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कलीमुद्दीन अहमदः अँगरेज़ी के प्रोफेसर, उर्दू के सबसे बड़े आलोचक

पटना कॉलेज, पटना में अंग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर कलीमुद्दीन अहमद को उर्दू के बड़े आलोचकों में गिना जाता है। उनके जीवन, उनके कार्यों पर एक शोधपरक लेख लिखा है केंद्रीय विश्वविद्यालय पंजाब में हिंदी के प्रोफ़ेसर पंकज पराशर ने। आप भी पढ़िए- मॉडरेटर ============== पटना कॉलेज, पटना के अँगरेजी के प्रोफेसर …

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विश्व साहित्य की प्रसिद्ध नायिकाएँ

वरिष्ठ लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ का यह लेख विश्व साहित्य की प्रसिद्ध नायिकाओं को लेकर है। आप भी पढ़िए बहुत रोचक है- ================= कोई भी कला स्त्री की उपस्थिति के बिना अपूर्ण है चाहे वह अमूर्त हो कि विशुद्ध या जादुई यथार्थ! साहित्य अधूरा है, नायिकाओं के बिना। नायिकाएं, एकरेखीय जीवन जिएं और …

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      कोरोना के समय में ताइवान : एक मेधावी चिंतक, मुस्तैद रक्षक

देवेश पथ सारिया ताइवान के एक विश्वविद्यालय में शोध छात्र हैं। वे हिंदी में कविताएँ लिखते हैं और सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं। उनका यह लेख ताइवान में कोरोनाकाल के अनुभवों को लेकर है। बहुत विस्तार से उन्होंने बताया है कि किस तरह ताइवान ने …

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औपन्यासिक कल्पना और यथार्थ: सुजाता

समकालीन लेखिकाओं में सुजाता जाना पहचाना नाम है। पिछले साल उनका एक उपन्यास भी प्रकाशित हुआ था ‘एक बटा दो’। उनका यह लेख औपन्यासिक कल्पना और यथार्थ पर है, जिसे उन्होंने नेमिचंद जैन जन्मशती पर साहित्य अकादेमी में आयोजित कार्यक्रम में पढ़ा था। सरस शैली में लिखा गया एक गम्भीर …

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केदारनाथ पाठक: हिन्दी नवजागरण दुर्ग के फाटक

