मेरी अपनी नज़र में हितेन्द्र पटेल की किताब ‘आधुनिक भारत का ऐतिहासिक यथार्थ’ पिछले एक दशक में प्रकाशित हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ आलोचना पुस्तक है। यह अतिशयोक्ति लग सकती है लेकिन हिन्दी उपन्यासों के माध्यम से उस ऐतिहासिक परिदृश्य का खाका तैयार करना बहुत मेहनत की माँग करता है और स्पष्ट …
Read More »आत्मा की आवाज़ का कवि अशोक वाजपेयी
आज वरिष्ठ कवि, चिंतक, संस्कृतकर्मी अशोक वाजपेयी का जन्मदिन है। जानकी पुल उनके शतायु होने की कामना करता है। इस अवसर पर पढ़िए युवा लेखिका रश्मि भारद्वाज की यह टिप्पणी- ============== ‘मुझे किसी ने बताया नहीं था कि कवि होने के लिए क्या-क्या होना न होना पड़ता है!’ अपना समय …
Read More »कोई निंदौ कोई बिंदौ: माधव हाड़ा
मीरांबाई के जीवन और तत्कालीन समाज पर माधव हाड़ा की किताब पचरंग चोला पहर सखी री का दूसरा संस्करण आया है। इस किताब का पहले अंग्रेज़ी में अनुवाद भी हो चुका है। यह किताब निस्संदेह मीरांबाई को समझने की एक नई दृष्टि देती है। बहरहाल, वाणी प्रकाशन से प्रकाशित किताब …
Read More »होगा कोई ऐसा जो ग़ालिब को न जाने
आज ग़ालिब को याद करने का दिन है। युवा शोधार्थी अनु रंजनी अपने विद्यार्थी दिनों से जोड़कर ग़ालिब को याद किया है। आप भी पढ़ सकते हैं- ============================== ‘ग़ालिब आप को क्यों पसंद हैं?’ यह सवाल जब बीए में पूछा गया था तब दिमाग़ नंबर ज़्यादा कैसे आएगा इस …
Read More »स्त्री-पुरुष के अन्तःमन की पड़ताल : स्त्री मेरे भीतर
पवन करण के कविता संग्रह ‘स्त्री मेरे भीतर’ पर यह सुविचारित टिप्पणी लिखी है युवा लेखिका अनु रंजनी ने। आप भी पढ़ सकते हैं- ======================= जब हम स्त्री-गुण या पौरुष-गुण की बात करते हैं तो हम कहीं न कहीं समाज द्वारा निर्मित मापदंडों को ही सच मान रहे होते …
Read More »मानसिक स्वास्थ्य और आधुनिक जीवन
मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ रही है। अच्छी बात यह है कि किशोरों में भी इस बात की समझ बढ़ रही है। यह लेख लिखा है नानकमत्ता पब्लिक स्कूल उत्तराखण्ड की विद्यार्थी साक्षी भंडारी ने। आप भी पढ़ सकते हैं- ============================ हमारी तेज़-तर्रार, उच्च तनाव वाली दुनिया में, मानसिक …
Read More »शहर में इक शोर है और कोई सदा नहीं
आज महान शायर जौन एलिया की जयंती है। इस मौक़े पर पढ़िए यह पेशकश, प्रस्तुति है शायर सुहैब अहमद फ़ारूक़ी की- ============================ कोई नहीं यहाँ ख़मोश, कोई पुकारता नहीं शह्र में इक शोर है और कोई सदा नहीं नाम ही नाम चार सू, इक हुजूम रूबरू कोई तो हो …
Read More »वहीदा, स्मिता और तब्बू का तिलिस्म
हिन्दी सिनेमा की तीन अभिनेत्रियों वहीदा रहमान, स्मिता पाटिल और तब्बू के बहाने हिन्दी सिनेमा की अभिनेत्रियों पर यह पठनीय लेख लिखा है योगेश ध्यानी ने। आप भी पढ़ सकते हैं- ============== हिन्दी सिनेमा की अन्य तमाम अभिनेत्रियों के बीच अलग-अलग समय पर तीन अभिनेत्रियां ऐसी हैं जिनकी उपस्थिति बाकियों …
Read More »पुरुष कवियों की कविताओं में स्त्री की उपस्थिति और दृष्टि
युवा कवियों की कविताओं में स्त्रियाँ किस तरह से आई हैं इसको लेकर एक अच्छा लेख लिखा है काशी हिंदू विश्वविद्यालय के युवा शोधार्थी महेश कुमार ने। आप भी पढ़िए- ============================= प्रस्तुत लेख में कुछ युवा पुरुषों द्वारा रचित स्त्री केंद्रित कविताओं का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में …
Read More »प्राचीन कथानक में आधुनिक भावबोध
जब युवा क्लासिक कृतियों पर लिखते हैं तो अच्छा लगता है कि वे परंपरा को समझना चाहते हैं। युवा लेखिका अनु रंजनी ने मोहन राकेश के कालजयी नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ पर यह लेख लिखा है, जिसमें कई नई बातें मुझे दिखाई दीं। आप भी पढ़ सकते हैं- ============== …
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