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लेख

हे दीनानाथ, सबको रौशनी देना!

युवा संपादक-लेखक सत्यानन्द निरुपम का यह लेख छठी मैया और दीनानाथ से शुरू होकर जाने कितने अर्थों को संदर्भित करने वाला बन जाता है. ललित निबंध की सुप्त परम्परा के दर्शन होते हैं इस लेख में. आप भी पढ़िए- मॉडरेटर =============== छठ-गीतों में ‘छठी मइया’ के अलावा जिसे सर्वाधिक सम्बोधित …

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नागार्जुन से तरौनी कभी छूटा नहीं

आज बाबा नागार्जुन की पुण्यतिथि है. इस अवसर पर युवा पत्रकार-लेखक अरविन्द दास का यह लेख प्रस्तुत है, जिसमें उनके गाँव तरौनी की यात्रा का भी वर्णन है. यह लेख उनके शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक ‘बेखुदी में खोया शहर: एक पत्रकार के नोट्स’ में संकलित है. बाबा को सादर प्रणाम के …

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बंदिशकार और संगीतकार बादशाह औरंगजेब

पिछले एक-दो बरसों में फेसबुक पर प्रवीण झा ने शास्त्रीय संगीत पर बेहद रोचक शैली में लिखना शुरू किया है और उनके मेरे जैसे कई मुरीद पाठक हैं.  आज सुबह-सुबह उनका एक दिलचस्प लेख पढ़ा औरंगजेब और संगीत पर. शीर्ष संगीत इतिहासकार स्व. गजेंद्र नारायण सिंह की मरणोपरांत प्रकाशित किताब “मुस्लिम …

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कांग्रेस साध नहीं पाई सारे समीकरण

कल कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे सुबह भाजपा की असाधारण जीत की तरह लग रहे थे लेकिन दोपहर होते होते वह बहुमत से दूर हो चुकी थी. कर्नाटक चुनाव के इन्हीं नतीजों का आज बहुत अच्छा विश्लेषण ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ में मनीषा प्रियम ने किया है. आपके पढने के लिए साभार- …

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मिथिला से रवीन्द्रनाथ टैगोर के आत्मीय रिश्ते थे

आज रवीन्द्रनाथ टैगोर की जयंती थी. उनके जीवन-लेखन से जुड़े अनेक पहलुओं की चर्चा होती है, उनपर शोध होते रहे हैं. एक अछूते पहलू को लेकर जाने माने गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने यह लेख लिखा है. बिहार के मिथिला प्रान्त से उनके कैसे रिश्ते थे? एक रोचक और शोधपूर्ण लेख- जानकी पुल. …

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पत्रकारों की सुरक्षा की चिंता किसे है?

ईयू-एशिया न्यूज़ के नई दिल्ली संपादक पुष्प रंजन जी को पढना बहुत ज्ञानवर्धक होता है. हिंदी अखबारों में ऐसे लेख कम ही पढने को मिलते हैं. पत्रकारों की सुरक्षा का सवाल आज कितने अख़बार और पत्रकार उठा रहे हैं? इस लेख में कई देशों के आंकड़े हैं और उन आंकड़ों …

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प्रवीण कुमार और रेणु स्कूल की मिस हीराबाई 

‘तीसरी कसम’, हिरामन, हीराबाई पर इतना लिखा जा चुका है कि लगता है अब नया क्या पढना? इसीलिए कोई नया लेख इसके ऊपर देखता हूँ तो पढने का मन ही नहीं करता. लेकिन फिर भी इस विषय पर अच्छा लिखा जा रहा है और कई बार ऐसा लिखा जा रहा …

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लिटरेरी एजेंट और हिंदी का प्रकाशन जगत

सदन झा इतिहासकार हैं. सेंटर फॉर सोशल स्टडीज, सूरत में एसोसियेट प्रोफ़ेसर हैं. उनका यह लेख हिंदी के ‘पब्लिक स्फेयर’ की व्यावहारिकताओं और आदर्शों के द्वंद्व की अच्छी पड़ताल करता है और कुछ जरूरी सवाल भी उठाता है. एक बहसतलब लेख- मॉडरेटर ============================ चंद रोज पहले मैंने अपने फेसबुक वाल …

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‘बौद्धिक स्लीपर सेल‘, जो पूरा परिदृश्य बदल दे

पुष्प रंजन ईयू-एशिया न्यूज़ के नई दिल्ली संपादक हैं और हिंदी के उन चुनिन्दा पत्रकारों में हैं जिनकी अंतरराष्ट्रीय विषयों पर पकड़ प्रभावित करती है. मेरे जैसे हिंदी वालों के लिए बहुत ज्ञानवर्धक होती है. उनका यह लेख ‘देशबंधु’ में प्रकाशित हुआ था. वहीं से साभार- प्रभात रंजन ======================  देश कठुआ …

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आंबेडकर- विचार भी, प्रेरणाशक्ति भी

जहाँ तक मेरी समझ है डॉ. भीमराव आम्बेडकर आधुनिक भारत के सबसे तार्किक और व्यावहारिक नेता थे. वे सच्चे अर्थों में युगपुरुष थे. वे जानते थे कि भारतीय समाज में स्वाभाविक रूप से बराबरी कभी नहीं आ सकती इसलिए संविधान के माध्यम से उन्होंने समाज के कमजोर तबकों को शक्ति …

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