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हिंदी के वरिष्ठ लेखक सार्वजनिक बयान देने से क्यों बचते-डरते है?

ज्ञानपीठ-गौरव प्रकरण में खूब बहस चली, आज भी चल रही है. आशुतोष भारद्वाज ने उस प्रकरण के बहाने हिंदी लेखक समाज की मानसिकता, उसके बिखराव को समझने का प्रयास किया है. आशुतोष स्वयं कथाकार हैं, अंग्रेजी के पत्रकार हैं, शब्दों की गरिमा को समझते हैं, लेखन को एक पवित्र नैतिक …

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भगवत ने लोक की आत्मा से हिंदी को समृद्ध किया

भगवत रावत के साहित्यिक अवदान का मूल्यांकन प्रसिद्ध कवि विष्णु खरे की कलम से- जानकी पुल. ———————————————————————– हिंदी साहित्य जगत बरसों से वाकिफ था कि भगवत रावत गुर्दे की गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे.उनका यह लंबा संघर्ष उनकी ऐहिक और सृजनात्मक जिजीविषा का प्रतीक था और कई युवतर,समवयस्क और …

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वे लेखक महान हैं जिनके अंत के साक्षी विष्णु जी हैं!

पिछले दिनों विष्णु खरे का एक पत्र ‘जनसत्ता’ में छपा था. उस पत्र का यह प्रतिवाद लिखा है हमारे दौर के प्रसिद्ध पेंटर मनीष पुष्कले ने. मनीष गंभीर साहित्य-प्रेमी हैं, उनकी इस पत्रनुमा टिप्पणी को एक गंभीर साहित्यानुरागी की टिप्पणी के बतौर लिया जाना चाहिए. मैंने लिया है तभी तो …

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