझती नहीं, और उलझ जाती हैं. जाने-पहचाने …

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अनुकृति उपाध्याय की कहानी ‘गली और चिड़ियाँ’

अनुकृति उपाध्याय समकालीन कथा-संसार में अपनी अलग पहचान रखती हैं। बहुत कम समय में उन्होंने अछूते विषयों पर लिखी कहानियों से अलग पहचान बनाई है। यह उनकी नई कहानी है। ‘नया ज्ञानोदय’ में प्रकाशित यह कहानी आप लोगों के लिए- ========================== उसने तय किया कि वह घर की एक और …

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मियाँ मक़सूद अली ‘ख़ुशदिल’ की कहानी

आज पढ़िए वसी हैदर एक सॉफ़्टवेयर इंजीनियर हैं और जाने-माने ऑनलाइन बुक्स मार्केट्प्लेस उर्दू बाज़ार के संस्थापक हैं। वसी पिछले 4 सालों से दास्तानगोई कलेक्टिव से भी जुड़े हुए हैं और कई दास्तान सुना चुके हैं। उर्दू अदब से ख़ास जुड़ाव और किताबें पढ़ने का शौक़ इनको लिखने की तरफ़ …

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कुंदन यादव की कहानी ‘मुखाग्नि’

आज पढ़िए कुंदन यादव की कहानी ‘मुखाग्नि’। कुंदन यादव जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के विद्यार्थी रहे हैं, फुलब्राइट स्कॉलर के तौर पर इलिनॉय विश्वविद्यालय, शिकागो में हिन्दी और भारतीय संस्कृति का अध्यापन कर चुके हैं। भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी हैं। लेकिन हमारे लिए लेखक हैं और आप उनकी इस कहानी …

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