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लेख

आज भी तुलसी दास एक पहेली हैं

कल महाकवि तुलसीदास की जयंती मनाई जा रही थी। प्रेम कुमार मणि का यह लेख कल पढ़ने को मिला। प्रमोद रंजन ने एक ग्रुप मेल में साझा किया था। आप भी पढ़िए। प्रेम कुमार मणि के लेखन का मैं पहले से ही क़ायल रहा हूँ और क़ायल हो गया- ================= …

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ठगिनी नैना क्यों झमकावै

माताहारी का नाम हम सुनते आए हैं। उसकी संक्षिप्त कहानी लिखी है त्रिलोकनाथ पांडेय ने। त्रिलोकनाथ जी जासूसी महकमे के आला अधिकारी रह चुके हैं। अच्छे लेखक हैं। आइए उनके लिखे में माताहारी की कहानी पढ़ते हैं- ================== साल 1917 की बात है. अक्टूबर महीने की 15वीं तारीख की अल-सुबह …

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पेरियार की दृष्टि में रामकथा

पेरियार ई.वी. रामासामी की किताब ‘सच्ची रामायण’ का प्रकाशन हुआ है। लॉकडाउन के बाद पुस्तकों के प्रकाशन की शुरुआत उत्साहजनक खबर है। पेरियार की दो किताबों के प्रकाशन के साथ राजकमल प्रकाशन ने पाठकोपोयोगी कुछ घोषणाएँ भी की हैं। पहले ई.वी. रामासामी पेरियार की रामकथा पर यह टिप्पणी पढ़िए। अपने …

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संतराम बी.ए. के बारे में आप कितना जानते हैं?

सुरेश कुमार युवा शोधकर्ता हैं और 19वीं सदी के उत्तरार्ध से लेकर 20वीं सदी के पूर्वार्ध के अनेक बहसतलाब मुद्दों, व्यकतियों के लेखन को अपने लेखों के माध्यम से उठाते रहे हैं। संतराम बीए पर उनका यह लेख बहुत रोचक और ज्ञानवर्धक है- ==============   हिन्दी के आलोचकों ने नवजागरण …

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हिंदी की भूमंडलोत्तर कहानी के बहाने

दिनेश कर्नाटक लेखक हैं, अध्यापक हैं। हिंदी कहानी के सौ वर्ष और भूमंडलोत्तर कहानी पर उनकी एक किताब आई है। उसी किताब से यह लेख पढ़िए- ========================== भूमंडलोत्तर कहानीकारों के हिन्दी कथा परिदृश्य में सामने आने का समय बीसवीं सदी का अंतिम दशक है। यह समय देश में कई तरह …

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रचना का समय और रचनाकार का समय

योगेश प्रताप शेखर दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं और हिंदी के कुछ संभावनाशील युवा आलोचकों में हैं। रचना के समय और रचनाकार के समय में अंतर को समझने में  यह लेख बहुत सहायक है- ============================ कहते हैं कि साहित्य समय की अभिव्यक्ति है। समय की व्यापकता और उसके …

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उन्नीसवीं शताब्दी का आख़िरी दशक, स्त्री शिक्षा और देसी विदेशी का सवाल

युवा शोधकर्ता सुरेश कुमार ने 19 वीं शताब्दी के आख़िरी दशकों तथा बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों के स्त्री साहित्य पर गहरा शोध किया है। हम उनके लेख पढ़ते सराहते रहे हैं। आज उनका लेख 19 वीं शताब्दी के आख़िरी दशकों में स्त्री शिक्षा को लेकर चल रही बहसों को …

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ये चराग़ बे-नज़र है ये सितारा बे-ज़बाँ है!

दरभंगा महाराज रामेश्वर सिंह पुरा नायक की तरह रहे हैं, जितनी उपलब्धियाँ उतने ही क़िस्से। अलीगढ़ के मोहम्मडन एंग्लो ओरियेंटल कॉलेज के लिए भी उन्होंने योगदान किया था और वहाँ उन्होंने एक व्याख्यान भी दिया था, जिसके बारे में कम ही लोगों को पता होगा।  प्रोफ़ेसर पंकज पराशर ने उनके …

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कोरोना काल में मध्यवर्गीय खिड़की और बालकनी

सदन झा इतिहासकार हैं, संवेदनशील लेखक हैं। अपने तरह के अनूठे गद्यकार हैं। कोरोना काल के अनुभवों को उन्होंने रचनात्मक तरीक़े से लिखा है- ========================= कोरोना काल में मध्यवर्गीय खिड़की और बालकनी के रास्ते नजर बाहर जाती है। सुनसान पड़ी सड़कें उन्हे बिना देर किए लौटा देती है। यह मन …

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कोरोना की चुनौती एवं अवसर

दिल्ली विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा भूमिका सोनी एक बहुराष्ट्रीय बैंक में काम करती हैं। लॉकडाउन के दौरान कामकाज के अनुभव किस प्रकार के हैं, युवा किस तरह से सोच रहा है इसके ऊपर उन्होंने एक अच्छा लेख लिखा है- आप भी पढ़िए- ======================================== कोरोना पूरे विश्व में फैल चुका है। …

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