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समीक्षा

वक़्त है फूलों की सेज, वक़्त है काँटों का ताज

प्रबोध कुमार गोविल ने अभिनेत्री साधना जी जीवन कथा लिखी है जिसका प्रकाशन बोधि प्रकाशन ने किया है। उसी किताब की समीक्षा की है प्रवीण प्रणव ने। आप भी पढ़ सकते हैं- ================= बोधि प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित प्रबोध कुमार गोविल की किताब ‘ज़बाने यार मनतुर्की’ हाल में ही पढ़ने …

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कृष्णनाथ की पुस्तक ‘पृथ्वी परिक्रमा’ की काव्यात्मक समीक्षा

कृष्णनाथ की प्रसिद्ध पुस्तक ‘पृथ्वी परिक्रमा’ की यह कविता समीक्षा की है यतीश कुमार ने। आप भी आनंद लीजिए-  ===============   1.   पश्चिमी हवा है और यात्रा भी पर ध्येय तो पूरबी है और जिज्ञासा भी   सहज निसर्ग आनंद की तलाश बाह्य परिवर्तनों को बूझने का लक्ष्य किसिम-किसिम …

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ज़रूरी सवालों और संकटों को संबोधित करती कहानियां:संजीव कुमार

अशोक कुमार पांडेय को लेखक के रूप में मैं उनकी इस कहानी के लिए भी याद रखता हूँ, ‘इस देश में मिलिट्री शासन लगा देना चाहिए’, अपने कथ्य में ही नहीं अपनी कला में भी यह कहानी अपने कथ्य में ही नहीं अपनी कला में भी यह कहानी बहुत अच्छी …

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हिंदी में मोटिवेशनल किताबों के अभाव को दूर करने वाली पुस्तक

जब से यूपीएससी के रिज़ल्ट आए हैं इस बात को लेकर बड़ी चर्चा है कि हिंदी मीडियम के प्रतिभागियों का चयन कम होता जा रहा है। मुझे निशांत जैन की याद आई। उनकी किताब ‘रुक जाना नहीं’ की याद आई। निशांत जैन आईएएस हैं लेकिन उससे बड़ी बात है कि …

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बिटवीन द लाइंस की पढ़त है ‘सिनेमागोई’

नवल किशोर व्यास रंगकर्मी हैं, अभिनेता हैं और फ़िल्मों पर अच्छा लिखते हैं। उनके कुछ लेख पहले जानकी पुल पर प्रकाशित भी हुए हैं। अभी उनकी किताब आई है ‘सिनेमागोई’, जिसकी समीक्षा लिखी है अमित गोस्वामी ने। अमित जी सरोद वादक हैं और अच्छे ग़ज़लगो हैं। आप यह समीक्षा पढ़िए- …

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बारिशगर स्त्री के ख्वाबों , खयालों, उम्मीदों और उपलब्धियों की दास्तां है!

प्रत्यक्षा के उपन्यास ‘बारिशगर’ में किसी पहाड़ी क़स्बे सी शांति है तो पहाड़ी जैसी बेचैनी भी। इस उपन्यास की विस्तृत समीक्षा की है राजीव कुमार ने- =================== प्रत्यक्षा का उपन्यास “बारिशगर” वैयक्तिक संबंधों के उलझे हुए अनुभव जगत का आख्यान है। विभिन्न कथा युक्तियों द्वारा उपन्यास की कहानी में ऐसे …

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हिंदी की भूमंडलोत्तर कहानी के बहाने

दिनेश कर्नाटक लेखक हैं, अध्यापक हैं। हिंदी कहानी के सौ वर्ष और भूमंडलोत्तर कहानी पर उनकी एक किताब आई है। उसी किताब से यह लेख पढ़िए- ========================== भूमंडलोत्तर कहानीकारों के हिन्दी कथा परिदृश्य में सामने आने का समय बीसवीं सदी का अंतिम दशक है। यह समय देश में कई तरह …

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भोपाल क्यों याद करे काॅमेडियन जगदीप को?

प्रसिद्ध अभिनेता जगदीप के निधन पर श्रद्धांजलि देते हुए यह लेख लिखा है अजय बोकिल ने। वे ‘सुबह सवेरे’ अख़बार के वरिष्ठ संपादक हैं- ======================== कोई फिल्मी या मंचीय किरदार जब जिंदगी की हकीकत से एकाकार हो जाए तो समझिए कि उस कलाकार ने समय पर अपने हस्ताक्षर कर दिए …

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कलिकथा: मंज़िल वाया बाइपास: यतीश कुमार

यतीश कुमार ने काव्यात्मक समीक्षा की अपनी विशेष शैली विकसित की और इस शैली में वे अनेक पुस्तकों की समीक्षाएँ लिख चुके हैं। इसी कड़ी में आज पढ़िए अलका सरावगी के उपन्यास ‘कलि कथा वाया बाइपास’(राजकमल प्रकाशन) की समीक्षा। 1990 के दशक के आख़िरी सालों में जिस उपन्यास ने बड़े पैमाने …

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‘काजल लगाना भूलना’ का मर्म

व्योमेश शुक्ल समकालीन हिंदी कविता का जाना पहचाना नाम है। हाल में उनका कविता संग्रह प्रकाशित हुआ है ‘काजल लगाना भूलना’। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इस संग्रह पर यह लम्बी टिप्पणी की है बीएचयू के शोध छात्र मानवेंद्र प्रताप सिंह ने- ========== व्योमेश शुक्ल का हाल ही में प्रकाशित कविता …

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