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युवा शायर #10 प्रखर मालवीय ‘कान्हा’ की ग़ज़लें

युवा शायर सीरीज में आज पेश है प्रखर मालवीय ‘कान्हा’ की ग़ज़लें – त्रिपुरारि ==================================================== ग़ज़ल-1 आग है ख़ूब थोड़ा पानी है ये यहाँ रोज़ की कहानी है ख़ुद से करना है क़त्ल ख़ुद को ही और ख़ुद लाश भी उठानी है पी गए रेत तिश्नगी में लोग शोर उट्ठा …

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काश ऐसा समाज होता जहाँ न ख़रीदार होते न लड़कियां बिकाऊ

प्रतिष्ठा सिंह इटैलियन भाषा पढ़ाती हैं लेकिन अपने समाज से गहरा जुड़ाव रखती हैं. बिहार की महिला मतदाताओं के बीच कम करके उन्होंने ‘वोटर माता की जय’ किताब लिखी जो अपने ढंग की अनूठी किताब है. उनका यह लेख भारत-नेपाल सीमा पर होने वाले स्त्रियों के खरीद फरोख्त का पर …

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बउआ, महुआ बीछअ नै चलबे?

अमन आकाश मिथिला के हैं और महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय से मॉस कॉम में शोध कर रहे हैं. उनका यह भावभीना संस्मरण अपने गाम-घर को याद करते हुए है- मॉडरेटर ================================ अँधेरा-सा छाया ही रहता कि दादी जगाती हुई कहती “चल, ईजोत भ गेलै! नै ता केयो और बीछ …

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