यह लेख उस शख़्सियत पर है जिसकी हिंदी सेवा को भुला दिया गया। लिखा है सुरेश कुमार ने- ==================== सन् 2008 की बात है कि एम.ए. में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का द्वारा लिखित ‘हिन्दी साहित्य का  इतिहास’ पढ़ते  हुए केदारनाथ पाठक का नाम सुना था. मेरे मन उसी समय इनके संबंध में जानने की इच्छा हुई लेकिन कहीं जानकारी नहीं मिली. इधर, शोधकार्य करते समय नवजागरण कालीन हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की पुरानी फाइल देखते समय केदारनाथ पाठक का चित्र मिला. इसके बाद इनके संबंध में  जहां थोड़ी बहुत समाग्री मिली नोट करता गाया. यह लेख उसी समाग्री के आधार पर लिखा गया है. नवजागरण काल के इतिहास में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण मिश्र, राधाचरण गोस्वामी पंडित बदरीनारायण चैधरी ‘प्रेमघन’ और बाबू श्यामसुन्दर दास आदि विद्वानों ने हिन्दी साहित्य और भाषा को स्थापित करने में अमूल्य योगदान दिया है. नवजागरणकाल में हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए दो तरह के दल सक्रिय थे. इनमें एक दल  लेखकों का था जिसने  नागरी भाषा में साहित्य का सृजन कर हिन्दी भाषा के प्रति जनता की ललक पैदा की. दूसरा दल हिन्दी सेवियों का था जिन्होंने हिन्दी  को जनमानस के बीच ले जाने का काम किया.                                                       (एक)    केदारनाथ पाठक नवजागरण काल के महान हिन्दी सेवी थे. इन्होंने नागरी भाषा के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया था. केदारनाथ पाठक का जन्म सन् 1870 में मिर्जापुर में हुआ था. इनकी शिक्षा मिशनरी स्कूल में हुई थी. इनके पिता का नाम पीतांबर पाठक था. इनके पितामह गिरधारीलाल पाठक मेरठ से  प्रयाग में आकर बस गए थे. इसके बाद  जीविकोपार्जन के लिए काशी भी गए. काशी में कुछ दिन रहने  के बाद इनके पूर्वज मिर्जापुर में स्थाई रुप बस गए थे. केदारनाथ पाठक जब तीन साल के थे, तब इनके पिता का निधन हो गया था.  केदारनाथ पाठक का विवाह काशी के प्रतिष्ठित व्यक्ति छेदीलाल तिवारी की कन्या सरस्वती से हुआ था. गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारी के कारण पाठक जी मिर्जापुर की  जार्डिन फैक्टरी में काम करने लगे थे.  इस फैक्टरी का वातावरण इनके मन के अनुकूल न होने के कारण नौकरी छोड़ दी. इसके बाद हिन्दी के प्रतिष्ठत साहित्यकार पंडित बदरीनारायण के यहां ‘आनन्द कादंबिनी’प्रेस में काम करने लगे. जहां इनका परिचय हिन्दी के अनेक विद्वानों और  लेखकों से  हुआ. इन लेखकों की सोहबत में इनके मन में हिन्दी सेवा का बीज अंकुरित हुआ .   यह बड़ी दिलचस्प बात है कि केदारनाथ पाठक के यहां हिन्दी की प्रसिद्ध लेखिका बंग महिला के पिता रामप्रसन्न घोष किरायेदार बनकर रहते थे. सन् 1893 में केदारनाथ पाठक  इटावा चले गए. वहां इनकी मुलाकात प्रसिद्ध लेखक गदाधर सिंह से हुई. गदाधरसिंह की सहायता से इटावा में इन्हे गंगालहर के आफिस में नौकरी मिल गई. इस दौरान देवकीनंदन खत्री का उपन्यास ‘चन्द्रकान्ता’प्रकाशित होकर धूम मचा रहा था. सन् 1894 में केदारनाथ पाठक देवकीनंदन खत्री के उपन्यास ‘चन्द्रकान्ता’ की दिवानगी में इटावा छोड़कर काशी की तरफ चल दिए.                                                              (दो)    सन् 1893 में नागरी-प्रचारिणी सभा की स्थापना बनारस में होती है. नागरी-प्रचारिणी सभा ने सन् 1896 में हिन्दी  भाषा को अदालतों में लागू करने का प्रस्ताव ब्रिटिश हुकूमत को भेजने पर विचार किया जाता है. नागरी-प्रचारिणी सभा के सभापतियों ने यह तय किया कि पंडित मदनमोहन मालवीय के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकार को ‘कोर्ट-केरेक्टर नागरी मेमोरियल  भेजा जाए. इस मेमोरियल पर जनता हिन्दी समर्थकों के हस्ताक्षर चाहिए थे. इस कार्य के लिए नागरी प्रचारिणी सभा को एक उपयुक्त व्यक्ति की तलाश थी. बाबू राधाकृष्ण दास ने केदारनाथ पाठक को इस काम के लिए उपयुक्त समझा. इस कठिन कार्य को पाठक जी ने अपने हाथ लेकर ‘कोर्ट-केरेक्टर नागरी मेमोरियल’पर दस्तखत करवाने के लिए निकल पड़े. आप कल्पना कर सकते हैं कि ब्रिटिश सरकार के चलते इस मेमोरियल पर दस्तखत करवाना केदारनाथ पाठक के लिय कितना कठिन कार्य रहा होगा. केदरारनाथ पाठक ‘हंस’ प 1931 में प्रकाशित अपने आत्मकथ्य मे लिखते हैं : ‘‘सन् 1896 में  काशी नागरी प्रचारिणी सभा की ओर से, एक  प्रार्थना-पत्र पश्चिमो त्तर प्रदेश (वर्तमान में संयुक्तप्रांत)की सरकार के पास, इस आशय से भेजने के  लिए कि – हम लोग सरकार से देवनागरी जारी करने की प्रार्थना करते है. एक डेपुटेशन, प्रजा का हस्ताक्षर करने के लिए, वर्ष तक इस प्रान्त  भर में पर्यटन करता रहा.” इस मेमोरियल पर हस्ताक्षर करवाने  जब पाठक जी कानपुर पहुंचे तो इनकी मुलाकात हिन्दी के प्रसिद्ध सेवक और मर्चेन्ट प्रेस के मालिक बाबू सीताराम से हुई. सन 1885 में बाबू सीताराम ने  ‘भारतोदय’नामक एक  दैनिक पत्र निकाला था. इधर, राधाकृष्ण दास भारतेन्दु की स्मृति में एक पत्र निकालना चाह रहे थे. वे काफी प्रयास के बाद पत्र नहीं निकाल सके. तब ‘भारतोदय’के संपादक बाबू सीताराम ने राधाकृष्ण दास को एक पत्र. लिखा था. पाठक जी इस पत्र का उल्लेख ‘हंस में प्रकाशित अपने आत्मकथ्य में करते हैं. वह पत्र इस प्रकार है,-                                                       21 अप्रैल 1885 प्रिय मित्र, कुछ देखा –सुना? भारतोदय का जन्म जन्माष्टमी ही को है. यह नित्यमेव प्रकाश करेगा,केवल रविवार को नहीं . लो बस, लेखनी को सुधारों, कागज को उठाओ. लेखों की मरामारी से नागरी की इस क्यारी में तुम भी न्यारी ही कर लो. यह चार यारों राधाकृष्ण,चरण,प्रताप और राम की–चारयारी है. इसे बांटो अपने मान के गट्टे खोलो. लिखो, कहा तक लिखोगे. प्रिय यदि आज्ञा हो, तो इस निसहाय हिन्दू को ही प्रथम भारतोदय में ही प्रकाशित कर डाले. आपका अभिन्न सीताराम इस पत्र में चरण-राधाचरण गोस्वामी ,प्रताप- पडित प्रतापनरायण मिश्र और राम- सीताराम है. यह पत्र इस बात की गवाही देता है कि उस दौर में हिन्दी के लिए लेखक कितने समर्पित थे.   केदारनाथ पाठक ब्रिटिश सरकार के जुल्मों की परवाह किए बगैर कानपुर, लखनऊ, बलिया, गाजीपुर, गोरखपुर, इटावा, अलींगढ़, मेरठ, हरदोई, देहरादून, फैजाबाद आदि  इलाकों से मेमोरियल हस्ताक्षर प्राप्त कर नागरी प्रचारिणी के सभापतियों को सौंप दिया. बाबू श्यामसुन्दर दास अपनी आत्मकथा  ‘आत्मकहानी (1941 ) में केदारनाथ पाठक के योगदान के सम्बन्ध में लिखा है : ‘‘इस स्थान पर मैं पंडित केदारनाथ पाठक की सेवा का संक्षेप में उल्लेख करना चाहता हूं ये हिन्दी के बड़े पुराने भक्तों और सेवकों में थे. इन्होंने सभा के पुस्तकालय का कार्य अनेक वर्षो तक बड़ी लगन से किया है. ये सच्चे हृदय से सभा की शुभकामना करते थे. नागरी के आंदोलन के समय इन्होंने अनेक नगरों में घूमकर मेमोरियल पर सर्वसाधारण जनता के हस्ताक्षर प्राप्त किए थे और इस कार्य में उन्हें पुलिस की हिरासत में रहना पड़ा था. पाठक जी का परिचय बहुत से लेखकों से था. यदि वे अपने संस्मरण लिख जाते तो बड़े मनोरंजक होते.“   केदारनाथ पाठक ने नागरी प्रचारिणी सभा की बड़ी सेवा की थी. वे इसके प्रचार-प्रसार के लिए देश के भिन्न-भिन्न प्रांतों में जाकर नागरी प्रचारिणी सभा के कार्य के बारे में लोगों को बताते और हिन्दी पढ़ने के लिए लगातार लोगों को उत्साहित करते थे. केदारनाथ पाठक सभा का प्रचार करने के लिए जब बिहार पहुंचे वहां अयोध्यासिंह उपाध्याय के गुरु सुमेर सिंह इनकी हिन्दी सेवा से काफी प्रभावित हुए . शिवनंदन सहाय और गोपीकृष्ण को नागरी प्रचारिणी सभा का महत्व बताकर, केदारनाथ पाठक बांकीपुर  के प्रसिद्ध विद्वान काशीप्रसाद जायसवाल को हिन्दी साहित्य की …

