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खुमार और खून हमजाद़ हैं यहाँ

युवा कथाकार-पत्रकार आशुतोष भारद्वाज की ‘नक्सल डायरी’ की दूसरी किस्त.  सरगुजा, बीजापुर, बस्तर-दंतेवाड़ा के इलाके अब नक्सल-प्रभावित इलाके कहलाते हैं. इनके घने जंगलों के बीच जो जीवन धडकता है अनिश्चयता के भय और आतंक के साये में वह कितना बदल रहा है. यह आशुतोष की कलम का जादू है- वह …

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साजिश रचती हैं सांसें मेरे खिलाफ

आज प्रमोद कुमार तिवारी की कविताएँ. प्रमोद भाषा में बोली की छौंक के कवि हैं. उस गंवई संवेदना के जिसे हम आधुनिकता की होड़ में पीछे छोड़ आये हैं. शोकगीत की तरह लगती उनकी ये कविताएँ जीवन के अनेक छूटे हुए प्रसंगों की ओर ले जाती हैं, टूटे हुए सपनों …

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जनतंत्र में नायक कौन होता है?

कवि बद्रीनारायण का नाम देश के ‘सबाल्टर्न’ इतिहास-धारा में बहुत आदर से लिया जाता है. दलित समाज के किस्सों-कहानियों के आधार पर उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण स्थापनाएं की हैं. हमारे समाज में नायकत्व की अवधारणा को लेकर उनका एक दिलचस्प लेख- जानकी पुल.        बचपन में मेरी माँ एक कहानी सुनाती …

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