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‘खुशवंतनामा’ का एक अंश

 खुशवंत सिंह की आखिरी पुस्तकों में है ‘खुशवंतनामा: मेरे जीवन के सबक’ है. इस किताब में उन्होंने एक तरह से अपने जीवन का निचोड़ पेश किया है. आज आपके लिए इस किताब का एक अंश, जिसे लिखते समय वे 98 साल के थे. इस किताब का हिंदी अनुवाद मैंने ही …

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एक खुशअदब खुशहाल का जाना

  कल खुशवंत सिंह का निधन हो गया. वे भरपूर जिंदगी जीकर गए मगर फिर भी उनकी कमी खलेगी. उनकी उपस्थिति विराट थी. इतने रूपों में उन्होंने इतने काम किये कि उनकी सूची बनाने में कुछ न कुछ छूट जाने का डर रहता है. वैसे यह कहा जा सकता है …

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गंगूबाई हंगल को सुनना आत्मा के बतियाने को सुनना है

  अनिरुद्ध उमट समर्थ कवि, कथाकार के रूप में जाने जाते हैं. संगीत, कलाओं में गहरी रूचि रखते हैं. यह लेख उन्होंने गंगूबाई हंगल के संगीत का आनंद उठाते हुए लिखा है. आप भी पढ़िए, कुछ आनंद ही आएगा- मॉडरेटर.  ============== १- रात के घने अँधेरे में या दिन की …

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लाल दरअसल खून का नहीं हमारी आँखों में उतरे पानी का रंग है

इन कविताओं पर परंपरा का बोझ नहीं है बल्कि बल्कि इन्हें पढना हिंदी में कविता की अछूती जमीन से गुजरना है. विजया सिंह की कविताओं की ताजगी ने बहुत प्रभावित किया. आप भी पढ़िए- मॉडरेटर.  ====== ====== 1. रजाई       बुढ़ापे की पहली निशानी है नाखूनों के नीचे गंदगी …

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नुक्कड़ नाटकों की ‘अंतर्ध्वनि’

 दिल्ली विश्वविद्यालय में हुई नुक्कड़ नाटकों की प्रतियोगिता के बहाने नुक्कड़ नाटकों पर अच्छा लेख लिखा है युवा रंग-आलोचक अमितेश कुमार ने- जानकी पुल  ======================================== तीन दिन के मैराथन नुक्कड़ प्रदर्शनी को देखने के बाद जब हम इस निष्कर्ष पर पहूंचने ही वाले थे कि नुक्कड़ नाटकों में कुछ नया …

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राहुल बाबा से राहुल गांधी तक

हाल ही में पुस्तक आई है ‘डिकोडिंग राहुल गांधी’। आरती रामचंद्रन की इस पुस्तक के हिन्दी अनुवाद पर यह छोटी सी टिप्पणी- प्रभात रंजन।  ================================ 2014 का  लोकसभा चुनाव कुछ खास है। इस बार हिन्दी और अंगरेजी प्रकाशन जगत ने भी इसके लिए खास तैयारी की है। पिछले करीब एक …

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विवेक मिश्र की कहानी ‘चोर जेब’

विवेक मिश्र संवेदनशील लेखक हैं और अपने परिवेश पर बारीक नजर और गहरी पकड़ रखते हैं। उनकी एक कहानी पढ़ी तो सोचा आपसे भी साझा करूँ और राय लूँ- प्रभात रंजन =============================================      बादल ऐसे घिरे थे कि दिन में रात लगती थी। मानो सूरज को ग्रहण लग गया …

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किस्सा पन्ना बाई और जगत ‘भ्रमर’ का!

‘पाखी’ में मेरी एक कहानी आई है। मुजफ्फरपुर के चतुर्भुज स्थान की गुमनाम गायिका पन्ना बाई से जुड़े किस्सों को लेकर। पिछले आठ साल से मैं चतुर्भुज स्थान की गायिकाओं, उस्तादों से जुड़े किस्सों के संकलन एक काम में लगा हुआ हूँ। यह किस्सा उस शृंखला की पहली कड़ी है। …

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कोई हो जा सकता है अंधा, लंगड़ा, बहरा, बेघर या पागल…

युवा कवि-लेखक हरेप्रकाश उपाध्याय को अपने उपन्यास ‘बखेड़ापुर’ के लिए भारतीय ज्ञानपीठ का लखटकिया नवलेखन पुरस्कार मिला है। उपन्यास में बिहार के सामाजिक ताने बाने के बिखरने की बड़ी जीवंत कहानी कही गई। हरेप्रकाश को जानकी पुल की तरफ से बधाई देते हुए उनके उपन्यास का एक रोचक अंश पढ़ते …

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आज किसने द्वार मेरा भूल से खटका दिया है

वे यश के लिय नहीं लिखती हैं, न ही आलोचकों के सर्टिफिकेट के लिए, न किसी पुरस्कार के लिए। साहित्य को स्वांतः सुखाय भी तो कहा जाता है। विमला तिवारी ‘विभोर’ के कविता संग्रह ‘जीवन जैसा मैंने देखा’ की कवितायें पढ़कर यह महसूस होता रहा साहित्य को क्यों साधना कहा …

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