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सिनीवाली शर्मा की कहानी ‘अधजली’

सिनीवाली शर्मा समकालीन कथा लेखन में चुपचाप अपनी पहचान पुख्ता करती जा रही हैं. उनकी यह कहानी ‘कथादेश’ में आई है. जिसकी काफी चर्चा सुनी तो सोचा कि आप लोगों से भी साझा किया जाए- मॉडरेटर ================================================== इस घर के पीछे ये नीम का पेड़ पचास सालों से खड़ा है। …

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‘सरकार’ में हिमालयन ब्लन्डर कर गए रामगोपाल वर्मा

सरकार 3 आई लेकिन इस श्रृंखला की पिछली दोनों फिल्मों की तरह कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाई. इस फिल्म के ऊपर एक छोटी सी लेकिन अचूक और सारगर्भित टिप्पणी राजीव कुमार ने की है. राजीव कुमार जी फिल्मों के बहुत गहरे जानकार हैं लेकिन लिखते कम हैं. आप भी पढ़िए- …

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माँ गूलर का दूध है, माँ निमिया की डार

कल वरिष्ठ लेखक दिविक रमेश जी ने ध्यान दिलाया कि कोलकाता से  बींजराज रांका के संपादन में 2017 में​ प्रकाशित भारत ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों की मां पर केन्द्रित ग्रंथ “मां मेरी मां” एक भव्य, जरूरी और महत्त्वपूर्ण पुस्तक प्रकाशित हुई है। इसमें मां को लेखों, कहानियों और …

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मदर्स डे और दिनकर की ‘रश्मिरथी’

मदर्स डे के दिन रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कृति ‘रश्मिरथी’ की याद भी आ जाती है. खासकर उसका पांचवां सर्ग, जिसमें कर्ण और कुंती का संवाद है. अवैध संतान होने की पीड़ा झेलता कर्ण और उसकी माँ कुंती, जिसने उसको कभी बेटा नहीं कहा. ‘रश्मिरथी’ के पांचवें सर्ग में वह …

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यूं डांवाडोल दिल है तेरी याद के बगैर, जैसे किसी की शायरी उस्ताद के बगैर

इरशाद खान ‘सिकंदर’ नए शायरों में क्लासिकी मिजाज़ रखते हैं. उनकी शायरी में उर्दू शायरी की परम्परा की झलक दिखाई देती है. जो कुछ नौजवान शायर मेरे दिल के बेहद करीब हैं इरशाद उनमें एक हैं. उसका एक कारण यह है उनकी गजलों का पहला दीवान हिंदी में ही आया …

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कहानी चर्चा : चोर-सिपाही

अनिमेष जोशी जोधपुर में रहते हैं। वहाँ इन्होंने अपने प्रयासों से लेखकों और गम्भीर पाठकों को एकजुट किया है। हर महीने इनकी मंडली एक चर्चा आयोजित करती है जहाँ ये विभिन्न विषयों पर विमर्श करते हैं। अधिकतर गोष्ठियों में अब भी पुरानी कहानियों पर संवाद होता है उसके बरअक्स इनकी गोष्ठियों …

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गांधारी का शाप गांधारी की प्रार्थना

महाभारत के किरदार गांधारी को लेकर प्रोफ़ेसर सत्य चैतन्य के इस लेखन का रूपांतरण विजय शर्मा जी ने किया है. एक नए नजरिये एक नई दृष्टि से. कल मदर्स डे है. हमें यह याद रखना चाहिए कि एक माँ गांधारी भी है जो एक एक करके अपने संतानों की मृत्यु का …

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स्वायत्त सांस्कृतिक संस्थाओं के दिन अब लदने वाले हैं

पता नहीं इसके ऊपर कितने लोगों का ध्यान गया. कुछ दिन पहले एक खबर इंडियन एक्सप्रेस में आई थी कि संस्कृति मंत्रालय ने अपने अधीन आने वाली 30 से अधिक संस्थाओं को दी जाने वाली राशि में भारी कटौती करने का फैसला किया है. साहित्य अकादेमी ने इस संबध में …

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देश का किसान बाढ़ से नहीं, राहत के रुपय पाने की लड़ाई से डरता है!

प्रतिष्ठा सिंह अपने लेखन के माध्यम से बिहार के गाँव-समाज की वास्तविक तस्वीर दिखाती हैं. उनकी किताब ‘वोटर माता की जय’ भी उसी का दस्तावेज़ है. बहरहाल, गाँव-किसानों पर उनकी यह मार्मिक टिप्पणी पढ़कर आँखों में आंसू आ गए. मैं भी किसान का बेटा हूँ. अगर गाँव में खेती के हालात …

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