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उन्होंने कुछ बताया और कुछ बनाया

हाल में ही डॉ. दिनेश्वर प्रसाद  का निधन हो गया. यह नाम हो सकता है हिंदी की दुनिया का उतना जाना-माना नाम न रहा हो, किसी सत्ता-प्रतिष्ठान से न जुड़ा हो. लेकिन वे सच्चे हिंदी सेवी और एक ईमानदार प्राध्यापक थे. वे हिंदी के सत्ता-खोजी संसार में कुछ पाने नहीं …

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मीडियॉकर लोग साहित्य में हावी होते जा रहे हैं

मुंबई के सुदूर उपनगर में आने वाला नायगांव थोडा-बहुत चर्चा में इसलिए रहता है है कि वहां टीवी धारावाहिकों के सेट लगे हुए हैं। स्टेशन के चारों ओर पेड हैं और झाडियों में झींगुर भरी दुपहरी भी आराम नहीं करते। लेखक निलय उपाध्याय कहते हैं कि ये नमक के ढूहे …

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साहित्य को श्रद्धा नहीं उसमें निहित सामाजिक प्रतिबद्धता महत्वपूर्ण बनाती है

दिनेश्वर प्रसाद का निधन हो गया. वे हिंदी के एक प्राध्यापक थे, लेकिन मठाधीश नहीं. साहित्यसेवी थे. रांची में रहते थे. बरसों से फादर कामिल बुल्के के कोश को अपडेट करते रहते थे. उनको याद करते हुए विनीत कुमार ने बहुत आत्मीय ढंग से लिखा है- जानकी पुल.—————————————————- पटना से …

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