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लेख

वैराग्य-साधन के द्वारा मुक्ति मेरे लिए नहीं है

जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में एमफिल के छात्र राजकुमार ने रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविता में जागरण और मुक्ति की चेतना को लेकर एक अच्छा लेख लिखा है- मॉडरेटर ============================                          बांग्ला साहित्य के मूर्धन्य हस्ताक्षर रवीन्द्रनाथ ठाकुर बीसवीं शताब्दी के शुरुआती चार दशकों तक भारतीय साहित्याकाश में ध्रुवतारे की तरह चमकते रहे …

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मुक्ति-भवन – मोक्ष का वेटिंग रूम

कुछ फ़िल्में ऐसी होती है जो लीक से हटकर होती हैं। जिसे कुछ ख़ास तरह के लोग पसंद करते हैं। ऐसी ही फ़िल्म है मुक्ति भवन। फ़िल्म के बारे में युवा लेखक नागेश्वर पांचाल ने लिखा है। आप भी पढ़िए – सम्पादक ======================================================== गुस्ताव फ्लौबेर्ट कहते है “देयर इज नो …

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भारतीय रेल में आपका स्वागत है

आज रेल दिवस है और संयोग से मैं रेल में हूँ। मैंने रेल यात्राएँ बहुत कम की हैं। उस पर भी अकेले तो बहुत ही कम मगर फिर भी रेल यात्राएँ सबसे अधिक लुभाती हैं। सबसे अधिक आरामदायक भी वही होती हैं। पिछले साल दिल्ली गयी थी। तब लम्बे अरसे …

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सोशल मीडिया फेक स्टारडम का माध्यम है?

सोशल मीडिया पर कई तरह के आरोप लगाये जाए हैं. वक़्त बर्बाद करने का और लोगों द्वारा भावनात्मक अथवा आर्थिक रूप से ठगे जाना उनमें मुख्य है. एक और ट्रेंड देखने में आया है. सोशल मीडिया द्वारा ‘फेक स्टारडम’ निर्मित किया जाना. यह मार्केटिंग का एक ज़बरदस्त साधन सिद्ध हो …

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जब अंग्रेजी के लेखक विक्रम सेठ ने ‘हनुमान चालीसा’ का अंग्रेजी अनुवाद किया

सुधीश पचौरी का यह लेख बहुत पुराना है लेकिन आज भी प्रासंगिक है. सन्दर्भ है अंग्रेजी के जाने माने लेखक द्वारा हनुमान चालीसा का अनुवाद- मॉडरेटर ===================== “एक अपनी हिंदी है, जो इतनी सेकुलर हो चली है कि अगर आज कोई हिंदी वाला ‘हनुमान’ का नाम लेता, तो कम्युनल कहलाता। …

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सत्ता ‘दुम’ लगाकर गढ़ती है – ‘हनुमान’

आज हनुमान जयंती है. हनुमान जी को भगवान भक्त के रूप में देखा जाता है. आज यह विशेष लेख युवा लेखक सुनील मानव ने लिखा है- मॉडरेटर ———————————————-  मेरी उम्र उस वक्त दस-बारह वर्ष रही होगी शायद। नाना जी  का पक्का घर बन रहा था। मिस्त्री भी पारिवारिक सदस्य जैसे …

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अब पुस्तक समीक्षा लिखते हुए डर लगने लगा है

मैंने अपने लेखन की शुरुआत पुस्तक समीक्षा से की थी. विद्यार्थी जीवन में लिखने से पत्र-पत्रिकाओं से कुछ मानदेय मिल जाता था. ‘जनसत्ता’, ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ के संपादक, साहित्य संपादक बहुत उदारता से किताबें दिया करते थे. एक तो पढने के लिए किताबें मिल जाती थीं, दूसरे, कम शब्दों में …

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मैथिली सिनेमा को भी ‘अनारकली’ का इंतज़ार है

  अरविन्द दास ने मीडिया पर बहुत अच्छी शोधपूर्ण पुस्तक लिखी है. एक प्रतिष्ठित मीडिया हाउस में काम करते हैं. समकालीन विषयों पर बारीक नजर रखते हैं और सुचिंतित लिखते हैं. अब यही लेख देखिये मैथिली सिनेमा की दशा-दिशा पर कितना बढ़िया लिखा है- मॉडरेटर ===================== ‘अनारकली ऑफ आरा ‘फ़िल्म …

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नया लेखन तो ठीक है लेकिन नया पाठक कहाँ है?

  कभी-कभी ऐसा होता है कि अचानक आपको कोई मिल जाता है, अचानक किसी से फोन पर ही सही बात हो जाती है और आप कभी पुराने दिनों में लौट जाते हैं या किसी नई सोच में पड़ जाते हैं. सीतामढ़ी के मास्साब शास्त्री जी ने न जाने कहाँ से …

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उर्दू ज़बान के बनने की कहानी #1

इन दिनों उर्दू के जानने-चाहने वालों के बीच उर्दू ज़बान के बनने को लेकर चर्चा गर्म है। ऐसा नहीं है कि ये चर्चा पहली दफ़ा शुरू हुआ है। (उर्दू में चर्चा (पु.) होता है, जबकि हिंदी में चर्चा (स्त्री.) होती है) गाहे-बगाहे ये चर्चा शुरू होकर ख़त्म हो जाता है। …

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