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कोई हो जा सकता है अंधा, लंगड़ा, बहरा, बेघर या पागल…

युवा कवि-लेखक हरेप्रकाश उपाध्याय को अपने उपन्यास ‘बखेड़ापुर’ के लिए भारतीय ज्ञानपीठ का लखटकिया नवलेखन पुरस्कार मिला है। उपन्यास में बिहार के सामाजिक ताने बाने के बिखरने की बड़ी जीवंत कहानी कही गई। हरेप्रकाश को जानकी पुल की तरफ से बधाई देते हुए उनके उपन्यास का एक रोचक अंश पढ़ते …

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आज किसने द्वार मेरा भूल से खटका दिया है

वे यश के लिय नहीं लिखती हैं, न ही आलोचकों के सर्टिफिकेट के लिए, न किसी पुरस्कार के लिए। साहित्य को स्वांतः सुखाय भी तो कहा जाता है। विमला तिवारी ‘विभोर’ के कविता संग्रह ‘जीवन जैसा मैंने देखा’ की कवितायें पढ़कर यह महसूस होता रहा साहित्य को क्यों साधना कहा …

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कुछ चिनार के पत्ते, झेलम का पानी और मिट्टी…

हाल के वर्षों में जयश्री रॉय ने अपनी कहानियों के माध्यम से हिन्दी जगत में अपनी बेहतर पहचान बनाई है। अभी हाल में ही उनका उपन्यास आया है ‘इकबाल‘, जो कश्मीर की पृष्ठभूमि पर आधारित एक प्रेम-कहानी है। आधार प्रकाशन से प्रकाशित इस उपन्यास का एक अंश आपके लिए- जानकी …

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