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प्रवास एक चुना हुआ निर्वासन है

हिंदी और अंग्रेज़ी की सुपरिचित लेखिका अनुकृति उपाध्याय ने यात्राओं, प्रवास और अपने रचनात्मकता के ऊपर यह छोटा सा लेख लिखा है-मॉडरेटर =================== प्रवास और यात्राओं का लेखकों के मानस , उनकी रचनात्मकता और कथाभूमि पर प्रभाव जानी हुई बात है। अज्ञेय, निर्मल वर्मा, उषा प्रियंवदा के लेखन में उनके …

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लेन स्टेली –  भग्न पंखों वाला देवदूत

अमेरिकी रॉकस्टार लेन स्टेली पर यह लेख लिखा है कवयित्री अनुराधा सिंह ने- ========================= बहुत साल हुए पतझड़ की एक शाम किसी ने मुझे लेन स्टेली की कहानी सुनाई थी. कहानी के दौरान जब हमने बालकनी में सफ़ेद से लाल और फिर सुरमई होते आसमान को देखते हुए उनका सिग्नेचर …

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ब्रह्मन! अब मैथुनी सृष्टिकी रचना करो!

प्रियंका नारायण बीएचयू की शोध छात्रा हैं। किन्नर समुदाय के ऊपर उन्होंने उल्लेखनीय काम किया है। उनका यह लेख पुराणों के आधार पर भारतीय परम्परा में लैंगिकता की अवधारणा पर है। शोधपूर्ण और साहसिक। पढ़िएगा- ================================= त्रिदेवों के आलिंगन में ‘बलात्कार’ ( पुराण आधारित ) *** भारतीय संदर्भो में देखें …

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ये रौशनी में कोई और रौशनी कैसी

‘मौजूद की निस्बत से’ महेंद्र कुमार सानी का पहला शे’री मज्मूआ है जो रेख़्ता से प्रकाशित हुआ है । इसकी भूमिका प्रसिद्ध शा’इर और सम्पादक आदिल रज़ा मंसूरी ने लिखी है। उन्होंने सानी के मुख़्तलिफ़ तख़्लीक़ी पहलुओं पर इस तरह रौशनी डाली है कि क़ारी की अपेक्षाएँ बढ़ जाती हैं …

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‘वोल्गा से गंगा’ की सभ्यता यात्रा और दो कहानियाँ

आज महापंडित राहुल सांकृत्यायन की जयंती है। ‘वोल्गा से गंगा’ की दो कहानियों के माध्यम से एक लेख में श्रुति कुमुद ने उनके नवजागरण संबंधी विचारों को परखने की कोशिश की है।श्रुति कुमुद विश्वभारती शांतिनिकेतन में पढ़ाती हैं और विमर्श के मुद्दों को बहुत गम्भीरता से उठाती हैं। उनका एक …

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