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उन दिनों बेखौफ चलने की आदत थी

आज वर्तिका नंदा की कविताएँ. वर्तिका नंदा हिंदी टेलीविजन पत्रकारिता का जाना-माना नाम है, लेकिन वह एक संवेदनशील कवयित्री भी हैं. स्त्री-मन उनकी कविताओं में कभी सवाल की तरह प्रकट होता है, कभी उनमें अनुभव के बीहड़ प्रकट होते हैं. उनका अपना मुहावरा है, अपनी आवाज़- जानकी पुल.  कुछ जिंदगियां …

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मैं उसकी था पसंद तो क्यों छोड़ के गया

कल ‘समन्वय’ में उर्दू-शायर शीन काफ निजाम ने समां बंध दिया. उनको सुनना बहुत जीवंत अनुभव रहा. शायरी पर उन्होंने काफी विचारोत्तेजक बातें भी कीं. उनकी कुछ चुनिंदा ग़ज़लें हम पेश कर रहे हैं- जानकी पुल. १. आँखों में रात ख्वाब का खंज़र उतर गया यानी सहर से पहले चिरागे-सहर …

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भीड़, जनसमुदाय और राजनीति अन्‍ना के बहाने

युवा इतिहासकार सदन झा हर चीज़ में कुछ नया, कुछ अलग देखते हैं. हमारे देखे हुए को, सुने हुए को एक लग अंदाज़ में दिखाते-सुनाते हैं. लोककथाओं की शैली में गहरी विद्वत्ता झलकती है. अब भीड़ के बहाने यही लेख देखिये- जानकी पुल.  अरे रे राष्ट्रियश्‍यालक! एह्येहि स्‍वस्‍याविनयस्‍य फलमनुभव। (तत: …

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