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इतने वर्षों तक ‘चुप’ रहने के लिए कोई अनुबंध हुआ था?

‘पाखी’ में प्रकाशित वरिष्ठ लेखक श्रवण कुमार गोस्वामी के लेख की एक दिलचस्प रीडिंग की है युवा कवि-लेखक त्रिपुरारि कुमार शर्मा ने- जानकी पुल. =================================== ‘पाखी’ (अंक-3, दिसंबर-2012) का पन्ना-दर-पन्ना पलटने पर पता चलता है कि एक वरिष्ठ लेखक एक युवा लेखिका से कुछ-कुछ नाराज़ जैसा है। बात महज इतनी-सी …

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मौलिकता की बात लेखिकाओं के सन्दर्भ में ही क्यों उठाई जाती है?

पढ़ने में जरा देर हुई. कुछ तो इच्छा भी नहीं हो रही थी. लेकिन मित्रों के फोन से, फेसबुक से यह पता चल रहा था कि एक अति-वरिष्ठ लेखक ने एक वरिष्ठ लेखक(मैं उनकी तरह महुआ मांझी जी को युवा लेखिका नहीं लिख सकता) के बारे में कुछ ऐसा लिख …

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वे मेरे भाई-दोस्त नहीं,सिर्फ रामभक्त थे

छह दिसंबर की तारीख एक ऐसे दुस्स्वप्न की तरह है जो हमारी स्मृतियों में टंगा रह गया है. विनीत कुमार याद कर रहे हैं छह दिसंबर १९९२ की उस सुबह को जिसने हिन्दुस्तान की तारीख बदल दी, कुछ-कुछ हम सबकी भी- जानकी पुल. =============================== 6 दिसंबर की सुबह. बिहारशरीफ, मेरे …

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काफल पाको त्वील नी चाखो

बेजोड़ गद्यकार मनोहर श्याम जोशी ने ‘कूर्मांचली’ के नाम से कविताएँ भी लिखी हैं. उन्होंने अपनी कविताओं के विषय में लिखा है कि अज्ञेय उनकी कविताओं को ‘तीसरा सप्तक’ में शामिल करना चाहते थे. लेकिन उन्होंने अपनी कविताएँ अज्ञेय जी को समय पर नहीं दी इसलिए वे ‘सप्तक कवि’ बनते …

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हरिशंकर परसाई की कविताएँ

क्या हरिशंकर परसाई कविता भी लिखते थे? कांतिकुमार जैन के प्रयत्न से परसाई जी की दो कविताएँ सामने आई हैं। हो सकता है, और भी कविताएँ लिखी गई हों। अधिकांश लेखक कविता से ही शुरुआत करते हैं। परसाई जी कहते हैं, ‘शुरू में मैंने दो-तीन कविताएँ लिखी थीं पर मैं …

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बस्तर में सवेरा मृत्यु की बांग से होता है

लेखक आशुतोष भारद्वाज जैसे बस्तर के जीवन की धडकन को अपने शब्दों में उतार देते हैं. भय, संशय, उहापोह के बीच सांस लेता बस्तर, जिसके जंगलों में नक्सलवादी रहते बताये जाते हैं- जानकी पुल. =================================================================   गरुड़ पर्व  मार्च के आखिरी दिनों में बस्तर के पेड़ जब पत्तियां झरा चुकते …

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जैसे साइबेरिया की चिड़ियों का कोलाहल

वरिष्ठ कवि दिनेश कुमार शुक्ल की कुछ  कविताएँ. उनकी कविताओं में लोक-भाषाओं की गूँज सुनाई देती है जो सघन स्मृति-बिम्बों के बीच दूर से उम्मीद की तरह टिमटिमाती दिखाई देती हैं. उनकी समकालीनता में अतीत रचा-बसा दिखाई देने लगता है. आज उनकी कुल तीन कविताएँ आपके लिए- जानकी पुल. ================================================================  …

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इस फांसी से सवालों के दूसरे कई फंदे सामने लटक आए हैं

कसाब की फांसी से उपजे सवालों पर कल हमने युवा लेखक चंदन पाण्डेय का लेख पढ़ा. आज प्रसिद्ध पत्रकार कुमार प्रशांत का एक विचारोत्तेजक लेख, जो आज के ‘जनसत्ता’ में प्रकाशित हुआ है- जानकी पुल. =========== इक्कीस नवंबर की सुबह साढ़े सात बजे, पुणे की येरवडा जेल में- जिसे अपने …

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कुछ गौर से कातिल का हुनर देख रहे हैं

युवा लेखक चंदन पाण्डेय ऐसे लेखकों में हैं जो विभिन्न मसलों पर अपनी स्पष्ट राय समय-समय पर जाहिर करते रहे हैं. इस बार उन्होंने फांसी और उसको लेकर चल रही राजनीति पर लिखा है- जानकी पुल. ================================================================ दाग का एक पयाम है :  ” कुछ देख रहे हैं दिल-ए-बिस्मिल का …

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अंगुरी में डँसले बिया नगिनिया

‘खूंटा’ कहानी से विशेष चर्चा में आए अनुज की कहानी में राजनीति और ग्रामीण समाज का बदलता चेहरा बखूबी आता है. यह कहानी बिहार की जातिवादी राजनीति को कई कोणों से देखने-समझने की मांग करती है. कथादेश में प्रकाशित हुई है. आज आपके लिए- जानकी पुल. =================================================== {“यह कहानी देशभर …

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