Home / Prabhat Ranjan (page 225)

Prabhat Ranjan

वाम के समक्ष साख का संकट है या फिर नेतृत्व का?

लेखक-पत्रकार अनंत विजय का यह पत्र कल ‘जनसत्ता’ में छपा था. सीपीएम के महासचिव प्रकाश करात के नाम. वाम राजनीति के सिमटते जाने, उसके अंतर्विरोधों को लेकर लेखक ने कई गंभीर सवाल उठाये हैं. जिन्होंने न पढ़ा हो उनके लिए- जानकी पुल. ============================= आदरणीय प्रकाश करात जी,  लोकसभा की आधी …

Read More »

वी एस नायपाल के उपन्यास ‘गुरिल्लाज’ का पाठ

हाल में वी.एस. नायपॉल के कई उपन्यासों के हिंदी अनुवाद पेंगुइन से छपकर आये, जिनमें उनका एक महत्वपूर्ण उपन्यास ‘गुरिल्लाज’ भी है. आज इस उपन्यास पर लेखिका सरिता शर्मा ने लिखा है. एक पढने लायक लेख- जानकी पुल. ========================       सर विद्याधर सूरज प्रसाद नायपाल रवींद्र नाथ टैगोर के …

Read More »

बदलते दौर की रूढ़ियों की पहचान

हिंदी प्रकाशन जगत की समस्त घटनाएं दिल्ली में ही नहीं होती हैं. कुछ अच्छी पुस्तकें केंद्र से दूर परिधि से भी छपती हैं. ऐसी ही एक पुस्तक ‘देह धरे को दंड’ की समीक्षा युवा लेखक हरेप्रकाश उपाध्याय ने की है. पुस्तक की लेखिका हैं प्रीति चौधरी. प्रकाशक हैं साहित्य भण्डार, …

Read More »

रुज़ेविच की कविताओं का मूल पोलिश भाषा से अनुवाद

तादेऊष रुज़ेविच के निधन पर याद याद आया कि उनकी कविताओं का मूल पोलिश से अनुवाद अशोक वाजपेयी जी ने पोलिश विदुषी रेनाता चेकाल्स्का के साथ मिलकर किया था. ‘जीवन के बीचोंबीच’ नामक वह पुस्तक रुज़ेविच की कविताओं की मूल पोलिश से अनूदित हिंदी में एकमात्र पुस्तक है. पुस्तक अनुपलब्ध …

Read More »

शैलेश मटियानी का पहला इंटरव्यू

हिंदी में बेहतरीन प्रतिभाओं की उपेक्षा कितनी होती है शैलेश मटियानी इसके उदहारण हैं. 24 अप्रैल को उनकी पुण्यतिथि थी. इस अवसर पर 1993 के दीवाली विशेषांक में प्रकाशित उनका यह साक्षात्कार जिसे लिया जावेद इकबाल ने था. इस बातचीत में वे यह कहते हैं कि 42 वर्षों के लेखन …

Read More »

मैं तुम्हें छू लेना चाहता था, मार्केस!

युवा लेखक श्रीकांत दुबे पिछले दिनों मेक्सिको में थे. मार्केस के शहर मेक्सिको सिटी में. तब मार्केस जिन्दा थे. उनका यह संस्मरणात्मक लेख लैटिन अमेरिका में मार्केस की छवि को लेकर है, मार्केस से मिलने की उनकी अपनी आकांक्षा को लेकर है. पढ़ते हुए समझ में आ जाता है कि …

Read More »

सुनील ने संन्यासी सा जीवन जिया

समाजवादी जन परिषद् के महामंत्री सुनील का महज 54 साल की आयु में निधन हो गया. जेएनयू से अर्थशास्त्र की डिग्री लेने के बाद उन्होंने मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के गाँवों में किसानों के बीच काम करने को प्राथमिकता दी. उनको श्रद्धांजलि देते हुए वरिष्ठ पत्रकार राजकिशोर ने यह लेख …

Read More »

कोई लटक गया फांसी किसी ने छोड़ दिया देश

इस बार आम चुनावों में जमीन से जुड़े मुद्दे गायब हैं. खेती, किसान, अकाल, दुर्भिक्ष, पलायन- कुछ नहीं. जमीन से जुड़े कवि केशव तिवारी की कविताएं पढ़ते हुए याद आया. बुंदेलखंड के अकाल और पलायन को लेकर कुछ मार्मिक कविताएं आप भी पढ़िए- प्रभात रंजन  ============================================= 1. ऋतु पर्व घोर …

Read More »

कथाकार काशीनाथ सिंह की बातें उनके बेटे सिद्धार्थ की जुबानी

लेखक काशीनाथ सिंह को सारा हिंदी समाज जानता है. लेकिन उनके यशस्वी पुत्र प्रोफेसर सिद्धार्थ सिंह उनके बारे में क्या सोचते हैं यह पढने को मिला ‘चौपाल’ नामक पत्रिका के प्रवेशांक में. इसकी तरफ ध्यान दिलाया युवा संपादक-आलोचक पल्लव कुमार ने. आइये पढ़ते हैं. पिता की नजर से पुत्र को …

Read More »

कोश कोश कितने कोस!

वर्धा कोश पर ‘जनसत्ता’ में एक लम्बी बहस चली. कुछ हद तक सार्थक भी रही. वैसे मेरा विचार यह है कि हिंदी के विद्वानों को मिलकर यह प्रयास करना चाहिए कि विशेषज्ञों के माध्यम से हिंदी के कोशों को अद्यतन बनाए जाने का काम हो. भाषा आगे बढती जा रही …

Read More »