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समीक्षा

स्पीति में बारिश-कृष्णनाथ को पढ़ते हुए

  कृष्णनाथ के यात्रा वृत्तांतों का अलग महत्व रहा है। उनके यात्रा-वृत्त ‘स्पीति में बारिश’ को पढ़ते हुए यतीश कुमार ने यह काव्यात्मक समीक्षा लिखी है। किताबों पर काव्यात्मक टिप्पणी करने की यतीश जी की अपनी शैली है। उस शैली में किसी किताब पर लिखे को पढ़ने का अपना सुख …

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आईनासाज़:परछाइयां और आहटें पकड़ने का अजब खेल

अनामिका के उपन्यास ‘आईनासाज़’ की कथा को लेकर बहुत लिखा गया है लेकिन उसके विजन को लेकर बात कम हुई है। राजीव कुमार की यह समीक्षा मेरे जानते इस उपन्यास की शायद पहली ही समीक्षा है जो ‘आईनासाज़’ के विजन की बात करती है, अमीर खुसरो, सूफ़ी परम्परा, स्त्री-पुरूष के रिश्ते, …

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वैधानिक गल्प:बिग थिंग्स कम इन स्माल पैकेजेज

चंदन पाण्डेय का उपन्यास ‘वैधानिक गल्प’ जब से प्रकाशित हुआ है इसको समकालीन और वरिष्ठ पीढ़ी के लेखकों ने काफ़ी सराहा है, इसके ऊपर लिखा है। शिल्प और कथ्य दोनों की तारीफ़ हुई है। यह टिप्पणी लिखी है जानी-मानी लेखिका वंदना राग ने- जानकी पुल। ============================ ब्रेकफास्ट ऐट टिफ़नीज़  (Breakfast …

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‘रसीदी टिकट’ के बहाने अमृता को जैसा जाना मैंने!

कुछ कृतियाँ ऐसी होती हैं हिन्हें पढ़ते हुए हर दौर का पाठक उससे निजी रूप से जुड़ाव महसूस करते हुए भावनाओं में बह जाता है। प्रत्येक पाठक उस रचना का अपना पाठ करता है। ऐसी ही एक कृति है अमृता प्रीतम की आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’, इसका पाठ किया है निधि …

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‘मुझे चाँद चाहिए’ पढ़ते हुए कुछ कविताएँ

मुझे याद है बीसवीं शताब्दी के आख़िरी वर्षों में सुरेन्द्र वर्मा का उपन्यास ‘मुझे चाँद चाहिए’ प्रकाशित हुआ था। नाटकों-फ़िल्मों की दुनिया के संघर्ष, संबंधों, सफलता-असफलता की कहानियों में गुँथे इस उपन्यास को लेकर तब बहुत बहस हुई थी। याद आता है सुधीश पचौरी ने इसकी समीक्षा लिखते हुए उसका …

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जन्नत, दोज़ख़ और पाताललोक

सुहैब अहमद फ़ारूक़ी पुलिस अधिकारी हैं, शायर हैं। वेब सीरिज़ पाताललोक पर उनकी कहानी पढ़िए। मुझे पाताललोक देखने की सलाह उन्होंने ही दी थी। अब समझ में आया क्यों दी थी। दिलचस्प है- प्रभात रंजन ========================================================= तनहाई का शोर है यूं घर आँगन में कैसे कोई बोले कैसे बात करे …

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लॉकडाउन के दिनों में ट्रेवेलॉग के बारे में

मानव कौल की किताब ‘बहुत दूर कितना दूर होता है’ की समीक्षा प्रस्तुत है। हिंद युग्म से प्रकाशित इस पुस्तक की समीक्षा की है अविनाश कुमार चंचल ने- मॉडरेटर ================= अभी जब मैं यह लिखने बैठा हूं सुबह के पांच बज रहे हैं। बालकनी से होते हुए कमरे तक सुबह …

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सवाल अब भी आँखे तरेरे खड़ा है- और कितने पाकिस्तान?

कमलेश्वर का उपन्यास ‘कितने पाकिस्तान’ सन 2000 में प्रकाशित हुआ था। इस उपन्यास के अभी तक 18 संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं और हिंदी के आलोचकों द्वारा नज़रअन्दाज़ किए गए इस उपन्यास को पाठकों का भरपूर प्यार मिला। उपन्यास में एक अदीब है जो जैसे सभ्यता समीक्षा कर रहा है। …

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  समाज और कविता दोनों जेंडर न्यूट्रल हों

स्त्रीवादी आलोचक रेखा सेठी की दो किताबें हाल में आई हैं ‘स्त्री कविता: पक्ष और परिप्रेक्ष्य’ तथा ‘स्त्री कविता: पहचान और द्वन्द्व’। जिनमें हिंदी की कवयित्रियों की चर्चा है और उनकी रचनाओं की आलोचना भी। यह एक शोधपरक दस्तावेज़ी काम है। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इन किताबों की समीक्षा की …

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ज़ेहन रोशन हो तो बाहर के अँधेरे उतना नहीं डराते

गीताश्री के उपन्यास ‘वाया मीडिया’ एक अछूते विषय पर लिखा गया है। इसको पढ़ने वाले इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। यह उनके किताब की एक खास समीक्षा है क्योंकि इसे लिखा है वंदना राग ने। वंदना जी मेरी प्रिय लेखिकाओं में हैं और इस साल उनका एक बहुत प्यारा …

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