Recent Posts

हर तरह की हत्या को ख़ारिज करती है मेरी कविता

समकालीन हिंदी कविता की एक मुश्किल यह है कि वह ‘पोलिटिकली करेक्ट’ होने के प्रयास में अधिक रहती है, लेकिन कुछ कवि ‘करेक्ट’ होने के लिए भी लिखते हैं, मनुष्यता के इतिहास में करेक्ट होने के लिए. छत्तीसगढ़ के सुकमा में हाल की हत्याओं के बाद प्रियदर्शन की यह कविता …

Read More »

जो कम्यूनिस्ट नहीं है, उसे कम्यूनिस्ट विरोधी होने का हक है

‘कथादेश’ के जून 2013 के अंक में प्रसिद्ध लेखिका-आलोचिका अर्चना वर्मा का लेख प्रकाशित हुआ है ‘असहमति और विवाद की संस्कृति’ शीर्षक से. पिछले दिनों फेसबुक पर कवि कमलेश के सी.आई.ए. के सम्बन्ध में दिए गए एक बयान के सन्दर्भ में एक महाबहस चली, इस लेख में अर्चना वर्मा ने सुविचारित ढंग …

Read More »

ये भी कोई जाने की उम्र होती है- दीप्ति नवल

ऋतुपर्णो घोष का जाना सचमुच अवाक कर गया. साहित्य और सिनेमा के खोये हुए रिश्ते को जोड़ने वाले इस महान निर्देशक को आज दीप्ति नवल ने बहुत आत्मीयता से याद किया है. पढ़ा तो साझा करने से खुद को रोक नहीं पाया- जानकी पुल. =================== जाने क्या दिक्कत थी कि उनकी …

Read More »