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गंभीर और लोकप्रिय साहित्य के बीच कोई अंतर नहीं होता है!

हिंदी में लोकप्रिय और गंभीर साहित्य के अंतर्संबंधों को लेकर मेरा यह लेख ‘पाखी’ पत्रिका के नए अंक में प्रकाशित हुआ है- प्रभात रंजन  ==================== ‘जोशीजी ने जमकर लिखने का मूड बनाने के लिए फ़ॉर्मूला 99 आजमाने की सोची. इसके अंतर्गत जोशीजी एक आध्यात्मिक, एक किसी शास्त्र-विज्ञान सम्बन्धी और एक …

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दिबाकर बनर्जी की अब तक की सबसे कमजोर फिल्म है ‘ब्योमकेश बक्शी’

फिल्म समीक्षक आजकल समीक्षक कम पीआर कम्पनी के एजेंट अधिक लगने लगे हैं. ऐसे में ऐसे दर्शकों का अधिक भरोसा रहता है जो एक कंज्यूमर की तरह सिनेमा हॉल में जाता है और अपनी सच्ची राय सामने रखता है. युवा लेखक-संपादक वैभव मणि त्रिपाठी की लिखी ब्योमकेश बक्शी फिल्म की …

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डेढ़ सौ साल की कृति ‘एलिस इन वंडरलैंड’

‘एलिस इन वंडरलैंड’ के डेढ़ सौ साल हो गए. इस कृति की अमरता के कारणों पर जानी-मानी लेखिका क्षमा शर्मा का यह लेख- मॉडरेटर =============== हाल ही में बाल साहित्य से जुड़ी साहित्य अकादमी की गोष्ठी में एक वक्ता ने कहा कि हमें एलिस इन वंडरलैंड और पंचतंत्र से मुक्त …

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