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Prabhat Ranjan

बली सिंह की कविताएं

बली सिंह को हम लोग एक संघर्षशील, ईमानदार और जुझारू जनवादी कार्यकर्ता के रूप में जानते हैं. कम लोग जानते हैं कि वे बेहद संवेदनशील कवि हैं. कॉलेज के दिनों में उनकी एक कविता मुझे बहुत पसंद थी- घर न हुआ कुआँ हो गया… अभी हाल में ही उनक एक …

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‘आजादी’ के दौर में ‘आजादी मेरा ब्रांड’

‘आजादी मेरा ब्रांड’– कायदे से मुझे इस किताब पर जनवरी में ही लिखना चाहिए था. जनवरी में विश्व पुस्तक मेले में जब इस किताब का विमोचन हुआ था तब मैं उस कार्यक्रम में गया था. संपादक सत्यानंद निरुपम जी ने आदरपूर्वक बुलाया था. कार्यक्रम में इस किताब पर रवीश कुमार …

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‘पापा, डायवोर्स क्या होता है?’

यह मेरी नई लिखी जा रही किताब का एक अंश है. पढ़कर राय दीजियेगा- प्रभात रंजन  ============================================================ डायवोर्स ‘पापा, डायवोर्स क्या होता है?’ किसने बताया? मम्मा ने?’ ‘हाँ, लेकिन क्या होता है?’ ‘जब दो लोग साथ नहीं रहते हैं!’ ‘डायवोर्स क्या इंसानों में ही होता है?’ ‘हूँ…’ ‘जैसे रात आने …

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‘हिंदी महोत्सव’ ने कई मिथ तोड़े हैं

पिछले रविवार की बात है. आज सुबह सुबह याद आ रही है. ‘वाणी फाउंडेशन’ और ऑक्सफोर्ड बुक स्टोर ने पिछले रविवार 6 मार्च को ‘हिंदी महोत्सव’ का आयोजन किया था, जो कई मायनों में ऐतिहासिक रहा. अब तक हिंदी के लिए इस तरह के विशिष्ट आयोजन दिल्ली में अकादमियों, कॉलेजों, …

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मौलश्री कुलकर्णी की कविताएं

आज मौलश्री कुलकर्णी की कविताएं. पेशे से इंजीनियर मौलश्री नाटकों में भाग लेती रही हैं, 8 वीं क्लास से कविताएं लिख रही हैं लेकिन उनको खुद ही टुच्ची समझती रहीं. गहरी उद्दाम भावनाओं की अभिव्यक्ति है उनकी कविताओं में. हर तरह की कवितायेँ लिखती हैं, क्रिकेट से लेकर, समाज पर. लेकिन फिलहाल …

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क्यों जाएँ ‘जय गंगाजल’ देखने?

आज महाशिवरात्रि है. आज ‘जय गंगाजल’ फिल्म की समीक्षा पढ़िए. प्रकाश झा की फिल्म है, मानव कौल की एक्टिंग है, बिहार की राजनीति है. निजी तौर पर मुझे प्रकाश झा की किसी फिल्म ने कभी निराश नहीं किया. बहरहाल, इस फिल्म की एक अनौपचारिक, ईमानदार समीक्षा लिखी है युवा लेखिका …

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प्रकृति करगेती की कहानी ‘प्यार का आकार’

बहुत सहज कहानी है, बिना किसी अतिरिक्त कथन के. हाँ, आप चाहें तो उसकी ओवररीडिंग कर सकते हैं. कहानी में यह स्पेस है- प्रकृति करगेती की यह कहानी पढ़ते हुए सबसे पहले यही बात ध्यान में आई. प्रकृति की कवितायेँ पहले जानकी पुल पर आ चुकी हैं, उनको ‘हंस’ पत्रिका …

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कृष्ण कुमार का लेख ‘विश्वविद्यालय का बीहड़’

इन दिनों विश्वविद्यालयों की स्वायत्तात का मुद्दा जेरे-बहस है. इसको लेकर एक विचारणीय लेख कृष्ण कुमार का पढ़ा ‘रविवार डाइजेस्ट’ नामक पत्रिका में. आपके लिए प्रस्तुत है- मॉडरेटर. =============================================================   रोहित बेमुला की आत्महत्या एक प्रश्नभीरु समाज में बहस और विवाद का विषय बन जाए, यह आश्चर्य की बात नहीं …

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भावना शेखर की कविताएं

भावना शेखर हिंदी कविता में पटना की आवाज हैं. केंद्र में परिधि की आवाज. कविता के उन मुहावरों से मुक्त जिनके जैसा लिखने को ही कविता मानने की जिद दशकों तक हिंदी के आलोचकों ने ठान रखी थी. हिंदी कविता में अब बड़े-बड़े विचारों की जगह छोटे-छोटी चिंताएं सामें आ …

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सौम्या बैजल की कविताएं

हिंदी के मठाधीश कविता की विविधता को सेंसर करते रहे, उसकी आवाजों को एकायामी बनाने की जिद करते रहे. लेकिन आज अच्छी बात यह है कि हिंदी कविता की हर आवाज सक्रिय है, दबावों से मुक्त है. ऐसी ही एक आवाज सौम्या बैजल की भी है, जो हिंदी कविता की …

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