Home / लेख (page 43)

लेख

अज्ञेय की पुण्यतिथि पर उनका लेख ‘मैं क्यों लिखता हूँ?’

आज मूर्धन्य लेखक अज्ञेय जी की पुण्यतिथि है. आज ही के दिन 1987 ईस्वी में उनका निधन हुआ था. यह उनकी मृत्यु का 30 वां साल है. आज उनको याद करते हुए पढ़िए उनका यह लेख ‘मैं क्यों लिखता हूँ?- मॉडरेटर ================================================= मैं क्यों लिखता हूँ? मैं क्यों लिखता हूँ? …

Read More »

वैजयंतीमाला आई थी रीगल के आखिरी शो में ‘संगम’ देखने

युवा लेखक प्रचण्ड प्रवीर को रीगल के आखिरी शो में वैजयंती माला सिर्फ मिली ही नहीं बल्कि उनकी उनसे मुलाकात भी हुई. वह फिल्म की ही तरह सफ़ेद साड़ी पहने आई थी. पढ़िए बहुत दिलचस्प है सारा वाकया- मॉडरेटर =================================================== कल की बात – १६८ कल की बात है। जैसे …

Read More »

मुगले आज़म की अनारकली से अनारकली डिस्को चली तक

दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसियेट प्रोफ़ेसर लाल जी का यह लेख फ़िल्मी गीतों के बहाने एक दिलचस्प आकलन करता है- मॉडरेटर ========== सार्थक कृतियां अपने भीतर अपने समय का इतिहास समेटे रहती हैं। चाहे वह गीत हो या संगीत,  चित्रकला हो या स्थापत्य कला या फिर साहित्‍य। ऐतिहासिक अन्‍तर्वस्‍तु उसमें विद्यमान …

Read More »

हिंदी सिनेमा का शुरूआती ज़माना और बाइयों का फ़साना

आज यतीन्द्र मिश्र का जन्मदिन है. मुझे 15-16 साल पहले का वह दौर याद आ रहा है जब यतीन्द्र की किताब ‘गिरिजा’ आई थी. गायिका गिरिजा देवी पर लिखी वह किताब हिंदी में अपने ढंग की पली ही किताब थी. बड़ी धूम मची थी. तब मैं लेखक नहीं वेखक था. …

Read More »

गोपेश्वर सिंह का लेख ‘भोजपुरी के पहिलका सोप आपेरा लोहा सिंह

आज अन्तरराष्ट्रीय रंगमंच दिवस पर रामेश्वर सिंह काश्यप के नाटक ‘लोहा सिंह’ की याद आई. लोहा सिंह के लहजे की नक़ल प्रकाश झा निर्देशित धारावाहिक ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’ में भी दिखाई दी थी. मनोहर श्याम जोशी के नेताजी कहिन में भी लोहा सिंह का लहजा दिखाई देता था. लोहा …

Read More »

मोहन राकेश का निबंध ‘नाटककार और रंगमंच’

आज अंतरराष्ट्रीय रंगमंच दिवस है. इस अवसर पर आज मोहन राकेश का यह प्रसिद्ध लेख जिसमें उन्होंने नाटककार के नजरिये से रंगमंच को देखने की कोशिश की है. उनके उठाये सवाल आज भी प्रासंगिक लगते हैं- मॉडरेटर =================================================== और लोगों की बात मैं नहीं जानता, केवल अपने लिए कह सकता …

Read More »

हैव अ हैल्दी डाइट एन्ड हैप्पी लाइफ़!

बारहवीं कक्षा में पढने वाली जूही ने भारत में खानपान के बदलते अंदाज पर यह लेख लिखा है. अच्छा है. पढियेगा- मॉडरेटर ======= खान-पान भारतीयों के लिए सिर्फ़ ज़रूरत नहीं, जुनून भी है, जो वक्त के साथ बढ़ता और बदलता जा रहा है। हिंदुस्तानी खाना स्वाद और सुगंध का रसीला …

Read More »

‘कौन दिसा में लेके चला रे…’

पिछले दिनों इंडियन आइडोल में एक सरदार प्रतिभागी को गाते देख मुझे हिन्दी फ़िल्मों के उस भुला दिए गये सरदार गायक की याद हो आई जिसके गीत दो मौक़ों पर हम स्वयमेव गा बैठते हैं। होली के पर्व पर ‘जोगी जी धीरे–धीरे // नदी के तीरे–तीरे‘ गीत और किसी सफ़र …

Read More »

क्या हिंदी अदालतों के कामकाज की भाषा बनने जा रही है?

अनन्त विजय विचारोत्तेजक लेख लिखते हैं, हिंदी की भावना, संवेदनाओं को जगा देते हैं. यह लेख बहुत अच्छी तरह से इस बात को सामने रखता है कि अदालतों का कामकाज देशी भाषाओं में हो इसके लिए क्या प्रयास हुए हैं और हाल में किस कारण से ऐसा लग रहा है …

Read More »

दरियागंज की 21 नम्बर गली ब्रजेश्वर मदान और सुरेन्द्र मोहन पाठक!

दरियागंज की 21 नंबर गली के सामने से जब भी गुजरता हूँ मुझे 90 के दशक के आरंभिक वर्षों के वे दिन याद आ जाते हैं जब इस गली का आकर्षण मेरे लिए बहुत अधिउक होता था. वहां दीवान पब्लिकेशन्स का दफ्तर था, जहाँ से फ़िल्मी कलियाँ नामक पत्रिका का …

Read More »