भारत सरकार के गुप्तचर ब्यूरो में बहुत वरिष्ठ पद से सेवानिवृत्त त्रिलोक नाथ पाण्डेय अब साहित्य-साधना में लग गए हैं. राजकमल प्रकाशन से अभी हाल में आये इनके उपन्यास ‘प्रेमलहरी’ ने काफी ख्याति अर्जित की है. चाणक्य के जासूसी कारनामों पर आधारित उनका शोधपरक ऐतिहासिक उपन्यास शीघ्र ही आने वाला …
Read More »मार तमाम के दौर में ‘कहीं कुछ नहीं’
मैंने अपनी पीढ़ी के सबसे मौलिक कथाकार शशिभूषण द्विवेदी के कहानी संग्रह ‘कहीं कुछ नहीं’ की समीक्षा ‘हंस’ पत्रिका में की है। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इस संग्रह की समीक्षा हंस के नए अंक में प्रकाशित हुई है। जिन्होंने न पढ़ी हो उनके लिए- प्रभात रंजन सन 2000 के बाद …
Read More »कहाँ फँस गए कमालुद्दीन मियाँ?
उषाकिरण खान हिंदी की वरिष्ठ लेखिका हैं और उनके लेखन में बहुत विविधता रही है। उनकी ताजा कहानी पढ़िए। यह कहानी उन्होंने ख़ुद टाइप करके भेजी है- मॉडरेटर ================================ कहाँ फँस गये कमालुद्दीन मियाँ कमाल ही कहे जाते हैं। वे क़ुतुब मियाँ के इकलौते चश्मेचिराग थे। चार खूबसूरत बेटियों के …
Read More »‘लौंडे शेर होते हैं’ उपन्यास का एक अंश
आज युवा लेखन में तरह तरह के प्रयोग हो रहे हैं। कथा से लेकर शीर्षक तक तरह तरह के आ रहे हैं। युवा पाठकों को हिंदी से जोड़ पाने में इस तरह के प्रयास सार्थक भी हो रहे हैं। हिंद युग्म से ऐसा ही एक उपन्यास आया है कुशल सिंह …
Read More »प्लेन व्हाइटवाश घरों की हरी-भरी बालकनियां!
युवा लेखिका पूनम दुबे के यात्रा संस्मरण अच्छे लगते हैं। कोपेनहेगन पर उनका यह छोटा सा गद्यांश पढ़िए- मॉडरेटर ========================================================= विलियम शेक्सपियर और उनके लिखे नाटक “रोमियो और जूलियट” को कौन नहीं जानता. रोमियो और जूलियट की कहानी एपिटोम है प्यार का! इसी प्ले में एक बहुत ही प्रसिद्ध सीन …
Read More »एक इतिहासकार की दास्तानगोई
हाल में ही युवा इतिहासकार, लेखक सदन झा की पुस्तक आई है ‘देवनागरी जगत की दृश्य संस्कृति’। पुस्तक का प्रकाशन रज़ा पुस्तकमाला के तहत राजकमल प्रकाशन से हुआ है। पुस्तक की समीक्षा पढ़िए। लेखक हैं राकेश मिश्र जो गुजरात सेंट्रल यूनिवर्सिटी में शोध छात्र हैं- मॉडरेटर ============================ हिंदी जगत में …
Read More »कबीर सिंह एब्नॉर्मल और एक्स्ट्रा नाॅॅर्मल है, उसे न्यू नॉर्मल न बनाएं
कबीर सिंह फ़िल्म जब से आई है तबसे चर्चा और विवादों में है। इस फ़िल्म पर एक टिप्पणी लेखक, कोच। पॉलिसी विशेषज्ञ पांडेय राकेश ने लिखी है- मॉडरेटर ================= कबीर सिंह एक व्यक्तित्व विकार से पीडि़त पात्र की कहानी है, साथ- ही मर्दवादी समाज में मिसोजिनि यानि स्त्री द्वेष के …
Read More »मुड़ मुड़ के क्या देखते रहे मनोहर श्याम जोशी?
आमतौर पर ‘जानकी पुल’ पर अपनी किताबों के बारे में मैं कुछ नहीं लगाता लेकिन पंकज कौरव जी ने ‘पालतू बोहेमियन’ पर इतना अच्छा लिखा है कि इसको आप लोगों को पढ़वाने का लोभ हो आया- प्रभात रंजन ====================== ट्रेजेडी हमेशा ही वर्क करती आयी हैं और शायद आगे भी …
Read More »जीवन जिसमें राग भी है और विराग भी, हर्ष और विषाद भी, आरोह और अवरोह भी
अनुकृति उपाध्याय के कहानी संग्रह ‘जापानी सराय’ को जिसने भी पढ़ा उसी ने उसको अलग पाया, उनकी कहानियों में एक ताज़गी पाई। कवयित्री स्मिता सिन्हा की यह समीक्षा पढ़िए- मॉडरेटर ================ कुछ कहानियां अपने कहे से कहीं कुछ ज़्यादा कह जाती हैं । कुछ कहानियां जो निचोड़ ले जाती हैं …
Read More »यतीश कुमार की कविताएँ
आज यतीश कुमार की कविताएँ। वे मूलतः कवि नहीं हैं लेकिन उनकी इन संकोची कविताओं में एक काव्यात्मक बेचैनी है और कुछ अलग कहने की पूरी कोशिश, जीवन के अनुभवों का कोलाज है। आप भी पढ़िए- मॉडरेटर १)हम तुम एक स्थिति हैं हम तुम वह जो डाल पर बैठे तोता …
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