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आपने ‘लूजर कहीं का’ पढ़ी है?

लूजर कहीं का– मैंने पढ़ा है इस उपन्यास को। बिहार से दिल्ली विश्वविद्यालय के नॉर्थ कैंपस आना, सपनों में खो जाना, सपने का टूटना। भाषा से लेकर कहानी तक सबमें ताजगी। कम से कम हम जैसे डीयू वालों के लिए तो मस्ट रीड है, सो भी मस्त टाइप- प्रभात रंजन  …

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ढो रहे हैं अपने पूर्वजों का रक्‍त और वीर्य

हाल में ‘तहलका’ में आए एक लेख के कारण हिन्दी में स्त्री विमर्श फिर से चर्चा में है। प्रसिद्ध रंगकर्मी, लेखिका विभा रानी का यह लेख हालांकि उस संदर्भ में नहीं लिख गया है लेकिन समकालीन स्त्री विमर्श को लेकर इस लेख में कई जरूरी सवाल उठाए गए हैं- जानकी …

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बिमल राय जैसा गैरमामूली फिल्मकार मर सकता है?

आज हिन्दी सिनेमा के मुहावरे को बदल कर रख देने वाले फ़िल्मकार बिमल राय की पुण्यतिथि है।युवा फिल्म समीक्षक सैयद एस॰ तौहीद ने अपने इस लेख में उनको याद करते हुए उनकी फ़िल्मकारी के कई ऐसे पहलुओं के बारे में लिखा है जिनके बारे में लोग कम जानते हैं- जानकी …

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