2003 की आर्मेनियाई फिल्म ‘वोडका लेमन’ पर श्री(पूनम अरोड़ा) का यह लेख उनकी कविताओं की तरह ही बेहद सघन है. पढियेगा- मॉडरेटर ====== जहाँ जीवन और उसके विकल्प उदास चेहरों की परिणीति में किसी उल्लास की कामना करते मिलते हैं. जहाँ यह चाहा जाता है कि गरीबी में किसी एक, …
Read More »जब सौ जासूस मरते होंगे तब एक कवि पैदा होता है : चन्द्रकान्त देवताले
चंद्रकांत देवताले की कविताओं पर विमलेन्दु का लिखा एक आत्मीय लेख- मॉडरेटर ======================================== साल 1993 का यह जून का महीना था जब चन्द्रकान्त देवताले से पहली बार मुलाकात हुई थी. भोपाल में कवि भगवत रावत ने, मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सहयोग से एक कविता कार्यशाला का आयोजन किया था. …
Read More »विजया सिंह की कुछ नई कविताएँ
विजया सिंह चंडीगढ़ के एक कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाती हैं. सिनेमा में गहरी रूचि रखती हैं. कविताएँ कम लिखती हैं लेकिन ऐसे जैसे भाषा में ध्यान लगा रही हों. उनकी कविताओं की संरचना भी देखने लायक होती है. उनकी कुछ कवितायेँ क्रोएशियन भाषा में हाल ही में अनूदित हुई हैं. …
Read More »मन के मंजीरे: कुछ लव नोट्स
रचना भोला यामिनी जानी-मानी अनुवादिका हैं. वह बहुत अच्छा गद्य भी लिखती हैं. बानगी के रूप में पढ़िए उनके कुछ लव नोट्स- मॉडरेटर ============ मन के मंजीरे — तुम हो तो बजते हैं मन के मंजीरे— मन गुनगुनाता है] सुनाता है हरदम अपना ही राग। मन की उसी रागिनी से …
Read More »हँसना मना है: हास्य दर्शन और इतिहास
इधर के कुछ दिनों में जिस युवा के लेखन ने प्रभावित किया है वह प्रत्युष पुष्कर हैं. कुछ समय पहले इनकी संगीत कविताएँ लगाईं थीं. आज एक अछूते विषय पर उनका लेख हास्य के दर्शन और उसके इतिहास पर. बहुत दिलचस्प- मॉडरेटर ======== ‘क्या आपके टूथपेस्ट में नमक है? जी, …
Read More »कुँवर नारायण और उनकी किताब ‘लेखक का सिनेमा’
80-90 के दशक में कुंवर नारायण विश्व सिनेमा पर दिनमान, सारिका और बाद में नवभारत टाइम्स में लिखा करते थे. अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में दिखाई गई फिल्मों पर. उन्होंने उस गूगलविहीन दौर में एक पीढ़ी को विश्व सिनेमा से परिचित करवाया. हाल में ही राजकमल प्रकाशन से उनकी किताब आई …
Read More »कृष्ण का जीवन उत्सव का संदेश बन गया!
आज जन्माष्टमी भी है. युवा लेखक विमलेन्दु का एक अवश्य पठनीय टाइप लेख इस मौके पर पढ़िए- मॉडरेटर ================================================= ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास न होने के बाद भी कृष्ण मेरे प्रिय पात्र रहे हैं. कई बार जब किसी प्रश्न का जवाब ढूढ़ना मेरी सामर्थ्य के बाहर हो जाता है …
Read More »अमृत रंजन का लेख ‘अंत जिज्ञासा है’
स्कूली लेखक अमृत रंजन जैसे जैसे बड़ा होता जा रहा है उसके लेखन-सोच का दायरा बड़ा होता जा रहा है. उसके लेखन में गहरी दार्शनिकता आ गई है. सबसे बड़ी बात यह है कि हिन्दुस्तान से आयरलैंड जा चुका है लेकिन हिंदी में लिखना नहीं छूटा है. इस बार पढ़ते …
Read More »स्मिता सिन्हा की आठ नई कविताएँ
स्मिता सिन्हा की कविताएँ प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में छपती रहती हैं, सराही जाती हैं. उनका एक अपना समकालीन तेवर है, संवेदना और भाषा है. प्रस्तुत है कुछ नई कविताएँ- मॉडरेटर ============================ (1) मैंने देखे हैं उदासी से होने वाले बड़े बड़े खतरे इसीलिए डरती हूँ उदास होने से डरती हूँ …
Read More »तन्हाई का अंधा शिगाफ़ : भाग-10 अंतिम
आप पढ़ रहे हैं तन्हाई का अंधा शिगाफ़। मीना कुमारी की ज़िंदगी, काम और हादसात से जुड़ी बातें, जिसे लिख रही हैं विपिन चौधरी। आज पेश है दसवाँ यानी अंतिम भाग – त्रिपुरारि ======================================================== अफवाहें देती रही ज़ख्मों पर हवा कहाँ जाता है शोहरत की कीमत जरूर चुकानी पड़ती है. …
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