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लेख

मदरसा -एजुकेशन के दिन

सुहैब अहमद फ़ारूक़ी पुलिस अधिकारी हैं लेकिन संजीदा शायर हैं और अच्छे गद्यकार भी हैं। हम पहले भी पातालकोट पर लिखी उनकी रिव्यू पढ़ चुके हैं। आज मदरसे में पढ़ने के उनके अनुभव पढ़िए। इससे मंडरा शिक्षा की एक झलक भी मिल जाती है- =========== मदरसा और उसमें दी जाने …

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भुवनेश्वर: एक जीनियस लेखक की याद

भुवनेश्वर को सम्यक् रूप से समझने के लिए समीर कुमार पाठक का यह लेख अच्छा लगा। वे वाराणसी में प्राध्यापक हैं। लेख आपसे साझा कर रहा हूँ- ==============================  भुवनेश्वर उन बिरले सृजनकर्मियों में थे जिन्होंने अपने छोटे से जीवनकाल में लीक से हटकर अलग किस्म का साहित्य सृजित किया और …

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शादियों के दिन महामारियों में बीत गए

युवा लेखक रविंद्र आरोही ने महामारी के इस दौर में इस स्मृति कथा के बहाने हम तमाम लोगों की स्मृतियों को जगा दिया है। आप भी पढ़िए- ====================================== इन खाली और विपद के दिनों में उन भरे हुए दिनों की बहुत यादें हैं। शादियों के दिन महामारियों में बीत रहे …

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पुतले का इतिहास और इतिहास का पुतला

प्रज्ञा मिश्रा का यह लेख अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में चले रंगभेद विरोधी प्रदर्शनों को एक भिन्न नज़रिए से देखता है, इतिहास और इतिहास स्मारकों को एक अलग नज़रिए से। प्रज्ञा मिश्रा यू॰के॰ में रहती हैं और वहाँ ब्रिस्टल शहर में एडवर्ड कोलस्टन के पुतले को हटाया गया और …

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लाल्टू का ‘खंडहर एक सफ़र’

लाल्टू हिंदी के जाने माने कवि  हैं, सामाजिक कार्यकर्ता हैं, अनुवादक हैं। इस बार उन्होंने गद्य में खंडहर का सफ़रनामा लिखा है। आप भी पढ़िए इस खंडहर होते समय में कुछ खंडहर यादें- जानकी पुल ============   खंडहर : एक सफर   1 ठंड की बारिश बन टपक रहा हूँ। …

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अविमुक्त क्षेत्र (काशी) के  मुक्त मेघों की प्रतीक्षा – भाग -1

प्रियंका नारायण बीएचयू की शोध छात्रा रही हैं। मिथकों पर अच्छा लिखती हैं। इस बार उन्होंने गल्प में मिथकीय काशी से वर्तमान काल के काशी की यात्रा की है। काशी की एक स्त्री छवि देखिए।यह उनकी पुस्तक ‘घन बरसे’ का एक अंश है- ============================= अविमुक्त क्षेत्र (काशी) के  मुक्त मेघों …

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फिल्में ही सब कुछ नहीं थीं सुशांत सिंह राजपूत के लिए

प्रज्ञा मिश्रा यूके में रहती हैं। वहाँ लॉकडाउन के अनुभवों को कई बार लिख चुकी हैं। इस बार उन्होंने अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद की प्रतिक्रियाओं को लेकर यह संवेदनशील टिप्पणी लिखी है- जानकी पुल। ======================= सुशांत सिंह राजपूत की ख़ुदकुशी की खबर आने के बाद से लोगों …

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   घासलेटी आंदोलन :  ‘अबलाओं का इन्साफ’ और अश्लीलता

‘अबलाओं का इंसाफ़’ शीर्षक से एक किताब चाँद कार्यालय से 1927 में प्रकाशित हुआ था। क्या वह किसी पुरुष का लिखा था? बनारसीदास चतुर्वेदी ने ‘घासलेटी साहित्य’ नामक आंदोलन चलाया था। वह क्या था? नैतिकता-अनैतिकता के इस बड़े विवाद पर एक दिलचस्प लेख लिखा है युवा शोधकर्ता सुरेश कुमार ने। …

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वर्तमान में लोकप्रिय साहित्य का कोई मुकाम नहीं हैं: सुरेन्द्र मोहन पाठक

हिंदी के जाने माने लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक ने यह लेख लिखा है। 60 साल की लेखन यात्रा के अनुभवों से उन्होंने यह लिखा है कि हिंदी में लेखक होने का मतलब क्या होता है। जानकी पुल के पाठकों के लिए विशेष रूप से- जानकी पुल। ========= भारत में लेखन …

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‘न हन्यते’ और ‘बंगाल नाइट्स’: एक शरीर दो आत्मा

मैत्रेयी देवी के उपन्यास ‘न हन्यते’ और मीरचा इल्याडे के उपन्यास ‘बंगाल नाइट्स’ के बारे में एक बार राजेंद्र यादव ने हंस के संपादकीय में लिखा था। किस तरह पहले बंगाल नाइट्स लिखा गया और बाद में उसके जवाब में न हन्यते। निधि अग्रवाल के इस लेख से यह पता …

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